बांग्लादेश चुनाव से पहले उस्मान हादी की हत्या से किसे फायदा? कुछ और ही कहानी बयां कर रहा ढाका-8 सीट का सियासी गणित
बांग्लादेश में चुनाव से पहले एंटी-इंडिया कट्टरपंथी नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या से न तो प्रतिबंधित आवामी लीग को कोई राजनीतिक फायदा होता है और न ही चुनावी दौड़ में आगे चल रही BNP को. विशेषज्ञों का मानना है कि इस हत्या के असली लाभार्थी जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी छात्र संगठन शिबिर और उनसे जुड़े कट्टरपंथी गुट हैं, जो अराजकता, सांप्रदायिक तनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने से फायदा उठाते हैं.
बांग्लादेश में दिनदहाड़े गोली मारकर मारे गए एंटी-इंडिया कट्टरपंथी नेता और ढाका-8 सीट से उम्मीदवार शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने देश को चुनावी साल में उबाल की स्थिति में ला दिया है. फरवरी में प्रस्तावित आम चुनाव से पहले यह हत्या सिर्फ एक आपराधिक वारदात नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरपंथ और सत्ता संघर्ष की बड़ी तस्वीर की ओर इशारा करती है.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
हालांकि बांग्लादेश पुलिस की जांच अब तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है, लेकिन सवाल लगातार गूंज रहा है कि आख़िर उस्मान हादी की हत्या से किसे फायदा हुआ?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञ और विश्लेषक मानते हैं इस हत्या से न तो प्रतिबंधित आवामी लीग को कोई फायदा है और न ही चुनावी दौड़ में आगे चल रही BNP को. बल्कि फायदा उन ताकतों को मिल रहा है, जो अराजकता, सांप्रदायिक डर और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पटरी से उतरने पर फलती-फूलती हैं.
हत्या के बाद सियासी बवाल, लेकिन जांच शून्य
12 दिसंबर को बाइक सवार नकाबपोश हमलावरों ने उस्मान हादी को गोली मार दी. हादी न सिर्फ कट्टरपंथी एंटी-इंडिया चेहरा थे, बल्कि शेख हसीना विरोधी ‘इंक़िलाब मंच’ के प्रवक्ता भी थे. हत्या के बाद से बांग्लादेश में भावनाएं उफान पर हैं, लेकिन पुलिस अब तक यह भी साफ नहीं कर पाई है कि आरोपी फैसल करीम कहां है.
इस्लामिस्टों ने तुरंत गढ़ा एंटी-इंडिया नैरेटिव
हत्या के तुरंत बाद बांग्लादेश के कट्टरपंथी और इस्लामिस्ट गुटों ने एक सुर में यह दावा करना शुरू कर दिया कि आरोपी फैसल करीम भारत भाग गया है. हालांकि ढाका पुलिस ने कम से कम दो बार साफ कहा कि आरोपी के भारत भागने का कोई सबूत नहीं है और उसकी लोकेशन को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं है. इसके बावजूद, कट्टरपंथी संगठनों ने फैसल करीम को शेख हसीना की आवामी लीग से जोड़ दिया और इस बहाने भारत विरोधी भावनाएं भड़काईं. दिलचस्प बात यह है कि एक ओर मोहम्मद यूनुस प्रशासन ने औपचारिक रूप से भारत से सहयोग की अपील की, वहीं दूसरी ओर इस्लामिस्ट सड़कों पर भारत के खिलाफ नारे लगाते रहे.
भारत के दूतावास तक को बनाया निशाना
उस्मान हादी की मौत की खबर फैलते ही भारत विरोधी नारे, भारतीय राजनयिक मिशनों को धमकियां और ढाका स्थित भारतीय दूतावास के खिलाफ प्रदर्शन तेज़ हो गए. कुछ दिन बाद खुद बांग्लादेश की स्पेशल ब्रांच और डिटेक्टिव ब्रांच ने स्वीकार किया कि उनके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि आरोपी भारत में है.
यूनुस सरकार को धमकी: ‘इंक़िलाब मंच’ का अल्टीमेटम
इस बीच, इंक़िलाब मंच ने यूनुस सरकार को खुली धमकी दी. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इंसाफ नहीं मिला तो जन आंदोलन के ज़रिये सरकार गिरा दी जाएगी. यानी हत्या, जांच में नाकामी और सड़कों पर दबाव - तीनों एक साथ.
असली फायदा किसे? उंगली जमात-शिबिर पर
Paris स्थित बांग्लादेशी मूल के जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट नाहिद हेलाल ने कहा कि “इस हत्या से सबसे ज़्यादा फायदा जमात और उससे जुड़े कट्टरपंथी गुटों को मिला है.” हेलाल के मुताबिक, इस हत्या ने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का बहाना दिया, मीडिया को डराने का मौका दिया, आवामी लीग कार्यकर्ताओं की हत्याओं को बढ़ावा मिला और सबसे अहम - चुनाव प्रक्रिया को पटरी से उतारने का हथियार मिल गया.
ढाका-8 सीट और राजनीतिक गणित
हेलाल ने अपने विश्लेषण में बताया कि BNP के दिग्गज नेता मिर्ज़ा अब्बास ढाका-8 सीट से मैदान में हैं. उस्मान हादी एक निर्दलीय उम्मीदवार थे और राजनीतिक रूप से बेहद कमजोर. हेलाल का कहना है कि “हादी और मिर्ज़ा अब्बास की कोई तुलना नहीं थी. हादी का हटना BNP को नुकसान नहीं देता.” लेकिन इसी सीट पर नजर थी इस्लामी छात्र संगठन शिबिर के नेता अबू शादिक कायम की. यानी हादी का हटना जमात-शिबिर के लिए रास्ता साफ करता है.
‘अराजकता से मुनाफा करने वाले गुट’
जियो-पॉलिटिक्स रिसर्चर राजा मुनीब ने भी यही बात दोहराई. उनके मुताबिक, “इस हत्या के असली लाभार्थी पारंपरिक पार्टियां नहीं, बल्कि NCP और जमात जैसे गुट हैं.” ये वही ताकतें हैं जो स्थिर चुनाव नहीं बल्कि अराजक माहौल चाहती हैं.
सर्वे भी इशारा करता है जमात की मजबूती की ओर
US आधारित थिंक टैंक International Republican Institute (IRI) के सर्वे में सामने आया कि 33% लोग BNP को वोट देने को तैयार हैं और 29% जमात को. जमात को पसंद करने वालों की संख्या 53% है जो कि BNP से भी ज्यादा है. वहीं आवामी लीग पर प्रतिबंध और जातीय पार्टी के कमजोर होने के बाद, जमात को सीधा फायदा मिलता दिख रहा है.
BNP नेता का आरोप: आरोपी को जमानत दिलाने वाला जमात नेता
BNP नेता और पूर्व सांसद निलोफर चौधरी मोनी ने बड़ा आरोप लगाया कि आरोपी फैसल करीम को जमात नेता और सुप्रीम कोर्ट वकील मोहम्मद शिशिर मुनिर ने दो बार जमानत दिलवाई थी. उन्होंने एक टीवी चैनल पर कहा, “मैं जिम्मेदारी से कह रही हूं… अगर ज्यादा बोली तो घर नहीं लौट पाऊंगी.”
‘तीसरी, लोकतंत्र विरोधी ताकत’ की एंट्री
ढाका की लेखिका मरुफा यास्मिन ने लिखा कि “जब दो मुख्य राजनीतिक ताकतों के बीच भरोसा टूटता है, तब एक तीसरी, लोकतंत्र विरोधी शक्ति उभरती है.” किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन संकेत साफ थे.
पाकिस्तान कनेक्शन का आरोप
पूर्व भारतीय राजदूत वीणा सिकरी ने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी इस्लामाबाद के इशारे पर बांग्लादेशी सेना पर प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने यूनुस की चुप्पी और बढ़ते भारत विरोध को बाहरी साजिश का हिस्सा बताया.
हादी की मौत, चुनाव से पहले अराजकता का टूल
तस्वीर साफ है कि उस्मान हादी की हत्या का फायदा न BNP को है, न आवामी लीग को, फायदा उन कट्टरपंथी गुटों को है, जो चुनाव नहीं बल्कि अराजकता चाहते हैं. हादी की हत्या, आरोपी का गायब होना और एंटी-इंडिया नैरेटिव - सब मिलकर बांग्लादेश के चुनावी भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहे हैं.





