Begin typing your search...

कौन हैं नील मोहन? टाइम मैगजीन ने चुना CEO ऑफ द ईयर 2025, अमेरिका में जन्म लेकिन लखनऊ से है खास कनेक्शन

TIME मैगजीन ने यूट्यूब के सीईओ नील मोहन को CEO ऑफ द ईयर 2025 चुना है. नील मोहन का जन्म अमेरिका के इंडियाना राज्य के लैफायेट शहर में हुआ था. उन्होंने अपना शुरुआती बचपन वहीं बिताया, लेकिन साल 1985 में जब वह 12 साल के थे, उनके माता-पिता भारत लौट आए और परिवार लखनऊ में बस गया था. यह बदलाव उनके लिए बड़ा और चुनौतीपूर्ण था.

कौन हैं नील मोहन? टाइम मैगजीन ने चुना CEO ऑफ द ईयर 2025, अमेरिका में जन्म लेकिन लखनऊ से है खास कनेक्शन
X
( Image Source:  X/@PopBase )
विशाल पुंडीर
Edited By: विशाल पुंडीर

Published on: 9 Dec 2025 11:24 AM

दुनिया के सबसे प्रभावशाली टेक लीडर्स में गिने जाने वाले नील मोहन को TIME मैगजीन ने साल 2025 का CEO ऑफ द ईयर घोषित किया है. यूट्यूब के शीर्ष पद पर रहते हुए उन्होंने न सिर्फ प्लेटफॉर्म की दिशा बदली, बल्कि उसे दुनिया में और भी मजबूत बनाया.

स्‍टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्‍सक्राइब करने के लिए क्लिक करें

मोहन की शांत नेतृत्व शैली, सोच-समझकर लिए गए निर्णय और बिना विचलित हुए काम करने की क्षमता ने उन्हें यह सम्मान दिलाया है. टाइम के अनुसार, मोहन बहुत कम बोलते हैं, लेकिन हर कदम पर गहरी रणनीति दिखती है. उन्हें खेलों का आनंद लेना, अपनी बेटियों के डांस रिसेप्शन में शामिल होना और साधारण सफेद शर्ट पहनना और बिल्कुल आम लोगों की तरह रहना पसंद है.

यूट्यूब के CEO पद तक पहुंचने का सफर

नील मोहन साल 2023 से यूट्यूब के सीईओ हैं. उन्होंने यह जिम्मेदारी उस समय संभाली जब गूगल की शुरुआती कर्मचारियों में शामिल और लंबे समय तक यूट्यूब की कमान संभालने वाली सुसान वोजिकी ने अपना पद छोड़ दिया. इससे पहले मोहन कंपनी में चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर के रूप में कार्यरत थे और साल 2008 में उन्होंने गूगल ज्वाइन किया था. इसके अलावा मोहन स्टारबक्स के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जहां उनका अनुभव और निर्णय क्षमता कंपनी की रणनीति को मजबूत दिशा देती है.

अमेरिका में जन्म, लखनऊ से कनेक्शन

नील मोहन का जन्म अमेरिका के इंडियाना राज्य के लैफायेट शहर में हुआ था. उन्होंने अपना शुरुआती बचपन वहीं बिताया, लेकिन साल 1985 में जब वह 12 साल के थे, उनके माता-पिता भारत लौट आए और परिवार लखनऊ में बस गया था. यह बदलाव उनके लिए बड़ा और चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उस समय वे हिंदी न बोल पाते थे, न लिख पाते थे.

हालांकि घर में कभी-कभी हिंदी होने के कारण वह भाषा थोड़ी समझ लेते थे. मोहन बताते हैं कि भारत में हाई स्कूल के दौरान बने दोस्त आज भी उनके सबसे करीबी मित्रों में शामिल हैं. भारत आने के बाद उन्हें 9वीं कक्षा की हिंदी और संस्कृत भी सीखनी पड़ी थी.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन

साल 1996 में नील मोहन ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरा किया. इसके बाद 2005 में उन्होंने स्टैनफोर्ड से एमबीए किया, जिसमें उन्हें प्रतिष्ठित Arjay Miller Scholar की उपाधि मिली, यह सम्मान उन छात्रों को मिलता है जो एमबीए क्लास के शीर्ष 10% में आते हैं और पढ़ाई में शानदार प्रदर्शन करते हैं.

मोहन न केवल स्टैनफोर्ड के पूर्व छात्र हैं, बल्कि स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस (GSB) एडवाइजरी काउंसिल और काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के भी सदस्य हैं.

काम की खबर
अगला लेख