Begin typing your search...

जिस CM से मिलने तक से किया था इनकार, उसी का पांव छूते हैं नीतीश कुमार; अब उसी के भरोसे 10वीं बार बिहार...

Nitish Kumar Politics: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है. एक दौर था, जब उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने से इनकार कर दिया था.आज वही, उनके पांव छूकर आशीर्वाद लेने से पब्लिक मंच पर भी हिचक नहीं दिखाते. ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार की फिर से सीएम बनने की उम्मीद उन्हीं के भरोसे पर टिकी है. यह कहानी है, बदलते राजनीतिक समीकरणों और नीतीश की सत्ता साधना की.

जिस CM से मिलने तक से किया था इनकार, उसी का पांव छूते हैं नीतीश कुमार; अब उसी के भरोसे 10वीं बार बिहार...
X

Nitish Kumar News: राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन. इसका ज्वलंत उदाहरण हैं बि‍हार की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी और सीएम नीतीश कुमार. नीतीश कुमार, जिन्होंने कई बार अपने फैसलों से सबको चौंकाया है. एक बार फिर उसी नेता के सहारे बिहार में अपनी 10वीं पारी शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे कभी उन्होंने दूरी बना ली थी. पटना में डिनर पार्टी रद्द कर दिया था. सवाल यह है कि क्या यह कदम नीतीश को सत्ता तक पहुंचा पाएगा?

नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में बार-बार समीकरण बदले हैं. एनडीए और महागठबंधन में से वो किसी का मोह नहीं छोड़ पाते. यही वजह है कि जब कोई सियासी आशंका सीएम की कुर्सी को लेकर होती है, तो वह अपना सहयोगी बदल लेते हैं. यही वजह है कि आरजेडी नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने उन्हें 'पलटूराम' तक की उपाधि दी. बिहार के सीएम ने कभी लालू प्रसाद यादव का विरोध कर उन्हें ‘जंगलराज’ का प्रतीक बताया, तो कभी बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता संभाली.

वो नेता कौन? जिससे मिलने से किया था इनकार?

एक समय ऐसा भी था जब नीतीश कुमार ने तत्कालीन गुजरात के सीएम और अब देश के पीएम मोदी से हाथ मिलाने की बात तो दूर, मिलने तक से साफ इनकार कर दिया था. लेकिन राजनीति के पलटते तुरुप के पत्तों ने हालात ऐसे बनाए कि आज नीतीश कुमार उन्हीं के सामने झुकते दिखाई देते हैं. नीतीश का यह बदला हुआ रुख साफ करता है कि वो सत्ता में बने रहने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं.

क्या है मोदी से न मिलने की कहानी?

नीतीश कुमार के इस कहानी की शुरुआत साल 2010 में उस समय हुई जब दोनों पार्टियां मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी थी. जून में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में बुलाई गई. सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक समाप्त होने के बाद देश भर से पटना पहुंचे बीजेपी नेताओं को डिनर पार्टी देने का ऐलान किया था.

किताब 'ब्रोकेन प्रोमिसेज' में मृत्युंजय कुमार लिखते हैं, 'ठीक उसी समय बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से कुछ दिन पहले गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी का एक विज्ञापन हिंदुस्तान और दैनिक जागरण के फ्रंट पेज पर प्रकाशित हुई. विज्ञापन में बीजेपी ने बिहार की धरती पर मोदी के आगमन का स्वागत संदेश दिया था. साथ ही बिहार की बाढ़ विभीषिका में राहत कार्यों के लिए गुजरात सरकार द्वारा दिए गए पांच करोड़ रुपये और एनडीए की लुधियाना की सफल रैली का भी जिक्र था.

यही ने नीतीश कुमार का मूड बदला. वह अपनी विकास यात्रा को छोड़कर पटना वापस लौट आए. पहले से तय कार्यक्रम की राष्ट्रीय कार्यक्रम की बैठक के अंतिम दिन वो बीजेपी नेताओं के सीएम आवास पर भोज देंगे, को रद्द कर दिया. जबकि इसके लिए आमंत्रण कार्ड प्रिंट होने का ऑर्डर दे दिया गया था. इस भोज कार्यक्रम में क्या होगा और क्या नहीं, में नीतीश कुमार खुद रुचि ले रहे थे. इसके बावजूद बीजेपी के विज्ञापन को लेकर नीतीश इतना नाराज हुए कि उन्होंने कार्यक्रम को ही रद्द दिया.

'भोज' कार्यक्रम क्यों बना सियासी मजाक!

नीतीश कुमार ने जेडीयू सांसद संजय झा से तत्काल संपर्क किया. उस समय संजय झा बीजेपी से विधायक थे. उन्होंने संजय झा को डिनर पार्टी रद्द करने का फैसला सुना दिया. स्टाफ को सभी तैयारियां रोक देने को कहा. पार्टी के लिए तैयार समियाना हटाने का आदेश दिया. सभी उनके इस फैसले से भौचक्के रह गए.

सुशील मोदी की अपील को भी ठुकराया

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और नीतीश के करीबी और भरोसेमंद पार्टनर सुशील मोदी ने डिनर पार्टी रद्द नहीं करने के फैसले को बदलने के लिए कहा. इसके लिए उन्होंने जेडीयू प्रमुख हर तरह से भरोसे में लेने की कोशिश की, पर उनकी बातों को नहीं माना.

नीचा दिखाने का प्रयास - नीतीश कुमार

नीतीश कुमार ने उनसे कहा कहा, "चुनाव के पहले इस विज्ञापन का गलत मैसेज जाएगा. जाएगा क्या, गलत मैसेज चला गया है. आप लोगों ने भेजा है. मेरी जानकारी के बिना ये सब अखबार में छपा कैसे? इससे मेरी भावनाएं आहत हुई हैं. विज्ञापन के जरिए बिहार गुजरात की तुलना हुई है. विज्ञापन में ये क्यों लिखा गया, बिहार के लोग गुजरात आएं और देखें, मोदी ने वहां पर समृद्ध गुजरात का निर्माण किया है. यह मुझे नीचा दिखाने का प्रयास है."

5 करोड़ का चेक रिटर्न

इतना ही नहीं, सीएम नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार द्वारा जारी पांच करोड़ का चेक भी लौटा दिया. उनके इस फैसले पर बीजेपी नेताओं ने कहा कि सीएम विज्ञापन को लेकर वहां तक चले गए, जहां उन्हें नहीं जाना चाहिए था.

'चेक' नीतीश को नहीं दिया, BJP का अपमान - नितिन गडकरी

बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने तत्कालीन जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव से दिल्ली में मुलाकात कर कहा था, "पांच करोड़ का चेक सीएम मोदी का निजी चेक नीतीश कुमार के लिए नहीं था. यह चेक बाढ़ से पीड़ित बिहार के लोगों की सहायता के लिए था. उन्होंने हम सबका अपमान किया है."

इसके बावजूद नवंबर 2010 में जेडीयू और बीजेपी बिहार में मिलकर चुनाव लड़ी. एनडीए गठबंधन को नीतीश कुमार के नेतृत्व में अब तक की सबसे बड़ी सियासी जीत मिली. उन्होंने बीजेपी के साथ सरकार भी बनाई. उस दौर में जेडीयू बीजेपी नेताओं के बीच सियासी रिश्ते बसंती हवाओं की तरह हिलोड़ें ले रही थी.

जनता से मिले अपार समर्थन के रथ पर सवार नीतीश कुमार बिहार में भूमि सुधार कानून बनाना चाहते थे, लेकिन उसका ऐसा विरोध हुआ कि वह उससे पीछे हट गए. उनके इस महत्वाकांक्षी खेल का विरोध जेडीयू के कुछ नेताओं ने ही सबसे ज्यादा किया था.

नीतीश ने तो CM पद से इस्तीफा दे दिया?

इन सबके बावजूद नीतीश कुमार जून 2010 में बीजेपी के विज्ञापन के से दिल को पहुंची ठेस को नहीं भूले थे. इसका नतीजा यह हुआ कि साल 2013 में नीतीश 17 साल बाद एनडीए गठबंधन से बाहर हो गए. सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने जीतन राम मांझी को सीएम बनाया. लालू यादव से हाथ मिलाकर महागठबंधन का नेतृत्व किया. साल 2015 का विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाई. तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाया. पर हुआ क्या, साल 2017 में आरजेडी से गठबंधन तोड़कर फिर एनडीए खेमे में आ गए.

अब 10वीं बार सत्ता में वापसी का सपना

वही, नीतीश कुमार जो पहले ही 9 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं. अब उनकी नजर 10वीं बार बिहार का सीएम बनने की है. इसके लिए उन्हे सबसे ज्यादा भरोसा किसी पर है तो वो हैं पीएम मोदी. वह अब आये दिन पीएम मोदी से मुलाकात होने पर उनका पांव छूते नजर आते हैं. यानी उनका पूरा भरोसा अब उसी नेता पर है, जिससे उन्होंने दूरी बना ली थी. डिनर पार्टी कैंसिल कर दिया था.

क्या है समाजवादी नेता का सियासी फार्मूला

नीतीश कुमार हमेशा परिस्थितियों के हिसाब से अपने राजनीतिक फॉर्मूले बदलते रहते हैं. कभी 'विकास पुरुष' की छवि बनाई, कभी 'सामाजिक न्याय' का योद्धा, कभी सुशासन बाबू और कभी गठबंधन बदलकर सत्ता को पेशेवर राजनेता की तरह सत्ता को साधा. यही फॉर्मूला उन्हें बार-बार बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले गया।

क्या जनता करेगी स्वीकार?

बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार की जनता नीतीश कुमार के बार-बार पासा बदलने वाली राजनीति को इस बार स्वीकार करेगी? जनता यह भी देख रही है कि नीतीश सत्ता के लिए कितनी बार पलटी मार चुके हैं. ऐसे में उनकी 10वीं पारी आसान होगी या मुश्किल, यह चुनाव नतीजे ही तय करेंगे.

बिहारबिहार विधानसभा चुनाव 2025नीतीश कुमारनरेंद्र मोदी
अगला लेख