17 साल बाद 'डार्क प्रिंस' की वापसी: तारीक रहमान के लौटते ही बांग्लादेश में सियासी भूचाल, भारत के लिए क्यों मायने रखता है ये मोमेंट

बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा घटनाक्रम सामने आया है. 17 साल के निर्वासन के बाद बीएनपी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारीक रहमान की ढाका वापसी होने जा रही है. फरवरी में होने वाले आम चुनाव से पहले उनकी वापसी को सत्ता संतुलन बदलने वाला कदम माना जा रहा है. यूनुस सरकार के दौर में बढ़े भारत-विरोधी रुख और जमात-ए-इस्लामी के उभार के बीच तारीक रहमान की एंट्री भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिहाज से भी अहम मानी जा रही है.;

( Image Source:  X/tariquebd78 )
Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 25 Dec 2025 9:42 AM IST

बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. 17 वर्षों के लंबे निर्वासन के बाद, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के शीर्ष नेता तारीक रहमान की ढाका वापसी होने जा रही है. यह सिर्फ एक नेता का घर लौटना नहीं, बल्कि हिंसा, अस्थिरता और कट्टरपंथ से जूझ रहे बांग्लादेश के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकेत है.

फरवरी में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले हो रही यह वापसी न केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति को झकझोर सकती है, बल्कि भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा, कूटनीति और रणनीतिक हितों पर भी गहरा असर डाल सकती है. खासकर ऐसे समय में, जब अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस के दौर में भारत-विरोधी स्वर तेज़ हुए हैं.

स्‍टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्‍सक्राइब करने के लिए क्लिक करें

17 साल का निर्वासन और अचानक वापसी

तारीक रहमान 2008 से लंदन में रह रहे थे. उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराया गया था, जिनमें BNP का दावा है कि अधिकतर राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा थे. अब, लगभग दो दशक बाद, उनकी वापसी को BNP के पुनर्जागरण के तौर पर देखा जा रहा है, खासकर तब जब पार्टी नेतृत्व का बड़ा चेहरा फिर से ज़मीन पर सक्रिय होगा.

चुनाव से पहले टाइमिंग क्यों अहम है?

फरवरी में प्रस्तावित आम चुनाव हिंसा और अनिश्चितता के माहौल में होने जा रहे हैं. सत्तारूढ़ अवामी लीग चुनाव से बाहर है और यह राजनीतिक खालीपन कई ताकतों को उभार रहा है. ऐसे में तारीक रहमान की वापसी BNP को संगठित करने और चुनावी बढ़त दिलाने की कोशिश मानी जा रही है.

भारत के लिए क्यों ‘गुड न्यूज़’ मानी जा रही है यह वापसी?

दिल्ली में रणनीतिक हलकों में BNP को फिलहाल कट्टरपंथी विकल्पों की तुलना में अपेक्षाकृत उदार ताकत के रूप में देखा जा रहा है. खास चिंता जमात-ए-इस्लामी को लेकर है, जिसे पाकिस्तान की ISI से नजदीकी के लिए जाना जाता है. BNP का मजबूत होना भारत के लिए एक बैलेंसिंग फैक्टर बन सकता है.

यूनुस सरकार और भारत-विरोधी झुकाव

शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद, यूनुस सरकार के दौरान बांग्लादेश की विदेश नीति में बड़ा बदलाव देखा गया. भारत से दूरी और पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकियों ने दिल्ली की चिंता बढ़ाई है. ऐसे में BNP की वापसी से नीति संतुलन की उम्मीद की जा रही है.

मोदी का संकेत और बदला माहौल

1 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खालिदा जिया के स्वास्थ्य को लेकर सार्वजनिक चिंता जताई थी. BNP ने खुले तौर पर धन्यवाद दिया. यह वर्षों बाद दोनों पक्षों के बीच नरमी का दुर्लभ संकेत था. इसे संभावित रिश्तों की रीसेट बटन के तौर पर देखा गया.

जमात से दूरी और ‘बांग्लादेश फर्स्ट’ लाइन

तारीक रहमान ने साफ कर दिया है कि BNP जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन नहीं करेगी. उन्होंने ‘Not Delhi, Not पिंडी, Bangladesh First’ का नारा दिया, जो न तो भारतपरस्ती है और न पाकिस्तानपरस्ती, बल्कि एक संतुलित राष्ट्रवाद की कोशिश है.

ढाका में शक्ति प्रदर्शन, सुरक्षा अलर्ट

ढाका एयरपोर्ट से लेकर शहर तक लगभग 50 लाख BNP कार्यकर्ताओं के जुटने की तैयारी है. सरकार ने हाई-सिक्योरिटी अलर्ट जारी किया है, एयरपोर्ट एक्सेस सीमित कर दी गई है और विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं. यह ताकत दिखाने की कोशिश कट्टरपंथी गुटों को असहज कर रही है.

युवाओं की राजनीति और विश्वविद्यालय फैक्टर

हालिया चुनावों में ढाका विश्वविद्यालय में जमात की छात्र इकाई की अप्रत्याशित जीत ने खतरे की घंटी बजाई है. BNP अब खुद को युवाओं के लिए एक वैकल्पिक लोकतांत्रिक मंच के रूप में पेश करना चाहती है.

‘डार्क प्रिंस’ की छवि से बाहर आने की चुनौती

2000 के दशक में मीडिया ने तारीक रहमान को ‘डार्क प्रिंस’ कहा था. अब उनकी सबसे बड़ी चुनौती उसी छवि को बदलना है. खासतौर पर ऐसे देश में, जो लंबे समय से हिंसा, विरोध और अव्यवस्था से थका हुआ है.

भारत की नजरें ढाका पर टिकीं

तारीक रहमान की वापसी से बांग्लादेश में सत्ता संतुलन बदल सकता है. क्या BNP कट्टरपंथ को रोक पाएगी? क्या भारत-बांग्लादेश रिश्ते फिर पटरी पर लौटेंगे? या फिर सियासी टकराव और गहराएगा. इन सवालों के जवाब आने वाले हफ्तों में मिलेंगे. दिल्ली फिलहाल हर कदम पर बारीकी से नजर बनाए हुए है.

Similar News