जापान में 1990 के बाद से क्यों चला रहा और सियासी अस्थिरता का दौर, क्या है वजह, कौन-कब बने PM?

जापान में 1990 के बाद से राजनीतिक अस्थिरता लगातार बनी हुई है. बार-बार प्रधानमंत्री बदलने, आर्थिक सुस्ती (लॉस्ट डिकेड), सत्ताधारी दलों के भीतर गुटबाजी और घोटालों ने इस अस्थिरता को बढ़ाता है. जहां युद्ध–उपरांत दशकों तक जापान पर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) का दबदबा रहा, वहीं 1990 के बाद नेतृत्व के बार-बार बदलने से स्थिर शासन कोई भी पीएम नहीं दे पाया. इससे जापान की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा. कोइजुमी और शिंजो आबे को छोड़कर कोई अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया.;

( Image Source:  ANI )
Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 8 Sept 2025 2:07 PM IST

जापान अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था और तकनीकी ताकत के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, लेकिन राजनीतिक स्थिरता के मामले में यह देश 1990 के बाद से फिसड्डी साबित हुआ है. लगभग हर कुछ सालों में प्रधानमंत्री बदलना यहां आम हो गया है. सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों जापान में सियासी अस्थिरता बनी रही और कौन-कौन इस दौरान पीएम बने. फिलहाल, जापान के पीएम शिगेरु इशिबा ने अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं. उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया ताकि जापान में सत्तारूढ़ उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को टूटने से बचा सकें. यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दें कि जुलाई में हुए चुनाव में इशिबा के एलडीपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने उच्च सदन में अपना बहुमत खो दिया. था.

जापान में 1990 के बाद अस्थिर सरकार बनने की मुख्य वजह क्या है?

1. तेजी से बदलते प्रधानमंत्री

जापान में 2006 के बाद लगभाग हर एक से दो साल में नए प्रधानमंत्री बने. साल 2006 से 2012 के बीच में 6 अलग-अलग पीएम बने. इससे सरकारी नियम और नीति में स्थिरता की कमी देखी गई. इसकी वजह इस दौर में नेतृत्व का कमजोर होना, पीएम की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट और पार्टी के अंदर विरोध मुख्य वजह बने.

2. एलडीपी में आंतरिक गुटबाजी

एलडीपी बहुत समय से जापान की मुख्य सियासी पार्टी रही है, लेकिन इसके अंदर कई गुट (घुट) हैं जो आपस में टकराते रहे हैं.

इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी के आंतरिक मतभेद ने नेतृत्व को उभरने नहीं दिया. पार्टी के नेता नीतिगत मामलों में रुकावट डालते रहे.

3. आर्थिक मंदी

जापान में 1990 के बाद अर्थव्यस्था का विकास बहुत ही धीमा रहने की वजह से इस काल को आर्थिक नजरिए से 'लॉस्ट डिकेड्स' कहा जाता है. पिछले 35 साल के दौरान जापान में लोगों का सरकार पर भरोसा काम हुआ है. आर्थिक सुधारों में डर और बदलाव की वजह से असफलता हाथ लगी है. बुज़ुर्ग जनसंख्या और कम होती है युवा ताकत की भूमिका ने इस संकट बल दिया. जापान में जनसंख्या तेजी से बुढ़ापे की ओर जा रही है और युवाओं की संख्या बहुत कम हो रही है. इसका असर यह हुआ कि जापान सरकार की नीति निर्माण में नीति-निर्माण में दीर्घकालिक सोच की कमी देखने को मिलती है. पेंशन और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर खर्च का दबाव बना रहता है.

4. मीडिया और पब्लिक ओपिनियन

जापान में मीडिया और जनमत का पीएम की लोकप्रियता पर तेजी से असर डालताहै. जैसे ही किसी मुद्दे पर लोगों का विरोध बढ़ता है, पीएम पर इस्तीफे का दबाव बढ़ जाता है.

5. नौकरशाही केन्द्रित सरकार

जापान में कई बार निर्वाचित नेताओं के बजाय नौकरशाहों का प्रभाव ज्यादा होता है. निर्वाचित नेता अपने निर्णयों को ठीक से लागू नहीं करा पाते. तेजी से बदलते पीएम और पार्टी के अंदर गुटबाजी भी इसके लिए जिम्मेदार है. हालांकि, 2012 के 2020 के दौरन शिंजो आबे के नेतृत्व में स्थिरता देखी गई, जिसकी वजह से उन्होंने लंबे समय तक पीएम का पद संभाला

इससे पहले 2001 से 2006 जुनिचिरो कोइज़ुमी भी लंबे समय तक टिकने वाले पीएम के अपवाद रहे. वे करिश्माई नेता थे और उन्होंने कुछ हद तक जापान में सरकार को स्थिरता दी. 2006–2012 तक हर साल लगभग नया प्रधानमंत्री आया (अबे शिंजो, फुकुदा, आसो, हतायामा, काने, नोदा).

जापान के प्रधानमंत्री (1990 से अब तक)

1. तोशिकी कैइफू (1990–1991)

2. कीइची मियाजावा (1991–1993)

3. मोरिहिरो होसोकावा (1993–1994)

4. त्सुतोमु हाता (1994)

5. टोमीइची मुरायामा (1994–1996)

6. रयुतारो हाशिमोतो (1996–1998)

7. केइजो ओबूची (1998–2000)

8. योशिरो मोरी (2000–2001)

9. जुनीचिरो कोइज़ुमी (2001–2006)

10. शिंजो आबे (2006–2007)

11. यासुओ फुकुदा (2007–2008)

12. तारो आसो (2008–2009)

13. युकियो हातोयामा (2009–2010)

14. नाओतो कान (2010–2011)

15. योशिहिको नोदा (2011–2012)

16. शिंजो आबे (2012–2020) – दूसरा कार्यकाल

17. योशिहिदे सुगा (2020–2021)

18. फुमिओ किशिदा (2021–वर्तमान)

19. शिगेरु इशिबा (2024–2025)

जापान में 1955 से 1990 तक लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने लगभग लगातार शासन किया. 1955 सिस्टम के तहत LDP इतनी मजबूत रही कि विपक्ष कमजोर साबित होता रहा. जापान की अर्थव्यवस्था जापानी चमत्कार कहलाती थी. तेज औद्योगिक विकास, निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था और स्थिरता है.

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