क्या RSS के भरोसेमंद रामशंकर कठेरिया बनेंगे UP-BJP अध्यक्ष, दलित कार्ड और SP के गढ़ को साधने की तैयारी तो नहीं?

उत्तर प्रदेश बीजेपी की राजनीति में नया दलित चेहरा सामने लाने की चर्चा चरम पर है. इसके लिए दलित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया का नाम बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे है. कठेरिया की पृष्ठभूमि आरएसएस की है. दलित समाज में उनकी पकड़ और संगठनात्मक अनुभव भी उनके पास है. संगठन संचालन के लिए से कठेरिया को योग्य और सशक्त उम्मीदवार बनाता है.;

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित और यादव समीकरण हमेशा अहम रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 11 साल से लगातार दलित चेहरों पर ही दांव खेला है. अब प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए रामशंकर कठेरिया का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है. कठेरिया न केवल आरएसएस से निकले हुए कार्यकर्ता हैं बल्कि संगठन और सरकार दोनों में जिम्मेदारी निभा चुके हैं?. उनकी खासियत यह है कि यूपी में गुटबाजी से परे हैं और इटावा के रहने वाले दलित नेता हैं. आइए, जानते हैं क्या है उनकी राजनीतिक यात्रा और पार्टी में उनका कद.

रामशंकर कठेरिया इटावा के सांसद रहे हैं. फिलहाल किसी अहम जिम्मेदारी से दूर हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर संगठन को मजबूत किया जा सकता है. इटावा, मैनपुरी, एटा समेत आसपास के कई जिलों को सपा का गढ़ माना जाता है. ऐसे में कठेरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी यादव और दलित दोनों का साधना चाहती है.

रामशंकर कठेरिया का नाम यूपी बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए इसलिए अहम है क्योंकि वे दलित समाज के बड़े चेहरे होने के साथ-साथ आरएसएस पृष्ठभूमि वाले अनुभवी नेता हैं. अगर बीजेपी उन्हें यह जिम्मेदारी देती है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले दलित वोट बैंक को साधने की बड़ी रणनीति मानी जाएगी.

रामशंकर कठेरिया का सियासी सफर

  • रामशंकर कठेरिया का जन्म 1964 में आगरा जिले के एक दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी की डिग्री हासिल की और प्राध्यापक के तौर पर काम किया.
  • छात्र जीवन से ही कठेरिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े रहे हैं. विचारधारा और संगठनात्मक काम के चलते वे धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हुए.
  • रामशंकर कठेरिया को 1990 के दशक में बीजेपी में सक्रिय जिम्मेदार मिली.
  • साल 2009 में पहली बार आगरा से सांसद बने और इसके बाद 2014 में भी जीत हासिल की.
  • केंद्र की मोदी सरकार में इन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRD) में राज्य मंत्री बनाया गया.
  • दलित समाज से आने वाले कठेरिया की छवि जमीनी नेता की है.पश्चिमी यूपी और ब्रज क्षेत्र में उनकी खास पकड़ मानी जाती है.
  • बीजेपी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलितों और पिछड़ों के बीच अपना जनाधार और मजबूत करना चाहती है.
  • बीजेपी के अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में कठेरिया ने लंबे समय तक संगठन में जिम्मेदारी निभाई है.
  • वर्तमान में वे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उनके पास संगठन, समाज और सत्ता तीनों का अनुभव है.

प्रदेश अध्यक्ष की रेस में क्यों आया उनका नाम?

दलित समाज को साधने की रणनीति, आरएसएस का भरोसेमंद चेहरा, संगठनात्मक और प्रशासनिक अनुभव और यूपी में जातीय समीकरण को साधने की क्षमता.

बीजेपी की रणनीति में दलित कार्ड अहम कैसे?

यूपी की राजनीति में दलित वोट बैंक अहम है, जिसे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) लंबे समय तक साधती रही. मायावती की कमजोर होती पकड़ का सीधा फायदा बीजेपी लेना चाहती है. कठेरिया को अध्यक्ष बनाने से पार्टी दलित वर्ग को आकर्षित करने और बसपा के शून्य को भरने की कोशिश करेगी. कठेरिया के जरिए बीजेपी सपा के गढ़ में सेंध लगाने में सफल हो सकती है. उनका कद बढ़ाकर बीजेपी सपा की पकड़ कमजोर कर सकती है. यादवों और पिछड़ों के प्रभाव वाले क्षेत्र में दलित नेतृत्व खड़ा कर बीजेपी सपा के समीकरण को चुनौती दे सकती है.

आरएसएस फैक्टर कितना अहम

रामशंकर कठेरिया को हमेशा से आरएसएस का भरोसेमंद नेता माना जाता है. संगठनात्मक अनुशासन और विचारधारा से जुड़ाव बीजेपी हाईकमान को आश्वस्त करता है. संघ पृष्ठभूमि वाले नेता को अध्यक्ष बनाने से पार्टी और संघ की तालमेल क्षमता मजबूत होगी.

 चुनावी समीकरण पर असर

2027 विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2029 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर यह कदम पार्टी के लिए रणनीतिक हो सकता है. बीजेपी चाहती है कि दलित, पिछड़ा और सवर्ण समीकरण को साधकर यूपी में अपना वर्चस्व और पुख्ता करे.

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