Dhurandhar: रहमान डकैत के एनकाउंटर के बाद क्या हुआ? लियारी के रियल लाइफ डॉन की वो कहानी, जो फिल्म से भी ज़्यादा डरावनी है
धुरंधर फिल्म में दिखाया गया रहमान डकैत का किरदार जितना खौफनाक है, असल ज़िंदगी में उसकी कहानी उससे कहीं ज्यादा डरावनी रही. कराची के लियारी इलाके में जन्मा अब्दुल रहमान बलोच बेहद कम उम्र में अपराध की दुनिया में उतर गया. 13 साल में चाकूबाज़ी, 15 साल में अपनी ही मां की हत्या और 21 की उम्र तक लियारी का सबसे ताकतवर गैंगस्टर बन जाना उसकी हैरान करने वाली यात्रा रही.
देशभर के सिनेमाघरों में धुरंधर (Dhurandhar) जबरदस्त रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर रही है. फिल्म की सबसे बड़ी चर्चा का कारण बने हैं अक्षय खन्ना, जिन्होंने पहले पार्ट में विलेन रहमान डकैत का किरदार निभाया है. हैरानी की बात यह है कि पर्दे पर एक पाकिस्तानी गैंगस्टर की एंट्री पर भी सीटियां और तालियां बज रही हैं. यह अक्षय खन्ना की अभिनय क्षमता का ही सबूत है.
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सिनेमा में दिखाई गई रहमान डकैत की कहानी, असल ज़िंदगी की तुलना में शायद कम ही खौफनाक है. हकीकत में रहमान की जिंदगी हिंसा, खून, राजनीति, पुलिस-गैंग नेक्सस और विश्वासघात से भरी हुई थी - इतनी भयावह कि कई बार फिल्म भी उसके आगे फीकी लगती है.
लियारी की गलियों में जन्म, अपराध की दुनिया में परवरिश
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, रहमान डकैत का असली नाम अब्दुल रहमान बलोच था. उसका जन्म 1976 में कराची के लियारी इलाके में हुआ - जो पाकिस्तान के सबसे गरीब, घनी आबादी वाले और अपराध-प्रभावित इलाकों में गिना जाता है. उसके पिता दाद मोहम्मद ड्रग्स के धंधे से जुड़े थे और उनकी दूसरी पत्नी खदीजा से रहमान पैदा हुआ. लियारी में उस दौर में कानून से ज्यादा ताकत गैंग्स की चलती थी. ड्रग तस्करी, अवैध हथियार, जुआ और जबरन वसूली आम बात थी. दाद मोहम्मद और उनके भाई भी इसी अंडरवर्ल्ड का हिस्सा थे और उनकी दुश्मनी इकबाल उर्फ बाबू डकैत और हाजी लालू जैसे गैंग लीडर्स से थी.
पूर्व लियारी एसपी फैयाज खान ने BBC को बताया था, “एक ही तरह के धंधे में शामिल कई गैंग्स के बीच इलाकाई वर्चस्व को लेकर संघर्ष चलता रहता था. ये झगड़े अक्सर खूनी संघर्ष में बदल जाते थे. ऐसे ही एक टकराव में रहमान बलोच के चाचा ताज मोहम्मद की हत्या बाबू डकैत गैंग ने कर दी थी.” यहीं से बदले और हिंसा की आग रहमान के भीतर पूरी तरह जल उठी.
13 साल में चाकूबाज़ी, 15 साल में मां की हत्या
रहमान डकैत की अपराध की दुनिया में एंट्री बेहद कम उम्र में हो गई थी. महज 13 साल की उम्र में उसने एक शख्स पर चाकू से हमला कर दिया, सिर्फ इसलिए क्योंकि उस आदमी ने उसे पटाखे फोड़ने से रोका था. दो साल बाद, यानी 15 की उम्र में, उसने दो प्रतिद्वंद्वी ड्रग पैडलर्स की हत्या कर दी. लेकिन जो घटना उसे पाकिस्तान के सबसे कुख्यात अपराधियों में शामिल करती है, वह है - अपनी ही मां की हत्या. 1995 में, पुलिस से भागने के कुछ महीनों बाद, रहमान ने अपने घर के अंदर मां खदीजा को गोली मार दी. पुलिस को उसने दावा किया कि उसकी मां पुलिस की मुखबिर बन गई थी. हालांकि, BBC और अन्य रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई कि रहमान को शक था कि उसकी मां का संबंध किसी प्रतिद्वंद्वी गैंग के सदस्य से है. यही एंगल धुरंधर फिल्म में भी दिखाया गया है.
गिरफ्तारी, जेल से फरारी और ‘डॉन’ बनने की शुरुआत
1995 में ही रहमान को हथियार और ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उसे करीब ढाई साल जेल में रहना पड़ा. लेकिन अदालत में पेशी के दौरान वह पुलिस हिरासत से फरार हो गया. वह बलूचिस्तान भाग गया और वहीं से लियारी में अपनी वापसी की नींव रखी. 2000 के दशक की शुरुआत तक रहमान सिर्फ गैंगस्टर नहीं, बल्कि एक ताकत बन चुका था. तीन शादियां, 13 बच्चे, कराची, बलूचिस्तान और यहां तक कि ईरान में संपत्तियां, यह सब उसे अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बना चुका था.
लियारी गैंग वॉर: 3500 से ज्यादा लाशें
रहमान डकैत और हाजी लालू शुरुआत में साझेदार थे - ड्रग्स, जुआ और अवैध वसूली में. लेकिन जल्द ही दोनों के बीच टकराव हुआ और लियारी जंग का मैदान बन गया. अनुमानों के मुताबिक, इन गैंग वॉर में 3500 से ज्यादा लोग मारे गए. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने 2021 में लिखा था, “रहमान डकैत अपहरण, जबरन वसूली, ड्रग स्मगलिंग और अवैध हथियारों के कारोबार में शामिल था. करीब एक दशक तक लियारी में आम ज़िंदगी ठप रही, जब रहमान और उसका गैंग, अर्शद पप्पू जैसे प्रतिद्वंद्वियों से खूनी जंग लड़ता रहा.”
अपराध से राजनीति की ओर: पीपल्स अमन कमेटी
समय के साथ रहमान की महत्वाकांक्षा और बढ़ी. अब वह सिर्फ अंडरवर्ल्ड का किंग नहीं रहना चाहता था. उसने खुद को “सरदार अब्दुल रहमान बलोच” घोषित किया और पीपल्स अमन कमेटी बनाई. लियारी पहले से ही MQM और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) का गढ़ रहा था. यहीं से जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो जैसे नेता प्रधानमंत्री बने. रहमान के राजनीति में उतरते ही हिंसा और तेज हो गई.
लियारी टास्क फोर्स और चौधरी असलम
2006 में रहमान डकैत को पकड़ने के लिए बनाई गई लियारी टास्क फोर्स, जिसकी कमान थी कुख्यात एनकाउंटर स्पेशलिस्ट चौधरी असलम के हाथों में. धुरंधर में यह किरदार संजय दत्त ने निभाया है. जून 2006 में टास्क फोर्स ने रहमान को पकड़ लिया था, लेकिन यह गिरफ्तारी कभी आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं हुई. BBC रिपोर्ट के अनुसार, चौधरी असलम को उस वक्त PPP नेता आसिफ अली ज़रदारी का फोन आया, “इसे मत मारो. कोई गलत काम मत करना. केस कोर्ट में पेश करो.” इसके बाद रहमान को पुलिस अफसरों के घरों में रखा गया, जहां से वह फिर फरार हो गया.
रहमान डकैत की मौत: एनकाउंटर या साजिश?
2009 में पुलिस ने फोन ट्रैकिंग के जरिए रहमान की लोकेशन का पता लगाया. दावा किया गया कि क्वेटा के पास उसे रोका गया. फर्जी ID दिखाने के बाद जब उसे सीनियर अफसर से बात करने को कहा गया, तो गाड़ी में चौधरी असलम बैठे थे. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, रहमान ने डील करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. कुछ ही घंटों बाद, रहमान डकैत और उसके तीन साथियों को पुलिस एनकाउंटर में मार दिया गया. पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि वह 80 से ज्यादा मामलों में वांछित था, जिनमें हत्या और अपहरण शामिल थे.
एनकाउंटर पर सवाल
पीपल्स अमन कमेटी के चेयरमैन मौलाना अब्दुल मजीद सरबाजी ने एक्सप्रेस ट्रिब्यून से कहा था, “पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बताती है कि रहमान को तीन फीट की दूरी से गोली मारी गई. यह एनकाउंटर नहीं लगता. सात साल तक दो गैंग्स लड़ते रहे, किसी ने दखल नहीं दिया. जब हालात सुधरने लगे, तभी उसे मार दिया गया.”
एनकाउंटर के बाद क्या हुआ?
धुरंधर यहीं खत्म होती है, लेकिन असल कहानी आगे भी जारी रहती है. रहमान का अंतिम संस्कार लियारी का सबसे बड़ा जनाज़ा बताया जाता है. उसकी पत्नी ने सिंध हाई कोर्ट में फर्जी एनकाउंटर की याचिका दाखिल की. कोर्ट के आदेश पर रिपोर्ट मांगी गई, लेकिन केस कभी अंजाम तक नहीं पहुंचा. 2014 में, रहमान को मारने वाले चौधरी असलम खुद तालिबान के आत्मघाती हमले में मारे गए.
अब धुरंधर 2 अगले साल मार्च में रिलीज़ होगी, जो इसी खौफनाक विरासत के बाद की कहानी दिखाएगी - जहां सिनेमा और हकीकत की लकीरें और धुंधली हो जाएंगी.





