बिहार की राजनीति छोड़कर उपराष्ट्रपति बनेंगे नीतीश कुमार? धनखड़ के इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गर्म

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम संभावित उत्तराधिकारी के रूप में चर्चा में है. सोशल मीडिया पर वायरल पोस्टों और राजनीतिक विश्लेषकों की टिप्पणियों ने अटकलों को और हवा दी है. क्या बीजेपी नीतीश को दिल्ली भेजकर बिहार में नया समीकरण बना रही है? राजनीतिक गलियारे में चर्चाएं तेज हैं.;

( Image Source:  Social media )
Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 22 July 2025 8:27 AM IST

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने सबको चौंका दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन सियासी विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे कुछ और समीकरण भी हो सकते हैं. जैसे ही इस्तीफे की खबर आई, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम नए उपराष्ट्रपति के संभावित उम्मीदवार के तौर पर सामने आने लगा, जिससे राजनीति का तापमान और चढ़ गया.

एक पैरोडी ट्विटर अकाउंट से किया गया एक पोस्ट, जो तेजस्वी यादव के नाम से वायरल हुआ, इस पूरे मुद्दे को हवा देने का काम कर गया. पोस्ट में दावा किया गया कि धनखड़ का इस्तीफा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से ध्यान भटकाने की कोशिश है और अगला उपराष्ट्रपति नीतीश कुमार हो सकते हैं. हालांकि यह आधिकारिक बयान नहीं था, लेकिन सोशल मीडिया पर #नीतीशकुमार ट्रेंड करने लगा, जिसने पूरे परिदृश्य को नया मोड़ दे दिया.

बीजेपी का 'ऑपरेशन बिहार'?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी नीतीश कुमार को दिल्ली भेजकर बिहार में एक नई लीडरशिप स्थापित करना चाहती है. सूत्रों के अनुसार, यह कदम ओबीसी और ईबीसी वोट बैंक को आकर्षित करने के साथ-साथ उन्हें ‘सम्मानजनक विदाई’ देने की रणनीति भी हो सकता है. लेकिन सवाल उठता है- क्या नीतीश जैसा अनुभवी नेता सिर्फ एक ‘पॉजिशनल शिफ्ट’ के लिए तैयार होंगे?

तेजस्वी का शिगूफा या रणनीतिक बयान?

विपक्षी खेमा इस चर्चा को आरजेडी की चाल बता रहा है. कुछ का मानना है कि यह तेजस्वी यादव का शिगूफा है ताकि एनडीए खेमे में भ्रम फैले. वहीं कुछ जानकार मानते हैं कि यह एक सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है, जिससे बिहार की राजनीति को केंद्र की ओर मोड़ा जाए. तेजस्वी द्वारा सीधे कुछ भी न कहकर परोक्ष रूप से अफवाहों को बल देना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

बिहार में सत्ता संतुलन पर असर

अगर नीतीश कुमार वाकई दिल्ली जाते हैं तो बिहार में एनडीए को नेतृत्व संकट का सामना करना पड़ सकता है. नीतीश ना केवल जेडीयू के शीर्ष नेता हैं, बल्कि एनडीए की पकड़ बनाए रखने वाले संतुलनकारी नेता भी माने जाते हैं. उनका जाना राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है, जिसका फायदा विपक्ष उठाने की कोशिश करेगा. यही कारण है कि इस चर्चा को बेहद गंभीरता से देखा जा रहा है.

अटकलबाज़ी या असली योजना?

हालांकि संविधान के तहत 60 दिनों में नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना है और तब तक हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति रहेंगे, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार इस दौड़ में सचमुच हैं? फिलहाल बीजेपी और जेडीयू दोनों ही खामोश हैं, लेकिन अगर वाकई यह ‘ऑपरेशन बिहार’ का हिस्सा है, तो इसका असर केवल दिल्ली या पटना तक सीमित नहीं रहेगा – बल्कि 2024 और 2025 के चुनावी परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित करेगा.

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