'शूद्र' जैसे ट्रीट होते हैं निचले जज, हाईकोर्ट के जज खुद को समझते हैं 'सवर्ण'... MPHC ने सरकार पर लगाया 5 लाख का जुर्माना

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने निचली न्यायपालिका और हाईकोर्ट के बीच के रिश्ते को जातिगत व्यवस्था से जोड़ते हुए तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों को 'शूद्र' और 'ले मिज़रेबल्स' (दीन-हीन) की तरह ट्रीट किया जाता है, जबकि हाईकोर्ट के जज खुद को 'सवर्ण' समझते हैं. यह टिप्पणी उस फैसले में आई, जिसमें कोर्ट ने पूर्व अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जगत मोहन चतुर्वेदी की सेवा समाप्ति को खारिज कर दिया.;

( Image Source:  High Court of Madhya Pradesh )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 25 July 2025 11:59 AM IST

MP HC latest news: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त सत्ता-संरचना पर तीखी टिप्पणी करते हुए निचली अदालतों के जजों की तुलना 'शूद्रों' और 'ले मिजरेबल्स' (दुखी-दमित वर्ग) से की है, जबकि हाईकोर्ट के जजों को 'सवर्ण' मानसिकता वाला बताया. यह टिप्पणी 14 जुलाई को उस वक्त की गई, जब हाईकोर्ट ने पूर्व अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जगत मोहन चतुर्वेदी की 2014 में की गई बर्खास्तगी को रद्द करते हुए उन्हें सेवा से बाहर करने को 'घोर अन्याय” बताया.

जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की पीठ ने न केवल उनकी पेंशन बहाल की, बल्कि राज्य सरकार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने कहा कि चतुर्वेदी को सिर्फ न्यायिक आदेश पारित करने के लिए समाज में अपमान और आर्थिक-सामाजिक नुकसान झेलना पड़ा, जबकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई ठोस प्रमाण नहीं था.

जातीय मानसिकता का अदृश्य प्रभाव

अदालत ने कहा, “मध्य प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था में हाई कोर्ट और जिला न्यायपालिका का रिश्ता आपसी सम्मान पर आधारित नहीं है, बल्कि ऐसा है जैसे कोई उच्च जाति अपने से नीच जाति को भय के जरिए दबाकर रखती हो.” बेंच ने इसे 'जातीय मानसिकता का अदृश्य प्रभाव' बताया.

'मानो वे रेंगने वाले प्राणी हों'

न्यायालय ने कहा कि जिला न्यायाधीशों को हाई कोर्ट जजों के सामने ऐसे पेश होना पड़ता है, मानो वे रेंगने वाले प्राणी हों. उन्होंने कहा, “रेलवे प्लेटफॉर्म पर हाई कोर्ट के जजों की अगवानी करना, उन्हें जलपान देना, ये सब आम बातें हैं जो औपनिवेशिक गुलामी की मानसिकता को दर्शाती हैं.” बेंच ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट रजिस्ट्री में तैनात जिला न्यायाधीशों को अक्सर बैठने तक को नहीं कहा जाता, और यदि कहा भी जाए तो वे संकोचवश नहीं बैठते. यह मानसिक गुलामी की स्थिति है.

जिला न्यायपालिका न्याय नहीं, बल्कि ‘न्याय का दिखावा’ करती है

अदालत ने चेतावनी दी कि इस तरह का भय और दमनपूर्ण वातावरण जिला न्यायपालिका की न्यायिक स्वतंत्रता को कुचल देता है. इस डर के माहौल में काम करने वाली जिला न्यायपालिका न्याय नहीं, बल्कि ‘न्याय का दिखावा’ करती है. पीठ ने कहा कि यह वही मानसिकता है जिसने चतुर्वेदी को सजा दी – क्योंकि उन्होंने अलग तरह से सोचा और स्वतंत्र फैसला किया.

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