किताबों से गांधी-नेहरू बाहर! राजस्थान में 12वीं कक्षा की पढ़ाई पर विवाद, शिक्षा मंत्री के फैसले पर बवाल क्यों?
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने 12वीं की उन किताबों को हटाने का ऐलान किया है जिनमें नेहरू-गांधी परिवार का महिमामंडन किया गया है. कांग्रेस ने इस फैसले को इतिहास से छेड़छाड़ बताया है. गहलोत ने सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप लगाया. विपक्ष का कहना है कि किताबें हटाई जा सकती हैं, लेकिन सोच और सम्मान नहीं.;
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने ऐलान किया है कि 12वीं कक्षा में अब वे किताबें नहीं पढ़ाई जाएंगी, जिनमें नेहरू-गांधी परिवार का महिमामंडन किया गया है. उनका कहना है कि ‘आज़ादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ भाग-1 और 2 जैसी किताबें न तो परीक्षा में अंक दिलवाती हैं और न ही इनका कोई शैक्षणिक महत्व है. इसलिए इन्हें पाठ्यक्रम से हटाने के निर्देश दिए गए हैं.
दिलावर का आरोप है कि इन किताबों में केवल गांधी परिवार को प्रमुखता दी गई है, जबकि सरदार पटेल, डॉ. अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं को लगभग नज़रअंदाज़ कर दिया गया. उन्होंने कहा कि इस तरह की सामग्री छात्रों को संतुलित सोच देने के बजाय एकतरफा राजनीतिक विचारधारा थोपने का काम करती है.
शिक्षा का राजनीतिकरण या ऐतिहासिक संपादन?
शिक्षा मंत्री का मानना है कि इन पुस्तकों में ‘आपातकाल’ जैसे काले अध्यायों को छुपाया गया और नेहरू-गांधी परिवार की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया. वे चाहते हैं कि शिक्षा का कंटेंट सकारात्मक हो, जिसमें हर विचारधारा और नेता के योगदान को समान रूप से दिखाया जाए. उनका दावा है कि इस फैसले का मकसद शिक्षा को वैचारिक तटस्थता देना है.
इतिहास मिटाया जा रहा है: कांग्रेस
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद देश को ऊंचाइयों तक ले जाने का श्रेय कांग्रेस को है और इस तथ्य को किताबों से मिटाना इतिहास से छेड़छाड़ के समान है. उन्होंने पूछा – क्या बीजेपी अब विज्ञान, तकनीक और विकास की उपलब्धियों के पीछे खड़े कांग्रेस के नेताओं का योगदान भी मिटा देगी?
‘किताबें हटाओ’ नहीं, ‘नई जानकारी जोड़ो’ की सलाह
गहलोत ने सुझाव दिया कि अगर वर्तमान सरकार एनडीए शासन की उपलब्धियां दिखाना चाहती है, तो इसके लिए मौजूदा किताबों में अतिरिक्त पृष्ठ जोड़कर छात्रों तक पहुंचाया जाए. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि 2.50 करोड़ रुपये की इन किताबों को कचरे में डाल देना जनता के पैसे की बर्बादी नहीं तो और क्या है?
किताबें हट सकती हैं, सोच नहीं
कांग्रेस नेता गोविंद डोटासरा और पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने इस फैसले को शिक्षा में आरएसएस की वैचारिक घुसपैठ करार दिया. उनका कहना है कि पाठ्यपुस्तकें हटाई जा सकती हैं, लेकिन जनता के दिलों से महापुरुषों का सम्मान नहीं हटाया जा सकता. उनका आरोप है कि शिक्षा के नाम पर यह विचारधाराओं की लड़ाई बन चुकी है, जिसका नुकसान छात्रों को उठाना पड़ेगा.