'मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स' से ओझल क्यों हुए कन्हैया कुमार, क्या कांग्रेस ने किनारे कर दिया या है चुनावी रणनीति?

जेएनयू छात्र राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में धमाकेदार एंट्री करने वाले कन्हैया कुमार अचानक सुर्खियों से गायब नजर आ रहे हैं. कभी बिहार से लेकर दिल्ली तक युवा राजनीति का चेहरा कहे जाने वाले कन्हैया का इस तरह ‘मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स’ से ओझल होना, कई सवाल खड़े करता है. क्या कांग्रेस ने उन्हें रथ पर सवार होने वाली घटना के बाद से किनारे कर दिया गया या ये महज एक चुनावी रणनीति है?;

( Image Source:  @kanhaiyakumar )
By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 19 Aug 2025 2:00 PM IST

Kanhaiya Kumar News: पिछले एक दशक से जेएनयू छात्र संघ पूर्व अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार किसी न किसी मामले को लेकर सुर्खियों में बने रहे हैं. उन्होंने 2016 में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' और 'अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं' जैसे नारे देकर रातोंरात युवा राजनेता बन गए. बिहार विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले यानी 16 मार्च 2025 को कन्हैया कुमार ने पश्चिम चंपारण के भितिहवा गांधी आश्रम से कांग्रेस के 'पलायन रोको नौकरी दो पद यात्रा' का शुभारंभ किया था. फिर चुनाव आयोग के एसआईआर अभियान के खिलाफ महागठबंधन के बंद के आह्वान के दिन राहुल गांधी के रथ पर चढ़ने की कोशिश की थी. उन्हें रथ पर चढ़ने नहीं दिया गया था.

इस घटना के बाद से वो मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स से लगभग गायब थे. उसके बाद चर्चा यह है कि कांग्रेस में उपेक्षा का शिकार होने के बाद क्या कन्हैया कुमार सीपीआई के बाद कांग्रेस और अब किसी और पार्टी का दामन थामेंगे?


ईमानदार नेता कौन? 

दरअसल, कांग्रेस पार्टी से साइडलाइन होने की चर्चा उस समय शुरू हुई, जब बिहार में मीडिया की ओर से यह पूछे जाने पर कि सबसे ईमानदार नेता कौन है, तो उन्होंने कहा था कि कोई नेता ईमानदार नहीं है. ईमानदारी के लिए उन्होंने न तो राहुल गांधी का नाम लिया, न सोनिया गांधी का और ना ही तेजस्वी यादव का नाम लिया. जबकि इससे पहले वो लालू यादव को ईमानदार नेता कहने का दावा कर चुके हैं.

अब बिहार की मीडिया में इस बात की चर्चा है कि क्या कन्हैया कुमार अपने अपमान से नाराज हैं. क्या वो अब कांग्रेस का विकल्प की तलाश में हैं? इस चर्चा के बीच उन्होंने 27 जून 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का सीएम चेहरा कौन होगा, को लेकर कांग्रेस ने तस्वीर साफ की थी. उन्होंने कहा था कि ‘महागठबंधन’ की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव के प्रमुख चेहरा होने को लेकर कोई असमंजस और विवाद नहीं है. लेकिन एक 'साजिश' के तहत इनसे ध्यान भटकाने के लिए बार-बार चेहरे की बात की जा रही है.

सियासी सफर

कन्हैया कुमार ने जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए बड़े पैमाने पर पहचान बनाई. देशव्यापी बहस का चेहरा बने. जेएनयू छोड़ने के बाद वह वामपंथी पार्टी का हिस्सा बन गए. लोकसभा चुनाव 2019 में सीपीआई के टिकट पर बेगूसराय से चुनाव लड़ा था. साल 2021 में वामपंथी राजनीति को गुड बाय बोलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस में शामिल होने पर उन्हें राष्ट्रीय नेता के तौर पर पेश किया गया. बिहार में वो कांग्रेस के टिकट बेगूसराय से ही लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारा. दिल्ली में चुनाव के दौरान उन्हें उस समय अपमान का भी घूंट पीना पड़ा, जब किसी ने उन पर हमला बोल दिया. कन्हैया अब तक जितने भी चुनाव लड़े सभी चुनाव हार चुके हैं.  

कांग्रेस ने कन्हैया को पार्टी से वहां के युवाओं को जोड़ने के लिए मैदान में उतारा है. इसके अलावा कई मंचों पर उन्हें प्रवक्ता और स्टार कैंपेनर के तौर पर उतारा. लेकिन धीरे-धीरे उनकी सक्रियता कम होती गई.पिछले कुछ समय के दौरान पार्टी की बड़ी बैठकों और रणनीतिक मंचों पर उनकी मौजूदगी न के बराबर दिखी.



तो क्या किनारे कर दिए गए?

बिहार कांग्रेस के अंदरूनी समीकरणों की वजह से कन्हैया की भूमिका सीमित होती गई. बिहार और दिल्ली की राजनीति में उनके लिए खास जगह नहीं बनाई गई. कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें पूरी तरह प्रमोट करने से बच रहा है. ताकि राज्य स्तर के बड़े नेताओं की नाराजगी न बढ़े.

बिहार के सियासी जानकारों का कहना है कि कन्हैया को पूरी तरह ‘साइडलाइन’ नहीं किया गया है बल्कि उन्हें चुनावी टाइमिंग के हिसाब से मैदान में उतारने की तैयारी है. पार्टी उन्हें युवा वोटरों को जोड़ने के लिए ‘हिडन कार्ड’ की तरह इस्तेमाल कर सकती है. ऐसा बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी की रणनीति के तहत हो रहा है.

कन्हैया के खिलाफ किसकी साजिश? 

आरजेडी नहीं चाहती कि कन्हैया कुमार बिहार से एक्टिव पॉलिटिक्स करें. ऐसा इसलिए कि कन्हैया अगर बिहार से एक्टिव पॉलिटिक्स करेंगे तो तेजस्वी यादव की बतौर नेता छवि कमजोर होगी. माना जाता है कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में आगे बढ़ेंगे तो तेजस्वी सीएम पद के दावेदारी से बाहर हो जाएंगे. ऐसा इसलिए कि कन्हैया कुमार एक शिक्षित युवा और अच्छे वक्त हैं. वह भीड़ के बीच में अपनी बातों को तार्किक तौर पर रखने में खुद सक्षम हैं.


 कौन हैं कन्हैया कुमार?

कन्हैया कुमार मूलत: बिहार के रहने वाले हैं. साल 2015 में जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए कन्हैया कुमार चुने गए थे. 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में एक कश्मीरी अलगाववादी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्र विरोधी नारे लगाने के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी किया था. 2 मार्च 2016 को अदालत ने उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया. कन्हैया कुमार की अगवानी में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' और 'अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं' के नारे लगाने के आरोप लगे थे. हालांकि, कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया.


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