फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर विधायक की बेटी बनी तहसीलदार, नहीं थी 40% हियरिंग की परेशानी; एक गलती से खुल गई पोल

राजस्थान से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक भाजपा विधायक की बेटी ने फर्जी विकलांगता प्रमाण-पत्र के दम पर सरकारी नौकरी हासिल कर ली. दावा किया गया था कि उसे 40 फीसदी सुनने की समस्या है, लेकिन जांच में सच्चाई कुछ और ही निकली. मेडिकल रिपोर्ट में पता चला कि उसका एक कान पूरी तरह से ठीक है और दूसरे कान में सिर्फ 8 फीसदी की ही बाधकता है.;

Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 3 Nov 2025 2:17 PM IST

सरकारी नौकरियों में आरक्षण का मकसद था ज़रूरतमंदों को अवसर देना, लेकिन अब यही व्यवस्था कुछ लोगों के लिए ‘शॉर्टकट’ बनती जा रही है. राजस्थान से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी कंचन चौहान ने 40 फीसदी बधिर विकलांगता के सर्टिफिकेट के आधार पर तहसीलदार की नौकरी हासिल की. लेकिन जब जांच हुई, तो पूरा सच सामने आ गया.

जांच में निकला बड़ा झूठ

एसएमएस अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की जांच में सामने आया कि कंचन चौहान पूरी तरह से सुन सकती हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि उनके एक कान में बिल्कुल भी समस्या नहीं है, जबकि दूसरे कान में केवल आठ फीसदी दिक्कत पाई गई है. यानी कि 40 फीसदी विकलांगता का दावा झूठा साबित हुआ. अब सवाल उठ रहा है कि इतने बड़े स्तर पर फर्जी प्रमाण-पत्र कैसे बन गया और मेडिकल टीम ने इस पर मुहर कैसे लगा दी.

जब फर्जी सर्टिफिकेट बना टिकट टू जॉब

यह मामला अकेला नहीं है. सरकारी नौकरियों में विकलांग कोटे का गलत फायदा उठाने के कई मामले सामने आ चुके हैं. एसओजी की जांच में अब तक दर्जनों फर्जी विकलांगता सर्टिफिकेट पकड़े जा चुके हैं. बताया जा रहा है कि कंचन की तरह 38 अन्य कर्मचारियों के भी प्रमाण-पत्र फर्जी पाए गए हैं, जिनमें ज्यादातर ने ‘बधिर’ विकलांगता का दावा किया था. सिरोही में तो फर्जी सर्टिफिकेट बनाने वाला गिरोह भी पकड़ा जा चुका है.

सवाल सिस्टम से, जवाब कौन देगा?

कंचन चौहान का मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक सोच का प्रतीक है, जहां नौकरी पाने के लिए लोग झूठ और जालसाजी से भी परहेज नहीं करते. क्या ऐसे लोग उन वास्तविक विकलांग उम्मीदवारों का हक नहीं मार रहे, जिनके लिए यह कोटा बनाया गया था? और क्या इसमें शामिल सरकारी डॉक्टर और अधिकारी भी उतने ही दोषी नहीं हैं?

सरकारी जांच अब कंचन चौहान और प्रमाण-पत्र जारी करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तैयारी कर रही है. लेकिन यह मामला सिर्फ सजा का नहीं, चेतावनी का भी है — कि अगर आरक्षण की भावना को ही तोड़ दिया गया, तो असली हकदारों का भविष्य कौन बचाएगा?

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