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बिहार में RJD-कांग्रेस के बीच 'ननद-भौजाई' वाला खेल , 28 साल से 'कभी मेल, कभी ठेल', इस बार...

बिहार की राजनीति में RJD और कांग्रेस का रिश्ता वैसा ही है जैसे ननद-भौजाई का. कभी गलबहियां, कभी तू-तू मैं-मैं! 28 सालों से दोनों पार्टियां सुविधा के हिसाब से एक-दूसरे को कभी गले लगाती हैं, तो कभी दूरियां बना लेती हैं. इस रिपोर्ट में जानिए कि कैसे ये 'कभी हां-कभी ना' वाला रिश्ता बिहार की राजनीति की दिशा तय करता रहा है. इस बार सीटों को लेकर तकरार है, पर इस बार भी मिलकर ही चुनाव लड़ने की संभावना है.

बिहार में RJD-कांग्रेस के बीच ननद-भौजाई वाला खेल , 28 साल से कभी मेल, कभी ठेल, इस बार...
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( Image Source:  ANI )

मुद्दा बिहार के राजनीति की हो और कोई ननद भौजाई के रिश्ते की बात करने लग जाए तो आप क्या कहेंगे? अगर आप समझदार होंगे तो कुछ नहीं बोलेंगे, ऐसा इसलिए कि ननद-भौजाई का रिश्‍ता बहुत ही नाजुक होता है. कभी-कभी इस रिश्ते में काफी प्यार देखने को मिलता है. वहीं कभी-कभी इस रिश्ते में काफी लड़ाई भी होती है. बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच भी पिछले तीन दशक से वही सियासी रिश्ता है. आरजेडी गठबंधन की कहानी भरोसे, सियासी मजबूरियों और अवसरवाद का मिला-जुला रूप है. कांग्रेस जो एक समय बिहार की सबसे मजबूत पार्टी थी, आज "सहयोगी दल" बनकर चुनाव लड़ने को मजबूर है. वहीं, आरजेडी भी बिना गठबंधन सत्ता के दरवाजे तक पहुंचने में कई बार चूकता रहा है.

कुल मिलाकर बिहार में कभी अपने दम पर सरकार बनाने वाली कांग्रेस राज्य में 'सहारों' पर निर्भर हो गई? आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन में साथ आने की कहानी क्या है? कब-कब दोनों दल एक साथ चुनाव लड़े और गठबंधन में दोनों का प्रदर्शन कैसा रहा? इसके अलावा, कब-कब दोनों पार्टियां साथ नहीं आईं और तब उनकी सीटों का गणित क्या रहा, 10 प्वाइंट्स में जानें सब कुछ.

1. बिहार में कांग्रेस के पतन की शुरुआत 1989 के भागलपुर दंगों से मानी जाती है, जिसमें सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठे थे. साल 1990 में जनता दल के नेतृत्व में लालू यादव सत्ता में आए और मंडल आयोग लागू कर सामाजिक न्याय की राजनीति का नया आधार गढ़ा और आरक्षण समर्थकों के मसीहा बन गए. इसके अलावा, मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण ने उन्हें मजबूत किया और बिहार में कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई.

2. साल 1997 में संकट के समय कांग्रेस आरजेडी की सहयोगी बनी, जब चारा घोटाले के चलते 1997 में लालू यादव को जनता दल से अलग होकर राजद बनाना पड़ा, तब विधानसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती खड़ी हो गई. इस कठिन समय में कांग्रेस ने लालू का साथ दिया और आरजेडी की सरकार बची. यहीं से कांग्रेस-राजद गठबंधन की नींव पड़ी.

3. साल 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद पहली बार गठबंधन में साथ लड़े. कांग्रेस को 8 सीटें दी गईं और उसने 4 पर जीत दर्ज की. यह साझेदारी आगे भी जारी रही, लेकिन बीच-बीच में खटास भी बढ़ी.

4. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े. कांग्रेस को 23 सीटें मिलीं, जबकि आरजेडी 124 सीटें मिलीं. हालांकि, चुनाव के बाद कांग्रेस ने आरजेडी को समर्थन देकर राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने में मदद की.

5. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी, कांग्रेस और लोजपा साथ आए. कांग्रेस को चार सीटें दी गईं और तीन पर जीत मिली. केंद्र में यूपीए सरकार बनी और लालू यादव व पासवान मंत्री बने.

6. फरवरी 2005 में कांग्रेस और लोजपा अलग होकर चुनाव लड़े. नतीजा, कोई भी सरकार नहीं बना सका. अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए, कांग्रेस-आरजेडी साथ आए लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया. एनडीए की सरकार बनी और नीतीश युग की शुरुआत हुई.

7. साल 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले लड़ी और महज 4 सीटें हासिल कीं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में वह आरजेडी के साथ तो रही, लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर में दोनों ही दलों का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा.

8. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी, कांग्रेस और नीतीश की जेडीयू ने मिलकर महागठबंधन बनाया. यह गठबंधन मोदी विरोध के नाम पर बेहद सफल रहा. आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. यह कांग्रेस का 20 वर्षों में सबसे अच्छा प्रदर्शन था.

9. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल साथ रहे. आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें जीती. हालांकि, गठबंधन सरकार नहीं बना सका और एनडीए ने 125 सीटों के साथ बहुमत पा लिया.

10. साल 2020 के बाद से बिहार की राजनीति में कई मोड़ आए. नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ सरकार बनाई, फिर 2024 में दोबारा एनडीए से हाथ मिला लिया. इस अस्थिरता ने राज्य में गठबंधन की राजनीति को लगातार प्रभावित किया।

2025 में फिर आएंगे साथ?

बिहार विधानसभा का चुनाव तीन महीने बाद होना है. अब तक की बैठकों से साफ है कि राजद और कांग्रेस फिर से गठबंधन में उतरने की तैयारी में हैं. कांग्रेस राज्य में अब भी अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है और आरजेडी के सहारे खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है. दूसरी ओर, आरजेडी को भी कांग्रेस के वोट बैंक (अल्पसंख्यक, परंपरागत वोटर) की जरूरत है.

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