MP हाई कोर्ट के ऑर्डर में गलती से 'Mistake'! जेल जाने वाला रिहा, बाहर आने वाले गया सलाखों के पीछे और फिर...

Madhya Pradesh HC: एमपी हाई कोर्ट ने टाइपिंग की गलती की वजह से रिहाई करने वाले को जेल और जेल भेजने वाले को रिहा करने का फैसला सुना दिया. कोर्ट ने दोबारा सुनवाई में यह स्पष्ट किया गया कि यह केवल टाइपो था.;

( Image Source:  META AI )
Edited By :  निशा श्रीवास्तव
Updated On : 5 Dec 2025 1:39 PM IST

Madhya Pradesh HC: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 7 अगस्त को हत्या के आरोपी पिता-पुत्र की याचिका पर सुनाई की. एक टाइपोग्राफिकल एरर (टाइपो) के कारण पिता और पुत्र की जमानत याचिकाओं में अजीब उलटफेर हो गया. दरअसल जमानत खारिज होने और दूसरे आरोपी मंजूरी हुई थी के नाम बदल गए.

जानकारी के अनुसार, पिता-पुत्र पर विदिशा के ट्योंडा में एक दुकानदार की हत्या का आरोप था. दोनों की जामनत याचिका पर सुनवाई हुई. जिसकी अपील रद्द करनी थी वो स्वीकार हो गई और स्वीकार करने वाले की रद्द. हालांकि बाद में गलती में सुधार किया गया. अब हर ओर इसकी चर्चा हो रही है.

टाइपिंग की गलती से बिगड़ा खेल

विदिशा में पिछले साल 5 जुलाई को दुकानदार प्रकाश पाल की लिंचिंग के शक में हलके और उसके बेटे अशोक को गिरफ्तार किया गया था. हलके को 8 जुलाई व अशोक को 10 जुलाई को हिरासत में लिया गया. कोर्ट ने अपने फैसले में हलके (पिता)को जमानत देने का फैसला सुनाया जबकि अशोक की जमानत याचिका खारिज कर दी. लेकिन टाइपिंग की गलती की वजह से हलके और अशोक का नाम उलटफेर हो गया.

हलके के वकील ने फिर से एक याचियाक दाखिल की और रिहाई का आदेश भी जेल अधिकारियों को जारी कर दिया गया. हालांकि जब इस विसंगति का अहसास हुआ तो 8 अगस्त शाम ग्वालियर बेंच के न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता ने इस त्रुटिपूर्ण आदेश को तत्काल रद्द कर दिया.

कोर्ट ने दोबारा सुनवाई में यह स्पष्ट किया गया कि यह केवल टाइपो था. इस दौरान अदालत ने एक नया और अंतिम आदेश पारित करते हुए हलके और अशोक की जमानत पर आखिरी फैसला सुनाया.

मेडिकल स्टूडेंट्स को लेकर सुनाई

हाल ही में एमपी हाई कोर्ट ने एक मामले में जिला कलेक्टर का आदेश रद्द करते हुए 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया है. क्योंकि शासन ने बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए युवक को जेल में डाल दिया था, जो कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.

न्यायालय ने नैशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) के तहत अनुचित हिरासत दर्ज करने वाले आदेश को भी निरस्त कर दिया. इस निर्णय में अदालत ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया कि 50,000 की राशि 15 दिनों के भीतर युवक के खाते में जमा की जाए. साथ ही HC ने एक पैरामेडिकल कॉलेजों के फेक एफिडेविट की गंभीरता को माना है. जिसमें सरकार को 21,000 से अधिक छात्रों की मान्यता की स्थिति स्पष्ट नहीं की गई थी और इस मामले में कोर्ट ने आगे का आदेश सुरक्षित रखा है.

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