नक्सली हिडमा–राजे लव स्टोरी: जंगल में जन्मी प्रेम कहानी, जो मुठभेड़ में साथ ही खत्म हो गई- आखिरी सांस तक दोनों ने निभाया वादा
नक्सली कमांडर हिडमा और महिला कमांडर राजे की प्रेम कहानी जंगल के खून, बंदूकों और नियमों के बीच पनपी और दो साल तक अनकही रही. दोनों ने संगठन की कड़ी पाबंदियों के बावजूद गुपचुप शादी की और हर बड़े ऑपरेशन में एक-दूसरे का सहारा बने रहे. आंध्र–छत्तीसगढ़ बॉर्डर पर ऑपरेशन 'संभव' के दौरान हुए मुठभेड़ में दोनों साथ लड़ते-लड़ते मारे गए. जंगल में जन्मा यह प्रेम उसी जंगल की मिट्टी में हमेशा के लिए दफन हो गया.;
Maoist Commande Hidma Raje Love Story: नक्सल संगठन में प्रेम जैसी भावनाएं अक्सर दब जाती हैं, जहां आदेश, भय, अनुशासन और हथियारों का शोर हावी हो, वहां दिल की धड़कनों की जगह रणनीतियां ले लेती हैं... लेकिन इसी खामोशी और खतरे के बीच कभी-कभी ऐसी कहानियां जन्म लेती हैं जो असंभव लगते हुए भी सच साबित होती हैं. ऐसी ही कहानी थी कुख्यात कमांडर हिडमा और महिला कमांडर राजे की, जिनकी प्रेम कहानी मुठभेड़ की गोलियों के साथ ही खत्म हो गई.
साल 2008-09 के दौरान हिडमा नक्सली संगठन में तेजी से उभरता हुआ कमांडर बन चुका था- कम बोलने वाला, तेज दिमाग वाला और रणनीति में माहिर. वहीं, राजे उन चुनिंदा महिला सदस्यों में शामिल थी जो कमांडर रैंक तक पहुंची थीं. दोनों की मुलाकातें नियमित थीं, कभी मीटिंग में, कभी मूवमेंट के दौरान और कभी किसी बड़े ऑपरेशन की तैयारी में...
जंगल में कौन सा दिन आखिरी हो जाए, कोई नहीं जानता
जंगल का जीवन हमेशा अस्थिर होता है, कौन सा दिन आखिरी हो जाए, कोई नहीं जानता. शायद इसी वजह से वहां भावनाएं जल्दी गहरी हो जाती हैं. हिडमा और राजे के बीच भी एक अनकहा रिश्ता पनपने लगा था, जिसे वे दोनों किसी भी स्थिति में व्यक्त नहीं कर सकते थे.
दो साल तक रिश्ते पर सन्नाटा, लेकिन दिलों में गहराई
दोनों एक ही बटालियन में काम करते थे. राजे संगठन में 'मां' की तरह मानी जाती थी- घायल साथियों की सेवा, खाना, रणनीतियों की समझ... हिडमा पर हथियारबंदी और ऑपरेशनल कमान की जिम्मेदारी रहती थी. दिन बीतते गए और दोनों एक-दूसरे की मौजूदगी का इंतजार करने लगे. गांवों की मीटिंग हो या रात की पदयात्रा, दो जोड़ी आंखें हमेशा एक-दूसरे को तलाशती थीं. साथियों को यह रिश्ता महसूस तो होता था, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं था. नियमों के बावजूद दोनों अपनी जिम्मेदारियों में बिल्कुल अनुशासित थे.
संगठन का कठोर नियम- रिश्ते नहीं, सिर्फ मिशन
नक्सली संगठन में निजी रिश्तों की कोई जगह नहीं होती. अनुशासन तोड़ना सबसे बड़ा अपराध माना जाता है... लेकिन दिल कहां नियम मानता है? बीजापुर, सुकमा और जगदलपुर में कई हाई-प्रोफाइल कार्रवाइयों के दौरान राजे हमेशा हिड़मा के साथ रही. दोनों एक-दूसरे के ढाल भी थे और सहारा भी.
जंगल में गुपचुप शादी, सिर्फ आग की लौ और दो दिलों का वचन
एक रात, लंबे ऑपरेशन और तनाव के बाद, दोनों ने जंगल के बीच चुपचाप विवाह कर लिया- न कोई गवाह, न कोई रस्म, सिर्फ आग की हल्की लौ और दो दिलों का सात जन्मों का वचन... बताया जाता है कि हिडमा ने अपने भरोसेमंद साथियों से कहा था, “अब यह सिर्फ संगठन की साथी नहीं, मेरे जीवन की साथी भी है.” यह विवाह संगठन की किताबों में दर्ज नहीं था, लेकिन साथियों के बीच यह जोड़ी “जंगल के दूल्हा-दुल्हन” के नाम से जानी जाती थी. संगठन के नियमों के अनुसार दोनों ने पहले ही नसबंदी की थी... नक्सल संगठन में शादी के अनौपचारिक मामलों में यह अनिवार्य शर्त मानी जाती है...
अंत भी वहीं हुआ, जहां कहानी शुरू हुई
पिछले दिनों आंध्र–छत्तीसगढ़ बॉर्डर के जंगलों में दोनों एक ही टीम में तैनात थे. सुरक्षाबलों के बड़े ऑपरेशन 'संभव' के दौरान घिरे नक्सलियों पर जब भारी फायरिंग हुई, तो हिडमा और राजे दोनों एक साथ लड़ते-लड़ते ढेर हो गए. साथियों के अनुसार, “जिस हाथ को उन्होंने विवाह की रात थामा था, वही हाथ उन्होंने आखिरी सांस तक नहीं छोड़ा.” उनकी मौत के बाद भी दोनों के शव एक-दूसरे के बिल्कुल पास मिले.
जंगल में जन्मी प्रेम कहानी, जंगल में दफन हो गई
नक्सलवाद की दुनिया में प्रेम की कोई जगह नहीं होती. अधिकतर प्रेम कहानियां दम तोड़ देती हैं—कुछ संगठन के नियमों में, कुछ पुलिस मुठभेड़ में... लेकिन हिडमा और राजे की कहानी उन दुर्लभ कहानियों में से एक बन गई, जो बंदूकों, खून, अनुशासन और प्रतिबंधों के ऊपर उठ गई... जंगल की पगडंडियों पर शुरू हुई यह प्रेम कहानी उसी जंगल की मिट्टी में सदा के लिए समा गई...