क्या है सऊदी अरब का कफाला सिस्टम? 1.3 करोड़ प्रवासी मजदूरों को मिली आज़ादी, मिलेगा कानूनी सुरक्षा और अधिकार

सऊदी अरब ने आधी सदी पुरानी कफाला प्रणाली को समाप्त कर विदेशी मजदूरों को नौकरी बदलने, देश छोड़ने और कानूनी सुरक्षा का अधिकार दिया. अब 1.3 करोड़ प्रवासी मजदूरों को अपने अधिकारों की सुरक्षा, बेहतर जीवन और सम्मान मिल सकेगा. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि कानून बदलना पहला कदम है, असली बदलाव तब आएगा जब ज़मीनी स्तर पर मजदूरों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित होगा.;

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Curated By :  नवनीत कुमार
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लगभग पचास सालों से खाड़ी देशों में लाखों विदेशी मजदूरों की जिंदगी एक ही शब्द के इर्द-गिर्द घूमती थी, कफाला. यह “स्पॉन्सरशिप सिस्टम” तय करता था कि कोई मजदूर नौकरी बदल सकता है या नहीं, देश छोड़ सकता है या नहीं, या अपने हक के लिए आवाज उठा सकता है या नहीं. आलोचक इसे 'आधुनिक गुलामी' तक कहते रहे.

अब सऊदी अरब ने पहली बार इस कफाला सिस्टम को आधिकारिक रूप से खत्म कर दिया है. एक ऐसा फैसला जिसने 1.3 करोड़ प्रवासी मजदूरों के भविष्य को नई दिशा दी है. लेकिन सवाल यह है कि यह सिस्टम था क्या, क्यों विवादित था और अब मजदूरों की जिंदगी में कितना बदलाव आने वाला है?

कफाला सिस्टम क्या था?

कफाला सिस्टम 1950 के दशक में खाड़ी देशों में शुरू किया गया एक कानूनी ढांचा था. इसका मकसद था विदेशी मजदूरों को सीमित अधिकारों के साथ काम पर रखना ताकि तेल-समृद्ध देशों की अर्थव्यवस्था को सस्ता श्रम मिल सके, लेकिन नागरिकता देने की जरूरत न पड़े. इस प्रणाली के तहत हर प्रवासी मजदूर की कानूनी स्थिति उसके स्पॉन्सर या कफील पर निर्भर करती थी, जो उसका नियोक्ता होता था.

मजदूरों के अधिकारों पर स्पॉन्सर का कब्ज़ा

कफाला सिस्टम में नियोक्ता ही मजदूर के वीजा, निवास, नौकरी बदलने और देश छोड़ने के अधिकारों को नियंत्रित करता था. बिना स्पॉन्सर की अनुमति के न तो मजदूर नौकरी बदल सकता था, न देश छोड़ सकता था. कई बार नियोक्ता मजदूरों के पासपोर्ट जब्त कर लेते थे, वेतन रोक लेते थे या डिपोर्टेशन की धमकी देते थे और मजदूर के पास शिकायत करने का कोई रास्ता नहीं होता था.

विवादों का केंद्र क्यों बना कफाला सिस्टम?

समय के साथ कफाला को दुनिया की सबसे विवादित श्रम नीतियों में गिना जाने लगा. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और मानवाधिकार समूहों ने इसे जबरन श्रम और मानव तस्करी की जड़ बताया. कई मजदूर शारीरिक और मानसिक शोषण के शिकार बने, विशेषकर घरेलू कामगार, निर्माण श्रमिक और कृषि मजदूर. रिपोर्टों में सामने आया कि कई मामलों में हालात गुलामी जैसे थे.

डरावने हैं आंकड़े

सऊदी अरब में करीब 1.34 करोड़ प्रवासी मजदूर रहते हैं, जो देश की कुल आबादी का लगभग 42% हैं. इनमें से बड़ी संख्या भारत, बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस जैसे देशों से आती है. लगभग 40 लाख घरेलू कामगार इस सिस्टम के तहत काम करते रहे, जो सबसे असुरक्षित वर्ग था.

अब खत्म क्यों किया गया कफाला सिस्टम?

सऊदी अरब ने जून 2025 में इस सिस्टम को खत्म करने का फैसला किया. यह विजन 2030 योजना का हिस्सा है जो क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की आर्थिक और सामाजिक सुधार नीति है. इसका मकसद देश की अर्थव्यवस्था को विविध बनाना, विदेशी निवेश आकर्षित करना और सऊदी की वैश्विक छवि सुधारना है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय दबाव भी एक बड़ा कारण बना, क्योंकि वैश्विक मंचों पर मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर खाड़ी देशों की आलोचना होती रही है.

नए सिस्टम में क्या बदलाव आए?

सऊदी सरकार ने कफाला की जगह कॉन्ट्रैक्ट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सिस्टम लागू किया है. अब मजदूरों को नौकरी बदलने और देश छोड़ने की स्वतंत्रता मिलेगी. उन्हें अब किसी एग्ज़िट वीज़ा या नियोक्ता की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. साथ ही, श्रमिक अब लेबर कोर्ट में अपनी शिकायतें दर्ज कर सकेंगे और कानूनी सुरक्षा प्राप्त करेंगे.

क्या वास्तव में बदलाव संभव है?

विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी सुधार जरूरी तो हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत बदलने में वक्त लगेगा. कई नियोक्ता अब भी पुराने तौर-तरीकों से काम कर रहे हैं और नौकरी बदलने या देश छोड़ने पर रोक लगाते हैं. सबसे बड़ी चुनौती घरेलू कामगारों की सुरक्षा की है, जिनकी स्थिति अब भी कमजोर बनी हुई है.

भर्ती प्रक्रिया की चुनौतियां

श्रमिकों के मूल देशों में भर्ती प्रक्रिया में भी भारी भ्रष्टाचार है. कई एजेंसियां मजदूरों से ऊंची फीस वसूलती हैं और फर्जी अनुबंध देती हैं. सऊदी कानून में इन प्रथाओं पर सख्ती से रोक नहीं है. इस कारण मजदूर सुधारों के बाद भी आर्थिक और कानूनी शोषण का सामना कर सकते हैं.

मानवाधिकार समूहों की राय

ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य संगठनों का कहना है कि, “कानून बदलना पहला कदम है, लेकिन असल सुधार तब दिखेगा जब हर मजदूर को समान सुरक्षा और सम्मान मिलेगा.” उनका तर्क है कि जब तक लागू करने वाली संस्थाएं सक्रिय नहीं होंगी और नियोक्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा, तब तक कफाला के साये से पूरी मुक्ति मुश्किल है.

नई शुरुआत या पुरानी कहानी का नया चेहरा?

कफाला सिस्टम का अंत सऊदी अरब में एक ऐतिहासिक मोड़ है. यह न सिर्फ आर्थिक सुधार का प्रतीक है बल्कि मानवाधिकारों की दिशा में भी बड़ा कदम है. लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए यह आज़ादी, गरिमा और न्याय की नई उम्मीद है. लेकिन क्या यह सुधार वास्तविक स्वतंत्रता में बदलेगा, या यह केवल छवि सुधारने की कोशिश है. इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा.

खाड़ी क्षेत्र के लिए रहेगा बढ़िया

कफाला का अंत सिर्फ एक कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि अरब दुनिया की श्रम संस्कृति में संभावित क्रांति की शुरुआत है. अगर सऊदी अरब इस बदलाव को ईमानदारी से लागू करता है, तो यह कदम खाड़ी क्षेत्र के बाकी देशों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है. एक ऐसे भविष्य की ओर, जहां मजदूर सिर्फ काम करने वाले हाथ नहीं, बल्कि अधिकारों वाले इंसान बन सकें.

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