Crime in Bihar: बिहार में लालू-राबड़ी ‘जंगलराज’ गया तो नीतीश का ‘जल्लाद-राज’ आ गया, तरीका बदला है क्राइम खत्म नहीं हुआ!
बिहार में लालू-राबड़ी के 'जंगलराज' के बाद नीतीश कुमार का 'रामराज' भी केवल दिखावा बनकर रह गया है. पूर्व IPS अमिताभ दास और वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी के अनुसार, राज्य में अपराध का चेहरा बदला है, खत्म नहीं हुआ. शराबबंदी ने भ्रष्टाचार, पुलिस गठजोड़ और काले कारोबार को बढ़ावा दिया. नीतीश सरकार का मीडिया मैनेजमेंट इतना मजबूत है कि अंदरूनी अपराध-भ्रष्टाचार की चीखें बाहर नहीं आ पा रहीं.

“बेशक अब से 30-35 साल पहले 1990 के दशक में और उसके कई साल बाद तक बिहार में, लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) व राबड़ी देवी (Rabri Devi) की सत्ता में ‘जंगलराज’ था. नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) उर्फ ‘पलटूराम’ की सत्ता भी मगर सूबे में ‘रामराज’ नहीं ला सकी है. उदाहरण के तौर पर बिहार राज्य में शराबबंदी को ही ले लीजिए. नीतीश कुमार की हुकूमत द्वारा सूबे में शराबबंदी लागू करने से पहले तक, बिहार के सरकारी खजाने को सालाना अनुमानित 20 हजार करोड़ के करीब राजस्व सिर्फ शराब से ही मिला करता था. जो नीतीश कुमार की सत्ता ने रोक दिया, बिहार में शराब की कानूनन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगाकर. अब उसके बाद शराब का वही कारोबार जब माफियाओं-सफेदपोशों द्वारा ‘काला-कारोबार’ बना, तो सरकारी राजस्व से भी कई हजार करोड़ ज्यादा का अवैध-उगाही का कारोबार बन गया.
दरअसल नीतीश कुमार नहीं, बल्कि उनका मीडिया मैनेजमेंट जबरदस्त है. लालू और राबड़ी के पास इसी मीडिया मैनेजमेंट का अभाव था. यही नीतीश कुमार की ‘पलटूराम’ छवि को निखार रहा है. अगर लालू-राबड़ी का जंगलराज खतम हुआ तो बिहार में नीतीश कुमार ने अपना और अपनी ‘चौकड़ी’ के काले-कारोबार के उद्योग धंधे खड़े कर लिए.
कौन कहता है बिहार ‘क्राइम-फ्री’ हो गया?
कौन कहता है कि बिहार में क्राइम खतम हो गया? बिहार में नीतीश की सत्ता में क्राइम कम हुआ है. क्राइम का रूप बदला है. क्राइम खतम नहीं हुआ है. यह तमाम सनसनीखेज मगर जमीन पर खड़े तथ्य स्टेट मिरर हिंदी की इस खास स्टोरी में निकल कर सामने आए हैं. बिहार के ही पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जा चुके पुलिस महानिरीक्षक) अमिताभ दास. और लंबे समय से बिहार में राजनीति की रिपोर्टिंग करके उसे बेहद करीब से पैनी नजर से ताड़ते रहने वाले, वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बाल योगी से हुई खास बातचीत में.
नीतीश का ‘मीडिया मैनेजमेंट’ सफल है
1994 बैच बिहार कैडर के पूर्व आईपीएस कहते हैं, ‘नीतीश कुमार का अगर मीडिया मैनेजमेंट फेल हो जाए, तो आज ही उनकी वह सच्चाई जनता के सामने आ जाएगी, जिसे अब तक सिर्फ राज्य पुलिस और जिस केंद्र सरकार के बलबूते वह बिहार में सीएम की कुर्सी पर फूले नहीं समा रहे हैं, यही दोनों जानते हैं. नीतीश कुमार ने दरअसल राजनीति में बूढ़े शेर के बदन पर बछिया (गाय) की खाल ओढ़ रखी है. उतार दीजिए उनके बदन से यह गाय की खाल, पता चल जाएगा दुनिया को कि पलटूराम की असलियत क्या है? जिस दिन नीतीश कुमार के कंधों से उनके मीडिया मैनेजमेंट की बैसाखी खींच ली जाएगी, या सरक जाएगी, उसी दिन चेहरा, चाल-चलन सब नंगा हो जाएगा.’
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ब्यूरोक्रेट किसी का दोस्त-दुश्मन नहीं होना चाहिए
आप लालू यादव और राबड़ी देवी के ‘जंगलराज’ के बिहार कैडर आईपीएस सेवा के पुलिस अफसर रहे हैं. इसलिए तो नीतिश की बखिया नहीं उधेड़ रहे हैं? नीतीश कुमार ने ही आपको आईपीएस सेवा से भी जबरिया अनिवार्य रिटायरमेंट भी दिया था साल 2018 में. आप इतना दो टूक खरा-खरा बोलकर कहीं, नीतीश कुमार से पुराना हिसाब तो बराबर नहीं कर रहे है? एक साथ कई सवालों के जवाब में पूर्व आईपीएस और बिहार पुलिस सेवा से अनिवार्य रूप से समय से पहले ही ‘लोकहित’ आईजी के पद से हटाए जा चुके अमिताभ दास बोले, ‘एक ब्यूरोक्रेट न तो किसी का दुश्मन होता है न ही दोस्त.'
इस ‘राज’ में पिटने वाले को रोने की इजाजत नहीं
बेबाकी से अपनी बात रखने लिए देश की ब्यूरोक्रेसी में मशहूर पूर्व आईपीएस अमिताभ दास आगे बोले, “किसी सत्यनिष्ठ ब्यूरोक्रेट (आईएएस आईपीएस) को किसी नेता की कठपुतली बनना भी नहीं चाहिए. मैं मानता हूं कि पटना हाईकोर्ट ने ही लालू यादव के मुख्यमंत्रित्तव काल को जंगलराज करार दिया था. जो सच है उसे कौन झुठला सकता है? अगर लालू राबड़ी का बिहार में जंगलराज था, तो अब केंद्रीय हुकूमत की गोद में बैठकर, पलटूराम की छवि से बदनाम बिहार की सत्ता का सुख भोग रहे, नीतीश कुमार का राज जल्लाद राज है. जहां पिटाई तो हो रही है. लेकिन पिटने वाले को रोने की इजाजत नहीं है. लालू राबड़ी के राज में सबकुछ खुलेआम होता था. इसलिए सुर्खी बना रहता था. नीतीश के राज में भी हो वही रहा है. बस फर्क इतना है कि अब बिहार में पिटने वाले की चीखें बाहर नहीं निकलने दी जाती हैं.”
क्राइम कम नहीं हुआ उसका चेहरा बदला है
क्या नीतीश कुमार बिहार से लालू यादव और राबड़ी के ‘राज’ का सूपड़ा साफ करके सूबे में ‘रामराज’ ले आए हैं? पूछे जाने पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बाल योगी बोले, “नहीं ऐसा नहीं है. क्राइम बिहार में कभी कम नहीं हुआ. लालू और राबड़ी की सत्ता के बाद आई मौजूदा नीतीश कुमार की सत्ता में क्राइम की बात करें तो, क्राइम अब भी है. बस उसका रूप-रंग बदल गया है. जैसे कि, लालू-राबड़ी के राज में भू-माफियाओं की भीड़. किसी के भी आलीशान मकान के पसंद आ जाने पर दबंगों द्वारा उस पर कब्जा कर लेना. अपहरण उद्योग, भाड़े पर हत्याओं का काला-कारोबार, पिछड़ी-निचली और सवर्ण जातियों के बीच वैमनस्यता फैलाकर सामूहिक नरसंहार करवाना. खुलेआम हाथों में हथियारों को पुलिस की मौजूदगी में लहराते हुए गोलियां दागकर आतंक फैलाना. मतलब, लालू-राबड़ी राज में सिंडिकेट क्राइम, संगठित अपराधों का बोलबाला था.”
शहर से गांवों तक छोटे अपराधों की बाढ़
अपनी बात जारी रखते हुए बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड की राजनीति और अपराध पर बीते लंबे समय से बहैसियत राजनीतिक, खोजी और अपराध पत्रकारिता के मंझे हुए पत्रकार मुकेश बाल योगी कहते हैं, “नीतीश कुमार के राज में आए दिन छोटे-मोटे क्राइम का बोलबाला है. शहर से लेकर गांव-देहात तक छोटी-मोटी बातों पर किसी का कत्ल कर दिया जाना भी जारी है. हां, लालू और राबड़ी के जंगलराज से हटकर नीतीश कुमार की सत्ता में अपराध की बात करें तो अब राज्य में संगठित अपराध, सामूहिक नरसंहारों, अपहरण उद्योग पर लगाम तो लगी है. मगर इस लगाम का कोई फायदा पब्लिक को नहीं हुआ है.
शराबबंदी से सरकार और युवाओं को नुकसान
ऐसा क्यों? स्टेट मिरर हिंदी द्वारा पूछे जाने पर पत्रकार मुकेश बाल योगी बोले, “दरअसल साल 2016 में नीतीश कुमार ने जब से सूबे में शराबबंदी कानून लागू किया है. तब से राज्य में शराब ने हजारों करोड़ के काले कारोबार कहिए या फिर इंडस्ट्री का रूप ले लिया है. जो राज्य के लिए बेहद घातक साबित हो रहा है. इस शराबबंदी के बाद से बिहार में सुधार कम, तबाही, पुलिस की मनमानी, नकली शराब की उत्पादकता, शराब तस्करी, पुलिस शराब और सफेदपोशों के बीच घिनौने-घातक गठजोड़ की जड़ें और मजबूत कर दी हैं. इस शराबबंदी ने राज्य सरकार के खजाने को हर साल होने वाली हजारों करोड़ की आय के स्रोत पर तो ताला लगा ही दिया है.”
शराबबंदी इनकी तबाही का कारण बन गई
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी के मुताबिक, “शराबबंदी ने युवा पीढ़ी को भी अंधेरे में धकेल दिया है. अब बिहार के शहर क्या और देहात क्या? दोनों ही जगहों के तमाम युवा कम समय में रातों-रात मेहनत मशक्कत किए बिना ही, खुद को धन्नासेठ बनाने की गफलत में, शराब तस्करी के इस काले धंधे में धकेल देते हैं. कह सकता हूं कि नीतीश राज में क्राइम का चेहरा-मोहरा बदला है. बेशक आर्गेनाइज्ड क्राइम कम हुआ हो मगर राज्य से क्राइम खत्म तो नहीं हुआ है. सौ अपराधों पर एक शराबबंदी ही भारी पड़ गयी है.”
काहे का कम क्राइम...जब सिपाही का ही एनकाउंटर
स्टेट मिरर हिंदी की जानकारी के मुताबिक बिहार में क्राइम कम नहीं हुआ है. वहां की हुकूमत ने अपना मीडिया मैनेजमेंट इस कदर का मजबूत कर रखा है कि जिससे हुकूमत के प्रशासनिक जाल में मौजूद छेदों से भी छनकर कोई बड़ी खबर (अपराध या भ्रष्टाचार) बाहर आसानी से आ ही न सके. नेता, मंत्री, पुलिस भले ही अपनी अपनी खाल बचाने के लिए लालू राबड़ी के राज को जंगलराज और नीतीश कुमार के राज को ‘रामराज’ क्यों न बताते रहें. अंदर का सच तो मगर यह है कि बिहार पुलिस के निलंबित सिपाही सरोज कुमार सिंह को ही काबू करने के लिए, पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स को उसके साथ एनकाउंटर तक करना पड़ जाता है.
बिहार के समस्तीपुर जिले का रहने वाला सिपाही सरोज कुमार सिंह पुलिस की खाकी वर्दी पहनकर अपराध की घटनाओं को अंजाम दे रहा था. उसे काबू करने के लिए समस्तीपुर जिले के मोहिउद्दीनगर थाना इलाके में (सुलतानपुर गांव के करीब) एसटीएफ को मोर्चा संभालना पड़ गया. उसके अड्डे से पुलिस को एके-47 जैसी खतरनाक मार वाली राइफल, इंसास राइफल, कार्बाइन, भारी संख्या में कारतूस मिले. गिरफ्तार-सस्पेंडिड सिपाही सरोज सिंह प्रिंस मुखिया और नवीन सिंह का कत्ल करने के इरादे से उनकी तलाश में भटक रहा था.