एंबुलेंस नहीं, चारपाई बनी लाइफलाइन! गर्भवती महिला को कंधों पर उठाकर पार कराई नदी, पलामू से आई शर्मनाक तस्वीर

झारखंड के पलामू जिले के राजखाड़ गांव में एक गर्भवती महिला को एंबुलेंस न मिलने पर परिजनों और ग्रामीणों ने लकड़ी की चारपाई पर उठाकर धुरिया नदी पार कर अस्पताल पहुंचाया. सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो गया है. परिवार का आरोप है कि बार-बार कॉल करने के बावजूद न तो स्वास्थ्य विभाग ने मदद की और न ही पुलिस ने फोन उठाया. गांववाले वर्षों से नदी पर पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई.;

( Image Source:  Sora_ AI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 17 Sept 2025 11:45 PM IST

झारखंड के पलामू ज़िले के राजखाड़ गांव में स्वास्थ्य व्यवस्था और बुनियादी ढांचे की लापरवाही का दर्दनाक उदाहरण सामने आया है. सोमवार शाम 20 वर्षीय गर्भवती महिला चंपा कुमारी को अचानक प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन बार-बार कॉल करने के बावजूद एंबुलेंस नहीं पहुंची. मजबूरन परिजन और ग्रामीणों ने उसे लकड़ी के चारपाई पर लिटाकर छाती तक भरे उफनते धुरिया नदी के तेज बहाव को पार किया. करीब 300 मीटर नदी पार करने के बाद ग्रामीणों ने 1.5 किलोमीटर पैदल उसे ढोया और फिर एक निजी वाहन से 22 किलोमीटर दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया.

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में छह लोग कंधों पर महिला को लिए पानी में संघर्ष करते दिखे. डॉक्टरों ने बताया कि अस्पताल पहुंचने पर महिला ने सुरक्षित प्रसव किया और मां-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. परिजनों का आरोप है कि उन्होंने पांच अलग-अलग नंबरों से एंबुलेंस कॉल की, यहां तक कि सिविल सर्जन कार्यालय और स्थानीय अस्पताल से भी संपर्क की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

धुरिया नदी पर पुल न होने से हर साल रहती यह समस्या

गांववालों का कहना है कि धुरिया नदी पर पुल न होने से यह समस्या हर साल बरसात में झेलनी पड़ती है. बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, मरीजों को कंधों पर उठाकर ले जाना पड़ता है और यहां तक कि कई शादियां भी टूट जाती हैं. ग्रामीणों का दावा है कि पिछले 10–15 सालों से विधायक और सांसदों से पुल की मांग कर चुके हैं, यहां तक कि ज्ञापन भी सौंपा, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली.

“अगर हम आधा घंटा और देर कर देते तो मां और बच्चा दोनों की जान जा सकती थी”

गांव के निवासी रविकांत कुमार ने कहा, “अगर हम आधा घंटा और देर कर देते तो मां और बच्चा दोनों की जान जा सकती थी. यह पहली बार नहीं है, हमने कई बार मरीजों को इसी तरह नदी पार कर पहुंचाया है.”

यह घटना एक बार फिर सवाल खड़ा करती है कि आखिर कब तक ग्रामीणों को इस तरह अपनी जान जोखिम में डालकर बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.

Similar News