सेट पर करते थे ज्वैलेरी सप्लाई, बॉडी डबल से करियर की शुरुआत, कहलाते हैं 'बॉलीवुड का जंपिंग जैक'
1960 और 1970 के दशक के आखिर में जीतेंद्र ने कई हिट फ़िल्में दीं। तमिल फ़िल्म 'पनक्करा कुडुंबम' की रीमेक 'हमजोली' (1970) और आशा पारेख के साथ क्राइम थ्रिलर 'कारवां' (1971) जैसी फ़िल्मों ने उनके स्टारडम को मज़बूत किया

बॉलीवुड स्टार जीतेंद्र 1960 और 1970 के दशक के एक प्रमुख स्टार रहे हैं. जिन्हें 'जीने की राह', 'तोहफा', 'हिम्मतवाला' समेत कई हिट फिल्मों के लिए जाना जाता है. जीतेंद्र जिनका असली नाम रवि कुमार है ज्वैलेरी कारोबार से जुड़े पंजाबी परिवार जन्मे. मुंबई के गिरगांव इलाके में पले-बढ़े जीतेंद्र ने एक मिडिल क्लास चॉल में एक साधारण जीवन जिया.
बॉलीवुड में उनका प्रवेश संयोगवश हुआ. हालांकि जीतेन्द्र सेट में आर्टिफिशियल ज्वैलेरी सप्लाई करने जाते थे. फिल्म निर्माता वी. शांताराम की नजर उनपर पड़ी और 1959 की फिल्म 'नवरंग' में एक्ट्रेस संध्या के लिए बॉडी डबल के रूप में काम करने का मौका मिला. इस अवसर ने फिल्म इंडस्ट्री में उनके पहले कदम को आगे बढ़ाने का काम किया. बाद में शांताराम ने उन्हें 'गीत गाया पत्थरों' ने (1964) में अपनी पहली मुख्य भूमिका दी, जो कि एक ठीक-ठाक सफलता थी, लेकिन तुरंत उन्हें स्टारडम तक नहीं पहुंचा पाई. इस लेवल पर, उन्होंने एक फिल्म प्रोड्यूसर द्वारा सुझाए गए स्क्रीन नाम 'जीतेंद्र' को अपनाया.
'बॉलीवुड का 'जंपिंग जैक'
जीतेंद्र को 1967 में रविकांत नगाइच द्वारा निर्देशित जासूसी थ्रिलर 'फ़र्ज़' से बड़ा ब्रेक मिला. तेलुगु फ़िल्म 'गुदाचारी 116' की रीमेक, 'फ़र्ज़' एक ब्लॉकबस्टर बन गई, जिसने उन्हें एक भरोसेमंद स्टार के रूप में स्टैब्लिश किया. 'मस्त बहारों का मैं आशिक' गाने में उनके एनर्जेटिक डांस मूव्स, कैज़ुअल टी-शर्ट और सफ़ेद जूतों के साथ, उनकी खास स्टाइल बन गई, जिससे उन्हें 'बॉलीवुड का 'जंपिंग जैक' का टैग मिला. फ़िल्म की सफलता, साथ ही इसके चार्ट-टॉपिंग संगीत ने इंडस्ट्री में उनके उदय की शुरुआत की.
कई फ्लॉप के बाद परिचय से वापसी
1960 और 1970 के दशक के आखिर में जीतेंद्र ने कई हिट फ़िल्में दीं. तमिल फ़िल्म 'पनक्करा कुडुंबम' की रीमेक 'हमजोली' (1970) और आशा पारेख के साथ क्राइम थ्रिलर 'कारवां' (1971) जैसी फ़िल्मों ने उनके स्टारडम को मज़बूत किया। 'कारवां' को बड़ी सफलता मिली, ख़ास तौर पर विदेशों में, यह उस समय चीन में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली विदेशी फ़िल्म बन गई, जिसने राज कपूर की 'आवारा' को भी पीछे छोड़ दिया। 1970 के दशक की शुरुआत में कई फ्लॉप फ़िल्मों के साथ मुश्किल दौर के बावजूद, जीतेंद्र ने गुलज़ार निर्देशित 'परिचय' (1972) के साथ वापसी की जो उस समय सबसे बड़ी हिट साबित हुई.