बेटी के फेक अकाउंट पर गुस्सा हुए अखिलेश यादव! बोले- 24 घंटे क्या, 24 मिनट में भी पकड़ सकती है साइबर सेल
अखिलेश यादव की बेटी अदिति के नाम पर बने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट से पीएम मोदी और सीएम योगी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट किए गए, जिससे अखिलेश भड़क उठे. उन्होंने इसे ‘एफआईआर से कम न समझने’ की चेतावनी दी. ये मामला सिर्फ साइबर क्राइम नहीं, सियासी साज़िश का संकेत भी दे रहा है, जिसे अखिलेश ने सार्वजनिक रूप से उजागर किया.;
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर सोशल मीडिया ने नया तूफान खड़ा कर दिया है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की बेटी अदिति यादव के नाम पर बने फर्जी प्रोफाइल से न केवल राजनीति गरमा गई है, बल्कि यह मामला अब सोशल मीडिया के ज़रिये राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की साज़िश जैसा प्रतीत हो रहा है. अखिलेश ने इस हरकत पर गुस्सा जाहिर किया और इसे महज नाराजगी नहीं, बल्कि एक ‘डिजिटल अपराध’ करार दिया है.
मामला तब गंभीर हुआ जब अदिति यादव के नाम पर बने फर्जी प्रोफाइल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं. इन पोस्टों के स्क्रीनशॉट्स खुद अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर साझा करते हुए लिखा कि “इसे मेरी एफआईआर से कम न समझा जाए.” उन्होंने यह भी चेताया कि अगर कार्रवाई नहीं हुई तो इसका मतलब सरकार खुद इन गतिविधियों को समर्थन दे रही है.
संगठित डिजिटल साजिश
लेकिन अखिलेश की चिंता सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है. उन्होंने इशारा किया कि यह कोई सामान्य ट्रोलिंग नहीं, बल्कि एक संगठित डिजिटल साजिश है जो राजनीतिक छवि को धूमिल करने के इरादे से की जा रही है. उन्होंने साफ कहा कि इस तरह की गतिविधियां या तो राजनीतिक शरारत हैं या फिर ऐसे तत्वों की करतूत हैं जिन्हें अपने फायदे के लिए मासूम चेहरों का इस्तेमाल करने में कोई संकोच नहीं.
पहले भी बन चुके हैं फेक अकाउंट
यह पहली बार नहीं है जब राजनीतिक परिवारों के नाम पर फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाए गए हों. सपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी इस पर चिंता जताई है और कहा है कि बच्चों के नाम पर फर्जी अकाउंट बनाकर किसी राजनीतिक दल या परिवार को बदनाम करने की कोशिश अब एक ‘डिजिटल हथियार’ बन चुकी है, जिसका उपयोग असामाजिक तत्व खुलेआम कर रहे हैं.
24 घंटे नहीं, 24 मिनट में हो जाती पहचान
अखिलेश यादव ने सीधा हमला बोलते हुए कहा कि अगर भाजपा सरकार की साइबर सेल वास्तव में सक्रिय होती, तो 24 घंटे नहीं, 24 मिनट में इन लोगों की पहचान की जा सकती थी. लेकिन कार्रवाई न होना यह दर्शाता है कि ऊपर से आदेश का इंतज़ार हो रहा है. यह एक तरह से डिजिटल अपराधियों को राजनीतिक छाया में पनाह देने जैसा है.
लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत
अब सवाल यही है कि क्या यह मामला केवल साइबर अपराध का है, या इसके पीछे राजनीतिक विरोधियों की कोई गहरी रणनीति छिपी है? सोशल मीडिया के इस युद्ध में जब मासूम बच्चों के नाम इस्तेमाल होने लगे, तो यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है. अखिलेश की चेतावनी केवल एक पिता की नहीं, बल्कि एक नेता की डिजिटल चेतना है, जिसे अब अनदेखा करना आसान नहीं होगा.