वकीलों को बिना क्लाइंट की इजाजत के केस वापस लेने का नहीं है हक: इलाहबाद हाईकोर्ट

कई बार ऐसा होता है कि वकील बिना सहमति के क्लाइंट का केस वापस ले लेते हैं. अब इस मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बिना क्लाइंट की इजाजत के केस वापस लेने का नहीं है हक नहीं है.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 19 Dec 2024 1:05 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमेंट करते हुए कहा है कि बिना क्लाइंट के कहे बगैर वकील के पास किसी केस को वापस लेने का हक नहीं है. यह गलत तरीका है. इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति विक्रम डी.चौहान की अदालत ने अधिवक्ता फातिमा खातून को नोटिस देकर स्पष्टीकरण मांगा है. जिसमें यह सवाल किया गया है कि मुवक्किल की सहमति के बगैर उन्होंने अग्रिम जमानत अर्जी वापस कैसे ली?

बता दें कि यह मामला झांसी के सिपरी बाजार थाना क्षेत्र का है. जहां भानू प्रताप नाम के एक शख्स ने धोखाधड़ी और कूटरचना के आरोप में दर्ज मामले में पहली बार अग्रिम जमानत अर्जी अधिवक्ता फातिमा खातून के जरिये दाखिल की थी.

24 जनवरी को होगी सुनवाई

बहस के दौरान अधिवक्ता ने यह कहते हुए जमानत अर्जी वापस ले ली कि याची नियमित जमानत अर्जी दाखिल करेगा. इसके बाद गाची ने दूसरी अग्रिम जमानत अर्जी दूसरे वकील के जरिए से दाखिल की. अब इस मामले में कोर्ट ने अधिवक्ता फातिमा से स्पष्टीकरण मांगा है. मामले की सुनवाई 24 जनवरी को होगी.

मुवक्किल के लिए कोर्ट का दूसरा फैसला 

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि वकील अपने क्लाइंट के खिलाफ याचिक दर्ज नहीं कर सकते हैं.जहां कोर्ट ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल प्रयागराज में सेंट्रल गवर्नमेंट के वकीलों को केस के डिस्ट्रिब्यूशन करने में अनियमितता के खिलाफ दाखिल अपील खारिज कर दी थी.

इस मामले में कोर्ट ने कहा कि दोनों पीटिशनर सेंट्रल गवर्नमेंट के वकील हैं. ऐसे में वह अपने मुवक्किल (भारत सरकार) के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं कर सकते हैं. यह गलत है. दूसरे वकीलों के बीच केस का डिस्ट्रीब्यूशन का विवेकाधिकार केंद्र सरकार या उसके द्वारा अधिकृत सीनियर स्थायी वकील को है. वकीलों को कोई निहित अधिकार नहीं है.

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