'आसिम मुनीर को मिली आजीवन छूट 'हराम', इस्लामिक विद्वान की बहस से पाक में शरीयत बनाम सत्ता की लड़ाई, जवाबदेही से परे कोई नहीं
पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की सरकार उस वक्त दबाव में आ गई जब एक सीनियर इस्लामिक विद्वान मुफ्ती तकी उस्मानी ने आर्मी चीफ आसिम मुनीर को मिली कथित आजीवन छूट को ‘हराम’ करार दिया. उनके बयान से आसिम मुनीर की बतौर सीडीएफ (CDF) वैधता पर सवाल उठ खड़े हुए हैं. जानिए, इस बयान का सियासी और मजहबी असर.;
पाकिस्तान की राजनीति एक बार फिर सेना, सरकार और मजहबी नेतृत्व के टकराव की ओर बढ़ती दिख रही है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पहले ही आर्थिक बदहाली, विपक्षी हमलों और अंतरराष्ट्रीय दबावों से जूझ रहे हैं. इसी बीच एक सीनियर इस्लामिक विद्वान के बयान ने हालात और जटिल कर दिए हैं. JUI-F के मुफ्ती तकी उस्मानी ने आसिम मुनीर को आजीवन कानूनी छूट देने के नैतिक और धार्मिक आधार पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाया है, और इसे 'गैर-इस्लामी' करार दिया है.
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पाकिस्तानी पावर स्ट्रक्चर को चुनौती
न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक विद्वान ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को मिली कथित ‘आजीवन कानूनी, संवैधानिक छूट’ को इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उसे ‘हराम’ करार दिया है. यह बयान सिर्फ एक धार्मिक टिप्पणी नहीं, बल्कि पाकिस्तान के उस पावर स्ट्रक्चर पर सीधा सवाल है, जहां सेना को अक्सर लोकतांत्रिक और संवैधानिक दायरे से ऊपर माना जाता है. सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर मजहबी नेतृत्व खुलकर सेना के फैसलों पर आपत्ति जताने लगे, तो इसका सीधा राजनीतिक नुकसान शहबाज शरीफ सरकार को ही क्यों उठाना पड़ेगा?
पाकिस्तान में बढ़ते असंतोष के संकेत के तौर पर जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (JUI-F) के एक सीनियर इस्लामिक विद्वान ने 27वें संवैधानिक संशोधन के तहत फील्ड मार्शल सैयद आसिम मुनीर को दी गई आजीवन कानूनी छूट के फैसले को नैतिक और धार्मिक आधार पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि आसिम मुनीर सहित किसी को भी ऐसी छूट देना एक गैर-इस्लामी कदम है.
27 नवंबर को मुनीर ने पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज, या CDF के रूप में पदभार संभाला, यह पद 1973 के संविधान के विवादास्पद 27वें संशोधन द्वारा बनाया गया था. इस संशोधन ने मुनीर के लिए स्पष्ट संवैधानिक छूट का रास्ता साफ कर दिया है, क्योंकि उन्हें पद पर रहते हुए किए गए कामों के लिए आपराधिक अभियोजन या सिविल कार्यवाही से आजीवन सुरक्षा मिल गई है, जब तक कि संसद खुद पहले यह छूट वापस न ले ले.
पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) के सहयोगी कथित तौर पर 27वें संशोधन के तहत आसिम मुनीर को दी गई व्यापक छूट के पक्ष में नहीं हैं. JUI-F के मुफ्ती तकी उस्मानी ने कहा कि कुरान और सुन्नत के अनुसार कोई भी शासक, जनरल या खलीफा जवाबदेही से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि शासकों या सैन्य प्रमुखों के लिए ऐसी सुरक्षा इस्लाम में वर्जित है.
PDM प्रमुख राजनीतिक दलों का एक गठबंधन था जो 2020 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को चुनौती देने के लिए बनाया गया था, जिस पर खराब शासन और अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन का आरोप था. इस गठबंधन का नेतृत्व शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) कर रही थी और इसमें बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) और JUI-F शामिल थे. हालांकि, JUI-F बाद में PDM से बाहर हो गया और 2024 में एक विरोध आंदोलन की घोषणा की, जिसमें आरोप लगाया गया कि चुनाव में धांधली हुई थी.
निशाने पर शहबाज सरकार
JUI-F के करीबी सूत्रों के मुताबिक ?पार्टी को लगता है कि उसका इस्तेमाल सड़क पर ताकत दिखाने और धार्मिक मान्यता के लिए किया गया, लेकिन आखिर में उसे असली फैसले लेने का अधिकार नहीं दिया गया. पार्टी ने शहबाज शरीफ सरकार पर मुनीर को जिंदगी भर की छूट देकर कुरान के सिद्धांतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
सूत्रों के अनुसार JUI-F प्रमुख मौलाना फजल-उर-रहमान भी नागरिक सरकार को सिर्फ दिखावा मानते हैं. जबकि असली ताकत आर्मी चीफ के पास है. इससे यह धारणा बनी है कि सीटों के बंटवारे और चुनाव के बाद के इंतजाम सत्तारूढ़ PML-N और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के पक्ष में किए गए थे.
हाइब्रिड सरकार की वैधता पर संकट
इस बीच, निचले स्तर के देवबंदी मौलवी रहमान पर दबाव डाल रहे हैं कि वे उस गठबंधन से दूरी बना लें जिसे बड़े पैमाने पर 'गैर-इस्लामी' गठबंधन माना जा रहा है. टॉप इंटेलिजेंस सूत्रों ने CNN-News18 को बताया कि ताकी उस्मानी जैसे खुले विरोध से पाकिस्तान की हाइब्रिड सरकार के लिए वैधता का गहरा संकट पैदा हो गया है.
इसके अलावा, JUI-F और शहबाज शरीफ सरकार के बीच बढ़ती दरार गठबंधन की स्थिरता को कमजोर करती है. साथ ही सेना पर निर्भरता बढ़ाती है. इस्लामी सिद्धांतों का हवाला देकर, आलोचक रावलपिंडी द्वारा दमन को और भी मुश्किल बना देते हैं.
क्यों बढ़ी शहबाज शरीफ की मुश्किलें?
शहबाज सरकार पर पहले से ही सेना के प्रभाव में काम करने के आरोप है. अब मजहबी वर्ग का समर्थन हाइब्रिड सरकार के साथ नहीं है. जबकि पाकिस्तान की राजनीति में मजहबी वर्ग का समर्थन बेहद अहम माना जाता है. उलेमा का विरोध बढ़ने पर सड़क से संसद तक दबाव संविधान संशोधन का विरोध होने लगा है. इससे विपक्ष को सरकार पर हमला करने का नया मुद्दा बन चुका है.
आसिम मुनीर को मिली ‘आजीवन छूट’ पर विवाद क्यों?
आसिम मुनीर को असीमित ताकत देने के आलोचकों का दावा है कि सेना प्रमुख को असाधारण कानूनी संरक्षण गलत है. इस्लाम में जवाबदेही से ऊपर कोई नहीं. इससे पाकिस्तान में शरीयत बनाम सत्ता संरचना की बहस भी तेज हो गई है.