NDA की रणभूमि तैयार, BJP-JDU लड़ सकते हैं समान सीटों पर चुनाव, चिराग को झटका, नहीं मिलेगी...
लोक जनशक्ति पार्टी (RV) 40 सीटों की मांग कर रही है, जबकि भाजपा 20 सीटों को सही संख्या मान रही है. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व का कहना है कि अन्य छोटे सहयोगियों और संभावित दलों के आने की संभावनाओं को भी ध्यान में रखना होगा.यह गठबंधन बिहार की राजनीतिक तस्वीर को नए रूप में पेश करेगा और आगामी चुनावी रणनीतियों पर असर डालेगा.;
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब दो महीने बाकी हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर बातचीत के अंतिम चरण में है. सूत्रों के अनुसार भाजपा और जनता दल यूनाइटेड के बीच लगभग सहमति बन गई है. दोनों प्रमुख सहयोगी दल कुल 243 सीटों में से बराबर संख्या में यानी 100 से 105 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं.
चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास जो 40 सीटों की मांग कर रही है, को लगभग आधी सीटें मिलने की संभावना है. बाकी सीटें जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को मिलने की उम्मीद है.
मुकेश की पार्टी NDA में होगी शामिल!
अगर मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जो वर्तमान में आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन के साथ गठबंधन में है, पाला बदल लेती है, तो समीकरण बदल सकते हैं. यानी एनडीए में वीआईपी के शामिल होने की चर्चा में दम है. बताया जा रहा है कि बीजेपी चाहती है कि सहनी एनडीए के साथ चुनाव लड़े.
JDU समान सीटों पर लड़ना चाहती है चुनाव
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू जने 115 और भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उस समय, वीआईपी, जो उस समय एनडीए का हिस्सा थी, ने 11 सीटों और हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था. जबकि लोजपा ने अकेले 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भाजपा एक मजबूत सहयोगी के रूप में उभरी, जिसने जेडीयू की 43 सीटों की तुलना में 74 सीटें जीतीं थी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि जेडूयी इस बार 100 से कम सीटें पर एक साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है.
एनडीए के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "पिछली बार जेडीयू का खराब प्रदर्शन एलजेपी द्वारा उसके खिलाफ उम्मीदवार उतारने के कारण हुआ था. पार्टी अभी भी बिहार के लगभग 10% वोट पर काबिज है. खासकर अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बीच और इसकी भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है. चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़े जा रहे हैं और अभियान उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने पर केंद्रित है. जेडीयू के भाजपा से कम सीटों पर चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही नहीं है. हालांकि सहयोगियों को समायोजित करने के लिए थोड़े-बहुत बदलाव किए जा सकते हैं.
सीटों के बंटवारे पर बातचीत भाजपा और जेडीयू के बीच काफी हद तक सुलझ गई है, जिसमें एलजेपी रामविलास मुख्य विवाद का विषय है. एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, "वे 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, जो उनके वजूद से कहीं ज्यादा है. उनके पांच सांसद हैं और उनका सम्मान किया जाएगा, लेकिन वास्तविक आंकड़ा 20 के करीब है. हमें कुशवाहा और मांझी को भी समायोजित करना होगा और कुछ आश्चर्यजनक उम्मीदवार भी आ सकते हैं.
40 सीटों की मांग पर अड़े हैं चिराग
दूसरी तरफ एलजेपी रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान का तर्क है कि लोकसभा चुनाव 2024 उनकी पार्टी ने पांच सीटों जीत थी. प्रदेश में 6 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किया. अपने निर्वाचन क्षेत्रों के 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 29 में बढ़त हासिल की. वह लंबे अरसे से 40 सीटों की मांग करते आ रहे हैं. जेडीयू नेता ने उसे कमतर आंकते हुए कहा, "लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए थे. विधानसभा चुनावों में स्थानीय कारक और पार्टी की जमीनी ताकत कहीं ज्यादा मायने रखती है.
एलजेपी ने JDU को पहुंचाया था नुकसान
2020 के विधानसभा चुनावों में लोजपा, अपने विभाजन से एक साल पहले 135 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद, केवल एक सीट, मटिहानी, जीत पाई थी. हालांकि, जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने के उसके फैसले की एनडीए को भारी कीमत चुकानी पड़ी. 64 सीटों पर जहां पार्टी तीसरे या उससे नीचे स्थान पर रही, वहां उसे विजेता के अंतर से ज्यादा वोट मिले. इनमें से 27 सीटों पर जहां वह दूसरे स्थान पर रही, इसने जेडीयू को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचाया.
सूत्रों ने बताया कि लोजपा (रालोद) द्वारा हाल ही में नीतीश कुमार सरकार के कानून-व्यवस्था के रिकॉर्ड की आलोचना और पासवान द्वारा राज्य की राजनीति में वापसी के दावे, गठबंधन पर ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से थे. हालांकि, लोजपा और रालोद के नेता इस बात पर जोर देते हैं कि यह पार्टी की व्यापक विस्तार रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य लंबे समय में बिहार के कम से कम 15 प्रतिशत वोट हासिल करना है. साल 2020 में व्यापक रूप से चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी केवल 5.66% वोट शेयर हासिल कर पाई.