बातचीत से निकले हल... तुर्की ने UN में उठाया कश्मीर का मुद्दा, एर्दोगन ने पाकिस्तान को बता दिया पाक-साफ; भाषण में क्या क्या बोले?
संयुक्त राष्ट्र महासभा में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को क्लीन चिट देने की कोशिश की. एर्दोगन ने भारत-पाकिस्तान को बातचीत की नसीहत दी, जबकि भारत ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है. भारत ने तुर्की को याद दिलाया कि सीमा पार आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान है, जिस पर चुप रहना सबसे बड़ा पाखंड है.;
पाकिस्तान की तरह उसका सबसे बड़ा दोस्त तुर्की भी अपनी पुरानी आदतों से बाज नहीं आ रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराने वाला तुर्की अब कश्मीर के मुद्दे पर टांग अड़ाता दिख रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने मंगलवार (23 सितंबर) को कश्मीर का मुद्दा उठाया और इसे बातचीत से हल करने की नसीहत दी.
एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र मंच से कहा कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर समस्या का समाधान बातचीत से निकालना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि यह हल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के फैसलों और कश्मीरी लोगों की इच्छाओं के आधार पर होना चाहिए. इसके साथ ही एर्दोगन ने अप्रैल में हुए भारत-पाकिस्तान सीजफायर समझौते का स्वागत किया.
आतंकवाद पर पाकिस्तान को दी क्लीन चिट
तुर्की के राष्ट्रपति आतंकवाद के मुद्दे पर भी पाकिस्तान को बचाते नज़र आए. उन्होंने बयान दिया कि भारत और पाकिस्तान को मिलकर आतंकवाद से लड़ना चाहिए. एर्दोगन के इस रुख ने साफ कर दिया कि उनका झुकाव हमेशा पाकिस्तान की ओर रहा है. ऑपरेशन सिंदूर में भी तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था.
कश्मीर आंतरिक मामला: भारत
भारत कई बार साफ कर चुका है कि कश्मीर उसका आंतरिक मसला है और इसमें किसी अन्य देश की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी. विदेश मंत्रालय पहले भी तुर्की के ऐसे बयानों को खारिज कर चुका है और इस बार भी भारत ने सख्त आपत्ति दर्ज कराई.
गाजा पर इजरायल को घेरा
अपने भाषण में एर्दोगन ने इजरायल पर भी निशाना साधा. उन्होंने गाजा में हो रहे हमलों को नरसंहार करार दिया और कहा कि निर्दोष लोगों की मौतों पर दुनिया को गंभीर चिंता जतानी चाहिए. हालांकि, भारत को लेकर उनका पक्षपातपूर्ण रुख साफ नज़र आया.
पिछले साल क्यों चुप रहे थे एर्दोगन?
दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल 2024 में एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का ज़िक्र तक नहीं किया था. उस वक्त तुर्की ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा था और भारत के खिलाफ बोलना उसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता था. रणनीतिक कारणों से उन्होंने चुप्पी साध ली थी.
अब फिर पुराना राग अलापा
जैसे ही तुर्की का ब्रिक्स में शामिल होने का मुद्दा ठंडा पड़ा, एर्दोगन अपने पुराने रुख पर लौट आए. इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान दौरे के दौरान भी उन्होंने कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय दखल की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि तुर्की हमेशा कश्मीरी भाइयों के साथ खड़ा रहेगा.
भारत ने दो टूक दिया जवाब
भारत ने एक बार फिर तुर्की के राष्ट्रपति के बयान को पूरी तरह खारिज किया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और किसी बाहरी देश को इस पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं. उन्होंने उलटे सवाल उठाया कि तुर्की क्यों पाकिस्तान के आतंकवाद पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि असली खतरा वहीं से आता है.