POCSO केस में दिल्ली HC का फैसला, 'शारीरिक संबंधों' का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं

यौन उत्पीड़न के मामले की शिकायत मार्च 2017 में नाबालिग लड़की की मां ने दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी बेटी को बहला-फुसलाकर उसके घर से अपहरण कर लिया गया है. अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों को मद्देनजर रखते हुए अहम फैसला सुनाया है.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 7 Nov 2025 3:22 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया है और कहा है कि माइनर सर्वाइवर  द्वारा फिजिकल रिलेशनशिप यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की उच्च न्यायालय की पीठ ने आरोपी द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसे उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी.

अब पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रायल कोर्ट ने कैसे निष्कर्ष निकाला कि कोई यौन हमला हुआ था, जबकि नाबालिग पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय ने कहा कि 'शारीरिक संबंधों या 'संबंध' से यौन उत्पीड़न और फिर संभोग तक की बात को एविडेंस के साथ पेश किया जाना चाहिए और इसे निष्कर्ष के रूप में नहीं निकाला जा सकता है.

यौन संबंध हुआ था

अदालत ने 23 दिसंबर को सुनाए अपने फैसले में कहा कि 'केवल इस तथ्य से कि पीड़िता 18 साल से कम उम्र की है, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि यौन संबंध हुआ था. दरअसल, पीड़िता ने 'शारीरिक संबंध' वाक्यांश का इस्तेमाल किया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इससे उसका क्या मतलब था.

सहमति मायने नहीं रखती 

यहां तक ​​कि 'संबद्ध बनाया' शब्द का इस्तेमाल भी POCSO अधिनियम की धारा 3 या आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. हालांकि POCSO अधिनियम के तहत अगर लड़की नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, वाक्यांश ' शारीरिक संबंधों को ऑटोमेटिकली  इंटरकोर्स में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़िए.' 

अपीलकर्ता को बरी किया जाए 

अदालत ने कहा कि संदेह का लाभ आरोपी के पक्ष में होना चाहिए और इसलिए, फैसला सुनाया है. आक्षेपित फैसले में पूरी तरह से किसी भी तर्क का अभाव है और यह सजा के लिए किसी भी तर्क का खुलासा या समर्थन नहीं करता है. ऐसी परिस्थितियों में, निर्णय रद्द किए जाने योग्य है. ऐसे में अपीलकर्ता को बरी किया जाता है.'

क्या है मामला 

पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले में नाबालिग लड़की की मां ने मार्च 2017 में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी 14 वर्षीय बेटी को एक अज्ञात व्यक्ति ने बहला-फुसलाकर उसके घर से अपहरण कर लिया है. नाबालिग को आरोपी के साथ फरीदाबाद में पाया गया था, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में दिसंबर 2023 में आईपीसी के तहत बलात्कार और POCSO के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और बाद में शेष जीवन के लिए कारावास की सजा सुनाई गई. 

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