नया वक्फ कानून बिहार के मुस्लिम वोटरों पर कैसे डाल सकता है असर? 63 सीटों पर निर्णायक हो सकते हैं पसमांदा मतदाता
How Waqf Law Affect Muslim Voters: वक्फ संशोधन कानून सवा साल पहले पास हुआ था. उसके बाद से केंद्र सरकार के खिलाफ मुस्लिम मतदाताओं में गहरा असंतोष है. लोकसभा चुनाव, महाराष्ट्र , झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसका ज्यादा असर देखने को नहीं मिला, लेकिन जिस तरह से आरजेडी ने वक्फ कानून के खिलाफ बिहार में स्टैंड लिया, उससे मुस्लिम मतदाताओं में नया उत्साह है. क्या बिहार में 243 में से 63 मुस्लिम मतदाता प्रभाव वाले सीटों पर इसका असर होगा? जानिए, समीकरण और क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर?;
Bihar Chunav 2025: लोकतांत्रिक देशों की राजनीति में धर्म और जाति अक्सर चुनावी गणित का सबसे अहम हिस्सा बनते हैं. बात इंडिया और उसमें भी बिहार की हो तो असर अन्य क्षेत्रों की तुलना ज्यादा देखने को मिलता है. ऐसा इसलिए कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए "नए वक्फ कानून" ने बिहार की सियासत में एक नई बहस छेड़ दी है. बिहार के सीमांचल, मिथिलांचल, और मगध क्षेत्र की लगभग 63 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन सीटों पर अब राजनीतिक हलचल तेज हो गई है.
मुस्लिम समाज की चिंता क्या है?
दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ संशोधन कानून पास होने के बाद से मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब केंद्र सरकार मुस्लिमों की धार्मिक संपत्तियों को राज्य के नियंत्रण में लाने की कोशिश करेगी. मुस्लिम समाज के लोगों में डर है कि इससे मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे और अन्य वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दखल बढ़ेगा. कुछ जगहों पर इसे धार्मिक स्वतंत्रता में खलल डालने के रूप में भी देखा जा रहा है.
इन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक
बिहार में करीब 17.70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, लेकिन सीमांचल, मिथिलांचल और मगध क्षेत्र की 243 में से 63 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 43 प्रतिशत, पूर्णिया में 39 प्रतिशत, अररिया में 42 प्रतिशत से ज्यादा, सिवान, दरभंगा, मधुबनी, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, 20 से 30 प्रतिशत तक मुस्लिम मतदाता हैं.
2019 से JDU का मुस्लिम वोट घटा
बिहार में 2005 से नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट भी मिलता रहा है, लेकिन 2019 के बाद से जेडीयू के मुस्लिम वोट में डेंट लगा है. साल 2020 और 2024 में जदयू का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया. अभी केंद्र सरकार की ओर से वक्फ संशोधन बिल पास कराया गया है. जेडीयू ने इसका पुरजोर समर्थन किया, इसलिए मुस्लिम में जो गरीब तबका है जिसकी आबादी अधिक है, वो नीतीश को वोट नहीं करेंगे.
बीजेपी और जेडीयू की कोशिश पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की है. पिछड़ा मुसलमान जैसे सुरजापुरी, मलिक, मदरिया, नलबंद, कसाई, डफली, धुनिया, नट, पमरिया, भटियारा, भाट और मेहतर और अति पिछड़ा मुसलमान मदारी, मिर्शिकार, फकीर, राईन, ठकुराई, शेरशाहबादी, बखो, दर्जी, रंगरेज, मुकेरी, गादेरी, कुल्हैया, जाट, धोबी, सेखदा, गद्दी, लालबेगी और हलालखोर शामिल हैं. इन लोगों में एनडीए को लेकर असंतोष है.
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में 70 प्रतिशत से अधिक वोट महागठबंधन को गया था. वहीं 11 प्रतिशत से अधिक है ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को और शेष मुसलमानों का वोट आने दलों को मिला. साल 2020 में कुल 19 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने.
वक्फ कानून बनेगा चुनावी मुद्दा?
आरजेडी (RJD) ने इसे 'अल्पसंख्यकों पर हमला' बताकर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की है. जेडीयू (JDU) मुस्लिम मतदाताओं को विश्वास में रखने के लिए नरम रुख अपना रही है. बीजेपी (BJP) इसे "रिफॉर्म" बता रही है. बीजेपी ने तेजस्वी यादव को मौलाना करार दिया है. दूसरी तरफ मुस्लिम बहुल इलाकों में अल्पसंख्यक मतदाता साइलेंट मोड में है. कांग्रेस और लेफ्ट इसे संविधान विरोधी बता रही हैं. कुल मिलाकर इस बार मुस्लिम मतदाताओं का लाभ आरजेडी-कांग्रेस को ज्यादा मिलेगा. जेडीयू को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है. अगर ये मुद्दा जमीन पर पकड़ बनाता है तो वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव आ सकता है.
पसमांदा मुसलमानों को लुभाने के लिए NDA की रणनीति
NDA की ओर से JDU भी मुस्लिम वोटों पर दावेदारी कर रही है. नीतीश कुमार को उम्मीद है कि 20 साल का ट्रैक रिकॉर्ड और नया वक्फ कानून पसमांदा मुस्लिमों को लुभाएगा. बिहार की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी में 10 प्रतिशत अति पिछड़े (पसमांदा), 3% पिछड़े और 4% अशराफ मुस्लिम हैं. JDU का दावा है कि नए वक्फ कानून से पसमांदा मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा.
हकीकत यह है कि JDU के लिए चुनौती यह है कि वक्फ कानून पर पार्टी में बगावत हुई है. कई मुस्लिम नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. 2020 में जदयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन कोई नहीं जीता. 2015 में सात मुस्लिम विधायक जीते थे, जब JDU का गठबंधन RJD के साथ था. नीतीश के मंत्रिमंडल में एकमात्र मुस्लिम मंत्री जमा खान हैं, जो पठान (सवर्ण मुस्लिम) हैं.
क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर?
वक्फ इमोशनल मैटर, टच कर सही नहीं किया - फुजेल अहमद कादरी
नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलांग में वर्षों तक इतिहास विभाग में प्रोफेसर रहे और अब पटना में रहकर वहां की राजनीति पर नजर रखने वालों में शुमार प्रोफेसर फुजेल अहमद कादरी का कहना है कि वक्फ संशोधन कानून मुस्लिम समाज के लिए इमोशन मामला है. उसे टच कर बीजेपी ने गलत किया है. उन्होंने कहा कि वक्फ को जिस रूप में लिया जा रहा है, वो भी सही नहीं है. इसके खिलाफ माहौल तैयार किया गया है. इसलिए, इसका पूरा असर बिहार चुनाव पर देखने को मिलेगा.
प्रोफेसर फुलेज अहमद कादरी का कहना है कि वक्फ मुसलमानों के कल्चर का हिस्सा है. फिर बिहार में 13वीं सदी से ही मुसलमान रहते हैं. भागलपुर, फुलवारी शरीफ सहित कई अन्य शहरों में सदियों से मुसलमान रहते आए हैं. वक्त के तहत कई सामाजिक और शैक्षणिक संस्था संचालित हैं. वक्फ संशोधन कानून का असर बिहार में ही नहीं, आगामी चुनावों में भी देखने को मिलेगा.
पसमांदा पॉलिटिक्स नहीं समझ पा रही BJP
बीजेपी द्वारा पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की बात पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. पहले तो यह स्पष्ट करना होगा कि पसमांदा कौन हैं? मुस्लिमों के लिए जितने भी योजनाएं हैं, उनके लाभार्थी प्रभासी पसमांदा ही हैं. वह, कैसे चाहेंगे कि उन्हें जो लाभ मिल रहा है, उसे सरकार इस कानून के तहत छीन ले. इससे पसमांदा समाज भी नाराज है. इस बात को राजनीति करने वाले लोग समझ नहीं पा रहे हैं.
नीतीश कुमार को मुसलमानों का समर्थन मिलने की बात पर उन्होंने कहा कि जेडीयू का रोल वक्फ के मसले पर गलत रहा है. नीतीश कुमार ने इस मामले में डबल स्टैंडर्ड का परिचय दिया है. इसका नुकसान विधानसभा चुनाव उन्हें उठाना होगा. जेडीयू को इस बार पहले से कम संख्या में मुस्लिम मतदाता वोट करेंगे.
बीजेपी का मुसलमानों से 'सरोकार' मुश्किल - अब्दुल हमीद
जमात उलेमा ए हिंद के चर्चित नेता रहे और अब इस्लामिक स्कॉलर के रूप में देश और दुनिया में सक्रिय अब्दुल हमीद का कहना है कि बिहार में बीजेपी को लोकसभा चुनाव और उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली चुनाव की तुलना में ज्यादा नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि बिहार हमेशा से अलग तरह का राज्य रहा है. वहां पर हिंदूवादी एजेंडे का असर ज्यादा नहीं होता.
बिहार में विधानसभा चुनाव निकट हैं, इसलिए वक्फ को लेकर चर्चा भी चरम पर है. दूसरी तरफ इस मसले पर आरजेडी का स्टैंड खासकर मुसलमानों के पक्ष में आने के बाद बीजेपी अब उसे सांप्रदायिक और हिंदूवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटी है. जबकि वो जानती है कि बिहार में इसका लाभ नहीं मिलेगा. इसके बावजूद बीजेपी वहां हिंदू बनाम मुस्लिम के मसले पर वोटों का ध्रुवीकरण करने में जुटी है.
अब्दुल हमीद के मुताबिक देश में बीजेपी सरकार जहां भी पर है वहां पर ध्रुवीकरण का खेल जारी रहता है. बिहार में भी बीजेपी वही खेल करने की कोशिश करेगी. आरजेडी और कांग्रेस वक्फ संशोधन के खिलाफ है. बिहार में मुस्लिम मतदाता दोनों दलों के परंपरागत समर्थक हैं. इसका लाभ इस बार भी दोनों को मिलेगा.
अब्दुल हमीद ने कहा कि साल 2013-14 में तत्कालीन गुजरात के सीएम और अब पीएम नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री के समय जो माहौल बना, उसको देखते हुए बीजेपी के प्रति मुसलमानों में रुझान बढ़ा था. लेकिन उसके बाद तीन तलाक, एनआरसी, सीएए, मुलायम सिंह और फारूक अब्दुल्ला परिवार, जम्मू कश्मीर के मसले को लेकर जिस तरह से बीजेपी ने राजनीति की, उससे मुस्लिम समाज नाराज है.
इसके अलावा, गिरिराज सिंह, नुपूर शर्मा और टी राजा सिंह समेत तमाम हिंदूवादी नेताओं के उलूल जुलूल बयानों ने मुसलमानों को बीजेपी से दूर कर दिया. फिर, बीजेपी मुसलमानों के साथ 'जन सरोकार' की राजनीति नहीं कर सकती. ऐसा इसलिए कि बीजेपी संघ की राजनीति इकाई है. इस वजह से बीजेपी को उसी के भगवा एजेंडे के मुताबिक काम करना होता है.