EXCLUSIVE: नेपाल, जिस चीन-अमेरिका के हाथों में खेल रहा है उनकी एजेंसियां नेपाल और उसकी संसद बचाने में असफल क्यों हुईं?
नेपाल में सोमवार को गुस्साई भीड़ संसद में घुस गई और जमकर तोड़फोड़, आगजनी और पथराव किया. हालात बेकाबू होने पर पुलिस फायरिंग में 19 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई. युवाओं का गुस्सा सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध से भड़का. हालांकि, इस आंदोलन के पीछे बड़े राजनीतिक षड्यंत्र और मास्टरमाइंड ताकतों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल का झुकाव चीन और अमेरिका की ओर बढ़ रहा है, जिससे भारत को सतर्क रहना होगा. संसद पर कब्जे ने नेपाल की स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.;
सोमवार को बीते कल के भारत का छोटा भाई और आज चतुर चीन व मक्कार अमेरिका की गोद में झूल रहा नेपाल सुलग उठा. गुस्साई भीड़ नेपाली संसद में घुस पड़ी. ठीक उसी स्टाइल में जैसे कुछ समय पहले बांग्लादेश में बेकाबू भीड़ ने किया था. नेपाल की संसद के भीतर पहुंची भीड़ ने जमकर तोड़फोड़, आगजनी-पथराव किया.
संसद और सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश में नेपाली पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में 19 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई. इन मौतों ने पहले से ही गुस्साई भीड़ के लिए आग में घी का काम कर डाला. पहले से ही उग्र भीड़ के गुस्से का ‘उग्रतम’ रूप और भयावह हो उठा. कुल जमा खबर लिखे जाने तक नेपाल का ससंद भवन भीड़ और पुलिस व नेपाली सुरक्षाकर्मियों की भीड़ से घिरा हुआ है.
18 से 35 साल के युवाओं में गुस्सा
कहा जा रहा है कि गुस्साई भीड़ में लाखों की तादाद में युवा शामिल हैं. जिनकी उम्र 18 से 35 साल रही है. आखिर युवाओं की ही भीड़ इस कदर गुस्से में क्यों? इसके पीछे नेपाल प्रशासन और वहां की सरकार की दलील है कि, “कुछ समय पहले नेपाली हुकूमत ने देश में 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पाबंद कर दिए. जैसे कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, एक्स (पहले ट्विटर) आदि-आदि. इसी से युवाओं की भीड़ विरोध में सड़कों पर उतर आई.”
लाजिमी है सवाल पैदा होना
चलिए नेपाल सरकार की यह दलील मान ली जाए तो सवाल पैदा होना लाजिमी है कि, आखिर इन गुस्साए युवाओं की भीड़ हाथों में “भ्रष्ट नेपाल सरकार को हटाओ, प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली महाभ्रष्ट है” की तख्तियां और बैनर क्यों थे? सरकार का तो ताल ठोंककर दावेदारी कर रही है कि, नेपाल के युवाओं की भीड़ सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के पाबंद किए जाने से नाराज है. तब फिर सरकार और नेपाली प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली के भ्रष्ट होने का मुद्दा कैसे इस बवाल में बुरी तरह से उछाल कर ‘जलाया-झोंका-फूंका’ जा रहा है? इसी तरह के और भी तमाम ज्वलंत लेकिन भारत के हितकारी सवालों के जवाबों के लिए सोमवार (8 सितंबर 2025) को नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने एक्सक्सूलिव बात की, भारतीय फौज के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी से.
भारत न करे गलती
भारतीय थलसेना के “कोर ऑफ इंजीनियर्स” से रिटायर जेएस सोढ़ी एनडीए, खड़कवासला और आईआईटी कानपुर के काबिल स्टूडेंट्स में शुमार रहे हैं. ले. कर्नल जे एस सोढ़ी कहते हैं, “नेपाल में जो कुछ हो रहा है उस पर भारत को हैरान होने की नहीं, इस सब बवाल से हमें सतर्क-चौकन्ना रहने की जरूरत है. क्योंकि बीते कल में खुद को भारत का छोटा भाई कहने वाला नेपाल बीते कई साल से अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए पाकिस्तान की तरह ही चतुर चीन और मक्कार अमेरिका की गोद में बैठकर झूल रहा है. अब नेपाल को अपना छोटा भाई समझने की गलती भारत न कर बैठे. हालांकि, हिंदुस्तानी हुकूमत नेपाल के इस बदले हुए रुख को काफी पहले से ताड़े-भांपे बैठा है.”
चीन के चंगुल में फंस चुके हैं पड़ोसी देश
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में भारतीय थलसेना के अनुभवी लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी बोले, “देखिए भारत जिस तरह से कुछ साल पहले तक अपने पड़ोसी दोस्तों (नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान) पर आंख मूंदकर विश्वास कर रहा था. अब सिवाय भूटान के उस तरह का इनमें बाकी और कोई देश भारत के लिए नहीं बचा है. बांग्लादेश-नेपाल-श्रीलंका बुरी तरह से चीन के चंगुल में फंस चुके हैं. चीन इनके ऊपर पानी की तरह दौलत लुटा रहा है. नेपाल-बांग्लादेश, श्रीलंका-अफगानिस्तान-बांग्लादेश को और सबसे पहले चाहिए भी क्या सिवाये दौलत के? पाकिस्तान तो जन्म-जात भारत का दुश्मन है ही. इसलिए उसका तो नाम लेना भी मैं गुनाह समझता हूं. हां, अब न केवल चीन-अमेरिका से, यद्यपि भारत को अपने पड़ोसी बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका को भी शक की नजर से देखना चाहिए.”
युवाओं की नहीं, किसी और की है प्लानिंग
विशेष लंबी बातचीत के दौरान भारतीय थलसेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं, “दरअसल आज जो कुछ नेपाल में आग लगी है. इसके पीछे बेशक वहां 26 सोशल मीडिया प्लटेफार्म्स के ऊपर पाबंदी लगाया जाना एक वजह हो सकती है. मगर जिस तरह से रविवार और सोमवार को नेपाल के युवा एक जबरदस्त प्लानिंग के तहत सड़कों पर उतरे और उतरते ही सीधे देश की संसद में जा घुसे. यह प्लानिंग सिर्फ युवाओं की नहीं हो सकती है. इसके पीछे मुझे बड़ी साजिश-षडयंत्र की बू आ रही है. संसद के अंदर भीड़ को जा घुसाने के पीछे कोई मजबूत और नेपाल के अंदर का ही मास्टरमाइंड दिमाग है.”
इसके पीछे राजशाही की वापसी वाली ताकतें तो नहीं!
क्या इस आंदोलन-विरोध प्रदर्शन की तह में या इस आंदोलन को इस कदर का उग्र-खूनी बनाने के पीछे, नेपाल में राजशाही से हटाए जा चुके भी कुछ किरदार शामिल हो सकते हैं? जो आज की मौजूदा सरकार से खार खाए बैठे हैं. और इस वक्त देश के युवाओं में सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को पाबंद करने के खिलाफ उठे गुस्से को, यह राजशाही वापसी का ख्वाब देखने वाली ताकतें पीछे से इस्तेमाल कर रही हों. ताकि यह गुस्साई भीड़ देश में कुछ उस हद की अस्थिरता पैदा कर सके, जिससे मौजूदा प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली और उनकी सरकार को उखाड़ फेंक कर, फिर से एक बार देश में “राजशाही” को वापिस लाने की कोशिश की जा सके?
स्टेट मिरर हिंदी के इस बेहद अहम सवाल के जवाब में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी बोले, “किसी भी संभावना से फिलहाल इनकार या स्वीकृति देना जल्दबाजी होगा. इस वक्त जिस तरह से नेपाल जल रहा है. गुस्साई भीड़ नेपाली संसद में जा घुसी है. इस तरह की अराजकता के पीछे सिर्फ और सिर्फ देश में सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स बंद कर देना भर तो एकमात्र कारण नहीं हो सकता है. हां, यह जरूर कह सकता हूं कि इस तरह के आंदोलन और आंदोलनकारी जब किन्हीं बड़े मास्टरमाइंड दिमागों के हाथ में खेलने लगते हैं तो वह, किसी भी देश को अस्थिर करने के लिए काफी होते हैं.”
नेपाल जलाने में चीन-अमेरिका का हाथ नहीं!
आज नेपाल के जो हालात हैं इसके लिए क्या चीन और अमेरिका सीधे तौर पर जिम्मेदार हो सकते हैं? पूछने पर जे एस सोढ़ी ने कहा, “नहीं बिलकुल नहीं. हाल-फिलहाल वो वक्त नहीं आया है जिसके चलते चीन और अमेरिका की हुकूमतें सीधे नेपाल को जलवाने के लिए कूद पड़ें. हां, मुझे आशंका इस बात की जरूर है कि जिन ताकतवर अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों को करोड़ों-अरबों रुपए की आमदनी का नुकसान, नेपाल सरकार द्वारा अपने यहां सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पाबंद करने से हो रहा है, उससे बौखलाई अमेरिकन सोशल मीडिया कंपनियों ने नहीं नेपाल के कुछ युवाओं और कुछ सरकार विरोधी तत्वों को मोटी रकम के बदले न बहला-फुसला लिया हो. जो न केवल देखते देखते रातों-रात इस तरह के उग्र विरोध को लेकर सड़कों पर उतर आए. अपितु नेपाली युवाओं की गुस्साई भीड़ ने सीधे-सीधे देश की संसद पर ही हमला करके उसके ऊपर कब्जा कर लिया.”
हमेशा नेपाल में किसी भी आंतरिक उथल-पुथल की अंदरूनी खबरें जुटा लेने में माहिर भारतीय खुफिया एजेंसियां क्या इस बार ऐसा कर पाने में चूक गईं? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में भारतीय थलसेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी बोले, “जो नेपाल चालबाज चीन और मक्कार मतलबपरस्त अमेरिका के हाथों में खेलने लगा हो. जो भारत के खिलाफ ही जुबान चलाने की जान-बूझकर अपनी औकात बढ़ाने लगा हो. ऐसे नेपाल में क्या होने वाला है? नेपाल में कब क्यों कैसे आंतरिक-अस्थिरता का माहौल पैदा होने वाला है? इस सबकी सुरागसी करने की जरूरत भला अब ऐसे नेपाल को लेकर भारतीय एजेंसियों को करने की क्या गरज पड़ी है?
भारतीए एजेंसियां क्यों करे मदद?
कान का कच्चा और आंख के अंधे जिस नेपाल को भारत, चीन और अमेरिका की विश्वसनीयता में अंतर कर पाने का ही माद्दा बाकी न बचा हो. तब फिर नेपाल में कोई भी बवाल होने वाला है या क्या बवाल कब होने वाला है? यह जानकारी तो नेपाल अपने मतलबपरस्त मक्कार दोस्त अमेरिका और चतुर चीन से मांगे न. चीन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां बताएं नेपाल को, या नेपाल पूछे उनसे कि, नेपाल की संसद पर हमला होने वाला था, और चीन-अमेरिका की एजेंसियों क्यों कहां सोती रहीं? भारतीय एजेंसियां तो नेपाल की मदद तभी करेंगी न जब नेपाल, भारत के दुश्मन देश चीन, और चालबाज अमेरिका की गोद में खेलना बंद करेगा. वरना भारत को क्या पड़ी है कि नेपाल भारत के खिलाफ खेले तो चीन-अमेरिका के हाथों में. और नेपाल कब क्यों कैसे जलने वाला है? यह खबर नेपाल को भारतीय एजेंसियां दें. अंतरराष्ट्रीय वैश्विक, सामरिक, विदेश नीति और कूटनीति में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि जो देश, किसी देश के साथ मक्कारी करे, वही पीड़ित देश उस मक्कार देश की मदद करे.”