दिल्ली में हाई-टेक गैंग का खेल, पुलिसकर्मी बने ब्लैकमेल का शिकार; महिला पुलिसकर्मियों से करते थे गंदी डिमांड

दिल्ली में एक हाई-टेक गैंग ने छुपे कैमरों के जरिए ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल किया. एडिटेड फुटेज के आधार पर पैसे की उगाही और झूठी शिकायतें की जाती थीं. कुछ महिला पुलिसकर्मियों से ‘सेक्सुअल फेवर्स’ तक मांगे गए. करीब 100 सदस्यों वाला यह गैंग राजू मीणा और जीशान अली चलाते थे. जांच में कुछ पुलिसकर्मियों की मिलीभगत भी सामने आई. गैंग पहचान से बचने के लिए हर महीने फर्जी स्टिकर और मोबाइल नंबर बदलता था.;

( Image Source:  Sora AI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
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दिल्ली के ट्रैफिक सर्किलों में पिछले कई महीनों तक एक ऐसा खेल चलता रहा, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है. बाहर से सबकुछ सामान्य दिखता था - एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी किसी कमर्शियल वाहन को रोक रहा है, नियम उल्लंघन पर चालान कट रहा है, और चालक आगे बढ़ रहा है. लेकिन इस साधारण-से लगने वाले दृश्य के पीछे एक हाई-टेक क्राइम सिंडिकेट काम कर रहा था, जो पुलिसवालों को ही अपनी जालसाजी का निशाना बना रहा था.

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टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जांच में सामने आया कि उत्तर-पूर्व दिल्ली में सक्रिय यह गैंग कई ट्रक और कमर्शियल वाहन चालकों को हिडन स्पाई कैमरे देकर भेजता था. इन कैमरों से चालान की प्रक्रिया, ट्रैफिक पुलिस की बातचीत और मौके की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता था. इन वीडियोज़ को बाद में एडिट करके ऐसा दिखाया जाता कि पुलिसकर्मी किसी गलत लेन-देन में शामिल है. यही वीडियो ब्लैकमेल का हथियार बन जाते.

अधिकारियों के मुताबिक, डॉक्टर्ड फुटेज के आधार पर कई पुलिसकर्मियों को धमकाया गया, पैसे की उगाही की गई और उनकी शिकायतें विभाग तक पहुंचाई गईं. लगातार झूठी शिकायतें दर्ज होने से निरीक्षण, विभागीय जांच और मानसिक तनाव बढ़ता गया. जब तक अधिकारी पैसे भर नहीं देते, गैंग शिकायतें वापस नहीं लेता था.

महिला ट्रैफिक कर्मियों से ‘सेक्सुअल फेवर्स’ की डिमांड

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, मामला सिर्फ पैसों तक सीमित नहीं था. उन्होंने बताया, “कुछ समय पहले आरोपियों ने कुछ महिला ट्रैफिक कर्मियों से भी ‘सेक्सुअल फेवर्स’ मांगे थे. धमकी दी गई कि वीडियो वायरल कर दिए जाएंगे.” यह जानकारी सामने आने पर पुलिस विभाग में खलबली मच गई. कई महिला कर्मियों ने सुरक्षा कारणों से दूसरे सर्किल में ट्रांसफर तक ले लिया.

100 से ज़्यादा लोगों का गैंग, अंदरूनी मिलीभगत भी!

गैंग का संचालनं दो कुख्यात आरोपियों - राजू मीणा और जीशान अली - के हाथ में था. इनके गिरफ़्तार होने के बाद ट्रैफिक यूनिट में राहत भी थी और बेचैनी भी. राहत इसलिए कि अब ब्लैकमेल का डर कम हुआ; बेचैनी इसलिए कि जांच में यह भी सामने आ रहा था कि कुछ ट्रैफिक पुलिसकर्मी गैंग से मिले हुए थे.\

एक ट्रैफिक कर्मी ने बताया कि गैंग का आकार काफी बड़ा था. उसने कहा, “गैंग के 100 से ज्यादा सदस्य थे. मीणा कई बार ट्रैफिक पुलिसवालों से नो-एंट्री समय में ट्रकों को निकलने देने की मांग करता. उसके लोग पिकेट पर पैसे वसूलते थे और हिस्सा बांटते थे. जो पुलिसकर्मी मना करता, उसके खिलाफ वीडियो बनाकर कार्रवाई शुरू करवा दी जाती.”

‘लुभाओ या फंसाओ’ - दोनों तरकीबें

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि गैंग पहले पुलिसकर्मियों को पैसे देकर अपने साथ मिलाने की कोशिश करता. अगर वे मना कर देते, तो उनकी गुप्त रूप से रिकॉर्डिंग शुरू हो जाती - चाहे वह चालान काटते समय हो या किसी दुकान पर पेमेंट करते वक्त. बाद में इन्हीं वीडियोज़ को एडिट कर उन्हें फंसाया जाता.

एक मामले का उदाहरण देते हुए अधिकारी ने बताया, “एक सब-इंस्पेक्टर को फंसाने के लिए गैंग ने उसे दुकान पर भुगतान करते समय रिकॉर्ड किया. दुकान ने गलती से ज्यादा पैसे ले लिए थे और वापस कर रहा था. गैंग ने इसे ‘रिश्वत लेते’ हुए दिखाकर 15 दिन बाद शिकायत कर दी. बाद में दुकान वाले ने जांच में सच्चाई बता दी.”

सरकारी एजेंसियों तक फर्जी शिकायतें भेजी जाती थीं

अगर कोई अधिकारी मीणा के ग़लत कामों का विरोध जारी रखता, तो गैंग उसे और परेशान करने की योजना बनाता. शिकायतकर्ता के तौर पर अपने किसी आदमी को सरकारी एजेंसी के पास भेजता और वीडियो दिखाकर झूठा आरोप लगाता कि पुलिसकर्मी रिश्वत ले रहा था. इससे अधिकारी पर छापेमारी या पूछताछ का खतरा मंडराया रहता.

हर महीने बदलते थे ‘फर्जी स्टिकर’

DCP संजीव यादव के अनुसार, गैंग शहर में चलने वाले ट्रकों पर लगाए गए फर्जी स्टिकर हर महीने बदल देता था - उनके रंग, डिजाइन और कोड भी. यहां तक कि स्टिकर पर छपे मोबाइल नंबर भी हर महीने बदले जाते ताकि पहचान न हो सके.

यह पूरा मामला दिखाता है कि कैसे हाई-टेक गैजेट्स, झूठे सबूत और संगठित अपराध ने पुलिस विभाग के भीतर डर और अविश्वास का माहौल पैदा कर दिया. फिलहाल गैंग का भंडाफोड़ होने के बाद जांच जारी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसे नेटवर्क दोबारा भी खड़े हो सकते हैं - और क्या दिल्ली पुलिस इनके खिलाफ तगड़ी नीति बनाकर अपने कर्मियों को सुरक्षित रख पाएगी?

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