सनातन में बेटियां देवी, बाकी जगह बेबी... मेरठ में रामभद्राचार्य के बयान पर बवाल, बोले- यूपी के कुछ हिस्से मिनी पाकिस्तान

मेरठ की रामकथा में स्वामी रामभद्राचार्य ने विवादित बयान देकर सियासी बहस छेड़ दी. उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में बेटियां देवी हैं, जबकि अन्य धर्मों में उन्हें 'बेबी' कहा जाता है. स्वामी ने हिंदू परिवारों से बच्चों को संस्कृत विद्यालय भेजने और तीन संतानें पैदा करने की बात कही. उनके बयानों पर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई, जबकि समर्थक इसे सांस्कृतिक जागरण मान रहे हैं.;

Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 15 Sept 2025 10:29 AM IST

मेरठ में चल रही रामकथा के मंच से स्वामी रामभद्राचार्य के बयान ने सियासी और सामाजिक बहस छेड़ दी है. धर्म, शिक्षा और सामाजिक संरचना पर उनकी तीखी टिप्पणियों ने एक तरफ़ से अनुशासन और परंपरा की बात उठाई, तो दूसरी तरफ़ से आलोचना और चिंता भी जगा दी. उनके शब्द जहां कुछ लोगों को आत्मविश्वास और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरे तरफ़ के लोग इन्हें विभाजनकारी व संवेदनशील मान रहे हैं.

यह विवादित वक्तव्य मेरठ में आयोजित सात दिवसीय रामकथा के सातवें दिन आया. स्वामी ने कथा के दौरान न सिर्फ रामचरितमानस के प्रसंग सुनाए, बल्कि समसामयिक मुद्दों पर भी अपने विचार रखे जिनमें शिक्षा, धर्म, परिवार संरचना और राजनीतिक व्यवहार शामिल थे. उन्होंने कथा की शुरुआत चित्रकूट प्रसंग से की और शबरी, शूर्पणखा व मारीच जैसे प्रसंगों का उल्लेख करते हुए अपने सामाजिक संदेश दिए.

सनातन में बेटियां देवी, बाकी जगह 'बेबी'

स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि 'सनातन धर्म में बेटियां देवी हैं', जबकि अन्य धर्मों में बेटियों को केवल 'बेबी' कहा जाता है. यह बात उन्होंने अपनी व्याख्या के रूप में कही. साथ ही उन्होंने अभिभावकों को सलाह दी कि अपनी संतान को मदरसे या कॉन्वेंट स्कूल में भेजने की बजाय संस्कृत विद्यालय में संस्कार दें, जिससे भारतीय संस्कृति और परंपरा मजबूत बने. यह सुझाव कुछ समुदायों में स्वागत योग्य लगा, तो कुछ ने इसे भेदभावकारी और असंवेदनशील कहा.

बच्चों को दें आदर्शों का संस्कार

स्वामी का कहना था कि आधुनिक शिक्षा प्रणालियों में बच्चे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से दूर हो रहे हैं, इसलिए माता-पिता को धार्मिक और सांस्कृतिक पाठशालाओं पर विचार करना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट कहा कि हिंदू परिवारों को अपने बच्चों में महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज और रानी लक्ष्मीबाई जैसे आदर्शों का संस्कार देना चाहिए. आलोचक इसे धर्म के नाम पर शिक्षा के विकल्प की राजनीति करार दे रहे हैं.

मनुस्मृति, जाति और राजनीतिक 'दुष्प्रचार' का आरोप

रामभद्राचार्य ने मनुस्मृति के बारे में कहा कि मनु ने जाति-व्यवस्था का उल्लेख किया था, लेकिन आज की राजनीतिक पार्टियां इसे और ज्यादा जटिल कर रही हैं. उन्होंने दावा किया कि कई दल सत्ता के लिए जातिवाद की राजनीति करते हुए समाज में विघटन फैला रहे हैं. यह बयानी हिस्सा हिंदुत्व-राजनीति, जाति संवेदी मुद्दों और इतिहास के संशोधन को लेकर बहस का कारण बना.

2006 का अग्निकांड किया याद

स्वामी ने कहा कि मेरठ में 2006 का अग्निकांड और उससे जुड़ा व्यथा उनके मन में है, इसलिए कथा के माध्यम से उन्होंने उन मृतकों की आत्मा की शांति की कामना की. यह भावनात्मक अपील स्थानीय संवेदनशीलता और शोक-स्थलों के प्रति सजगता का इशारा भी था. धार्मिक प्रसंगों के साथ उन्होंने वर्तमान घटनाओं को जोड़कर श्रोताओं में भावनात्मक जुड़ाव बनाने की कोशिश की.

यूपी के कुछ हिस्से मिनी पाकिस्तान

स्वामी ने कहा कि आज उत्तर प्रदेश कुछ हिस्सों में 'मिनी पाकिस्तान' जैसा महसूस होता है और हिंदुओं को अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति सजग होना चाहिए. इस तरह के बयानों ने सामाजिक ताने-बाने और धार्मिक सहअस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए; समर्थक इसे चेतावनी मानते हैं, जबकि विरोधी इसे भय और विभाजन बढ़ाने वाला बयान बताते हैं.

हिंदुओं के तीन बच्चे होने चाहिए

एक और विवादास्पद कथन में स्वामी ने कहा कि हिंदू परिवारों में कम से कम तीन संतानें होनी चाहिएं, वर्ना जनसांख्यिकीय अनुपात बिगड़ सकता है. उन्होंने मनुस्मृति और पारंपरिक परिवारवादी तर्क दिखाते हुए यह बात कही. जनसांख्यिकी और परिवार योजना पर यह टिप्पणी सामाजिक नीति और व्यक्तिगत आज़ादी के संबंध में आलोचना का विषय बनी.

'जिसको मरना है मरो'

स्वामी ने अपने प्रवचनों में कहा, “जिसको मरना है मरो, मैं टेंशन नहीं लेता” और कहा कि भगवान के प्रति संबंध मजबूत करने से जीवन के भय कम होंगे. उन्होंने संस्कृत पढ़ने पर भी जोर दिया, कहा कि संस्कृत ही भारतीय संस्कृति की गहन समझ देती है. ये धार्मिक–आध्यात्मिक उपदेश कुछ श्रोताओं को प्रेरक लगे, तो कुछ को सामाजिक समावेशन के प्रति उदासीनता के रूप में दिखे.

नेताओं ने जताई चिंता

इन बयानों के बाद स्थानीय और राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कुछ नेताओं ने संवेदनशीलता की कमी और समुदायों के बीच दूरी बढ़ने की चिंता जताई है. वहीं समर्थक इन्हें सांस्कृतिक और आत्मीय जागरण का हिस्सा मानते हैं. इस तरह के वक्तव्यों का प्रभाव चुनावी राजनीति और स्थानीय कानून-व्यवस्था पर पड़ सकता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि समुदायों के बीच संवाद एवं संवेदनशीलता आवश्यक है ताकि सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखा जा सके.

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