INSIDER: 'सन्यासी' से ‘गैंग्स ऑफ मोकामा’ के ‘छोटे-सरकार’ अनंत सिंह के बिहार-राजनीति की ‘सनसनी’ बनने की 'अनकही-कहानियां'
बिहार चुनाव 2025 में ‘गैंग्स ऑफ मोकामा’ फिर चर्चा में है. बाहुबली अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार, जिन्हें नीतीश कुमार ने 2005 में राजनीति में उतारा था, अब फिर से जेडीयू के टिकट पर मैदान में हैं. हत्या, अपहरण और एके-47 रखने जैसे मामलों में आरोपी अनंत जेल से भी चुनाव जीत चुके हैं. इस बार उनके सामने सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी हैं. मोकामा की यह लड़ाई अब दो माफिया घरानों के बीच सत्ता और वर्चस्व की जंग बन चुकी है.;
बिहार में विधानसभा चुनाव का बुखार नेताओं को बुरी तरह से तपा रहा है. यह वह बुखार है जिसे खतम करने की गोली-दवा कोई खाने को राजी नहीं है. बस किसी तरह से एक बार सत्ता का सिंहासन या सत्ता की कुर्सी मिल जाए. इस चुनावी बुखार को उतारने की वही सबसे बड़ी रामबाण जड़ी बूटी होगी. जी हां इसी बुखार की जद में इन दिनों आया हुआ है “गैंग्स ऑफ मोकामा”. इसका मतलब एक तरफ जरायम की दुनिया के धाकड़ रंगबाज अनंत सिंह यानी “छोटे सरकार” और दूसरी ओर हर वक्त छोटे सरकार की आंखों में करकते रहने वाले दो सगे भाई सोनू सिंह और मोनू सिंह. नाम भले ही तीनों के अलग-अलग हों मगर काम धंधा काला कारोबार सबका एक सा ही है. यानी सत्ता के सिंहासन की आड़ में कानून और पुलिस से अपनी अपनी खाल बचाए रखना. ताकि गैंग्स ऑफ मोकामा के ऊपर कभी कोई पुलिसिया या कानूनी संकट आए तो सरकारी ठेकों को पाने की मैली मंशा से ओतप्रोत...किसी का भी खून तक बहाने में न शर्माने वाले, इन तीनों दबंगों की गर्दनें बची रहें.
आज नहीं बीते कई दशक से बिहार की राजनीति के ‘विलेन’ बने हुए हैं ‘छोटे सरकार’ यानी बाहुबली अनंत सिंह. मतलब बड़े सरकार दिलीप कुमार सिंह के सगे छोटे भाई अनंत सिंह. वही छोटे सरकार जिनकी रक्षा में सदैव राजनीतिक पार्टियां और राजनेता अपनी अपनी ढालें ताने दिन रात खड़े रहते हैं. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में जंगलराज का सूबा बन चुके बिहार में, आगे-पीछे हुकूमत चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी की रही हो. या सूबे का मुख्यमंत्री कोई भी बना हो. सत्ता के अंदर और सत्ता के बाहर अनंत सिंह कहीं भी रहे हों. जेल में या फिर जेल से बाहर मगर, छोटे सरकार के ऊपर कानून और पुलिस का खतरा कभी नहीं मंडरा सका.
राजनीतिक पहुंच के मामले में भले ही सोनू-मोनू मोकामा के बदनाम बाहुबली छोटे सरकार धाकड़ अनंत सिंह के सामने कहीं न टिकते हों. मगर जरायम की दुनिया में यही दो सगे भाई हैं भी ऐसे जिन्होंने गैंग्स ऑफ मोकामा के संचालक यानी दबंग अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार के वर्चस्व को खुली चुनौती बीते कई साल से दी हुई है. ऐसे दबंग कहूं या धाकड़ छोटे सरकार यानी अनंत सिंह फिर से बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ताल ठोंक रहे हैं. इन्हें मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक पार्टी जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड ने मोकामा से मौदान में उतारा है. रौबदार मूंछे काउबॉय हैट और सुबह से रात तक काला-चश्मा पहनने के शौकीन अनंत सिंह के सामने इस बार चुनावी अखाड़े में उन्हें टक्कर देने को उतरी हैं, मुंगेर लोकसभा सीट की पूर्व सांसद और माफिया डॉन सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी. वीणा देवी, छोटे सरकार को लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से टक्कर देंगीं. मतलब एक माफिया डॉन के सामने दूसरे माफिया डॉन की बीवी का मुकाबला है इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा सीट पर.
मोकामा विधानसभा का जातीय समीकरण-
मोकामा विधानसभा सीट पर अगर वोट समीकरण की बात करें तो पिछली विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के हिसाब से यहां कुल मतदाता संख्या में 14.3 फीसदी राजपूत वोट है...जबकि 24 फीसदी वोट यादव का है. इसमें से भी छोटे सरकार का कब्जा यहां मौजूद राजपूत वोट बैंक पर पूरी तरह से माना जाता रहा है. ऐसा नहीं है कि मोकामा सीट बिहार विधानसभा 2025 में ही अनंत सिंह के चुनावी अखाड़े में उतरने के चलते चर्चा में आई हो. मोकामा विधानसभा सीट पर 1990 और 1995 में लगातार दो बार जब इन्हीं छोटे सरकार के बड़े भाई और खूंखार माफिया डॉन धाकड़ दिलीप कुमार सिंह उर्फ बड़े सरकार, चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे. तब भी खूब शोर-शराबा हुआ था. बडे सरकार दोनो ही बार जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वह लंबे समय तक बिहार राज्य सरकार में मंत्री भी रहे थे.
माफिया डॉन धाकड़-बाहुबलियों के लिए रिजर्व समझी जाने लगी यही मोकामा विधानसभा सीट साल 2000 में, जब माफिया डॉन सूरजभान सिंह ने हथियाई. तब दिलीप कुमार सिंह यानी बड़े सरकार और छोटे सरकार अनंत सिंह जैसे दबंग माफिया डॉन को सांप सूंघ गया था. क्योंकि बात नाक की लड़ाई की जो थी. उसके बाद तो साल 2005 में मोकामा विधानसभा सीट एक धाकड़ अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार के पंजे में क्या पहुंची. मानो मतदाताओं ने मोकामा सीट हमेशा के लिए छोटे सरकार के ही नाम लिख डाली हो. मतलब साल 2005 से अब तक मोकामा विधानसभा सीट अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार के ही कब्जे में रही है.
हालांकि साल 2022 में ऐसे धाकड़ और मोकामा विधानसभा सीट के मालिकाना हक वाले अनंत कुमार सिंह को भी तब धक्का लगा था जब, वे एके-47 राइफल रखने के आरोप में गिरफ्तार करके जेल में ठूंस दिए गए. तब हुए उप-चुनाव में भले ही छोटे सरकार ने चुनाव न लड़ा हो मगर मोकामा विधानसभा सीट उनके पंजे से तब भी कोई नहीं छीन सका क्योंकि, अनंत सिंह के जेल में बंद रहने के दौरान हुए उप चुनाव में इसी मोकामा सीट पर उनकी पत्नी ने चुनाव लड़कर जीत दर्ज करवाकर पति की राजनीतिक विरासत को अपने परिवार के पंजों से किसी और के जबड़े में जाने से महफूज करके इतिहास रच डाला था.
2025 में फिर सुलगा मोकामा का मैदान: छोटे सरकार बनाम वीणा देवी की टक्कर
अतीत की इस उठा-पटक के बाद आज बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जिस तरह से अनंत कुमार सिंह और उनके सामने सूरजभान सिंह की पत्नी व मुंगेर की पूर्व सांसद वीणा देवी चुनाव अखाड़े में उतरी हैं, इस तमाम मौजूदा राजनीतिक सरगर्मी या कहिए गुणा-गणित ने 20-25 साल बाद, फिर से मोकामा विधानसभा सीट का मुकाबला बेहद टक्कर का कर दिया है. अनंत सिंह को छोटे सरकार, माफिया डॉन या धाकड़ यूं ही कोई फोकट में नहीं कहता है. इसके पीछे असल वजह है उनके सिर पर लिखे कत्ल, फिरौती, डकैती, अपहरण जैसी धाराओं के अनगिनत संगीन मुकदमे. जिक्र जब मोकामा विधानसभा सीट के बाहुबलियों के नाम से चर्चित या बदनाम होने का हो. तब बताना जरूरी हो जाता है कि बिहार की राजधानी पटना में गंगा किनारे बसे इसी मोकामा की आबादी साल 2011 की जनगणना के अनुसार 2 लाख थी. मोकामा की माटी की खासियत यह भी है कि यहां कत्ल-ए-आम से लाल हुई जमीन से अनंत कुमार सिंह, दिलीप कुमार सिंह, माफिया डॉन सूरजभान सिंह, ललन सिंह और संजय सिंह जैसे खूंखार नाम ही ज्यादा जन्मे हैं.
मोकामा और धाकड़ अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार तो एक दूसरे का पर्यायवाची ही बन चुके हैं, अगर यह कहूं तो कदापि अतिश्योक्ति नहीं होगी. कहते तो यह भी हैं कि कालांतर में जिस मोकामा में बड़े सरकार यानी दिलीप कुमार सिंह की समानांतर सरकार चला करती थी, अब आज के उसी मोकामा में छोटे सरकार यानी अनंत कुमार सिंह के नाम का सिक्का और समानांतर सरकार का राजकाज चलता है. यहां यानी मोकामा ही हद में सरकार और उसका कानून भी अनंत कुमार सिंह के चल रहे. हर कोई, अनंत सिंह के अपने बनाए कानून की जद में झांकने से पहले सौ बार खामोशी के साथ खड़ा रहकर सोचा करता है. जिक्र जब धाकड़ छोटे सरकार यानी माफिया डॉन बदनाम बाहुबली से “माननीय-विधायक” बन चुके अनंत सिंह का हो तब बताना जरूरी है कि जिस ‘लदमा’ में छोटे सरकार का जन्म हुआ उसकी धरती बीते कई दशक से दो अगड़ी जातियों यानी राजपूत और भूमिहारों के बीच होने वाली खूनी जंगों से लाल होकर बदनाम होती रही है.
बचपन से जेल की हवा, बड़े सरकार की छत्रछाया में बना ‘छोटे सरकार’ अनंत सिंह
चार भाईयों में सबसे छोटे अनंत कुमार सिंह के अतीत के ऊपर से अगर परदा उठाकर देखें तो पता चलता है कि वह, महज 9 साल की उम्र में पहली बार जेल के दर्शन कर आए थे. बचपन में एक बार जेल के जंजाल में फंसे तो फिर जेल और उसकी काल-कोठरियों का खौफ अनंत कुमार सिंह के सिर से वैसे ही हमेशा के लिए जाता रहा, जैसे कि मानो चिकने घड़े पर कभी पानी नहीं रुकता है. अनंत सिंह जन्मजात धाकड़ नहीं थे. उन्हें धाकड़ बनाने में उनके बड़े भाई माफिया डॉन और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जंगलराज की हुकूमत में मंत्री रह चुके दिलीप कुमार सिंह उर्फ बड़े सरकार ने काफी सहारा दिया. यह तथ्य भी जगजाहिर है. राजनीतिक, कानूनी पंजों से बचना और दुश्मन को औकात में रखने के गुर, आज के धाकड़ अनंत कुमार सिंह ने अपने बड़े भाई दिलीप कुमार सिंह से ही सीखे-समझे.
आज दुनिया जिन्हें डॉन, माफिया, बाहुबली धाकड़ कह या समझ रही है ऐसे अनंत कुमार सिंह के बारे में एक हैरान करने वाला राज यह भी है कि, यह बीते जमाने में कभी वैराग लेकर साधू-सन्यासी होकर कम उम्र में ही हरिद्वार-अयोध्या भ्रमण पर भी चले गए थे. सन्यास के दौरान साधुओं से बबाल हुआ तो मन से वैराग्य का भूत उतर गया. उसी दौरान बड़े भाई बिरंची सिंह के कत्ल ने तो मानो आज के धाकड़ और कल के बैरागी साधू सन्यासी अनंत कुमार सिंह के दिल-ओ-दिमाग के ऊपर “आग में घी” का काम कर डाला. नतीजा यह राज कि उन्होंने भाई के हत्यारे को एक दिन तैरकर नदी पार करके ईंट पत्थरों से ही कुचल-कुचल कर वह मौत दे डाली जिसे देखने और सुनने वालों की रूह कांप उठी. यह बात तब की है जब बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का सिक्का चलना शुरू हो चुका था.
नीतीश कुमार की चाल: ‘खूंखार डॉन’ को विधानसभा तक पहुंचाने की सियासी बाज़ी
सन् 1994 आते-आते अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मतलब-मौका परस्त लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार को सत्ता के सिंहासन से धकियाकर पतन के कुंए में धकेलने की तैयारी में जुटे थे. उन्हीं दिनों राजनीतिक मौका और मतलबपरस्त मास्टरमाइंड नीतीश बाबू की नजर लंबी चौड़ी डरावनी कद्दावर कद काठी के अनंत कुमार सिंह पर पड़ी. लिहाजा तब साल 2005 के दौर में आज बिहार की राजनीति के ‘शकुनी’ कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने इन्हीं अनंत कुमार सिंह को तमाम विरोधों के बाद भी मोकामा से चुनाव लड़वाकर बिहार विधानसभा में पहुंचा कर, खूंखार बदनाम अपराधी-डॉन, खौफ का पहला नाम रहे बाहुबली को “माननीय विधायक” बनवा डाला.
अपराध जगत के ऐसे बदनाम बाहुबली डॉन माफिया से धाकड़ नेता बनने वाले अनंत कुमार सिंह को मीडिया में मौजूद खबरें अजगर पालने का भी शौकीन भी बताती हैं. छठ जैसे बड़े और पावन त्योहार पर धोती बांटना, रोजगार के लिए गरीबों की मदद के लिए हर वक्त तैयार खड़े रहना, रमजान में इफ्तार पार्टियों का आयोजन आदि-आदि मोकामा के डॉन की बदनाम छवि को थोड़ा बहुत झाड़-पोंछकर साफ सुथरी बनाने की नाकाम कोशिशों में गिनी जाती हैं. ऐसे धाकड़ का जिक्र किए जाने के दौरान बताना जरूरी है कि जिन अनंत सिंह को कभी बदनाम बाहुबली के दलदल से खींचकर नीतीश कुमार ने माननीय विधायक बनाया था, सोशल मीडिया में मौजूद कुछ तस्वीरों में उन्हीं धाकड़ अनंत कुमार सिंह के सामने नीतीश बाबू हाथ जोड़कर बकरी के बच्चे यानी मेमने की मानिंद मिमियाते से भी दिखाई दे रहे हैं, आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब अपने जीवन की अंतिम सांस तक सत्ता के सिंहासन की चाहत में किसी भी हद तक नीचे आ गिरने वाले, नीतीश कुमार से बेहतर दूसरा भला क्यों और कैसे दे सकता है...?
जेल से जीती चुनावी जंग: जब ‘छोटे सरकार’ ने लालू-नीतीश दोनों को दिखाया आईना
कहते हैं कि राजनीति में दुश्मन का दुश्मन किसी का भी दोस्त बन सकता है. साल 2015 में जब मतलबपरस्ती के लिए लालू प्रसाद यादव और घाघ नीतीश कुमार की दोस्ती हुई तो, अनंत कुमार सिंह ने उन दोनो से किनारा करके जनता दल यूनाइटेड को लात मार दी. उस साल का विधानसभा चुनाव उन्होंने जेल की सलाखों में बंद रहते हुए लड़ा और बिना एक भी दिन प्रचार किए हुए वे जेल से ही 18 हजार मतों से चुनाव जीत भी गए. यह अलग बात है कि साल 2004 में बिहार पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने मोकामा के मास्टरमाइंड बाहुबली इन्हीं अनंत सिंह के अड्डे पर छापा मारा तो वहां घंटो चली खूनी मुठभेड़ में पुलिस का एक जवान शहीद हो गया. आठ अन्य लोग मौके पर मारे गए. उस खूनी मुठभेड़ में गोली लगने से अनंत सिंह भी जख्मी हुए थे. मगर तब भी एसटीएफ छोटे सरकार को छू पाने में नाकाम रही.
साल 2005 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे उसी दौर में साल 2007 में अनंत कुमार सिंह का नाम एक दुष्कर्म कांड में आ गया. मीडिया में मौजूद खबरों के मुताबिक, पत्रकार जब उनके पास छानबीन करने पहुंचे तो पत्रकारों को बदनाम बाहुबली ने बंधक बना लिया. भले ही तब मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने चुप रहने के लिए अपने मुंह पर लगाम लगा ली थी मगर उस शर्मनाक कांड में बदमाश से नेता बने अनंत कुमार सिंह की गिरफ्तारी भी हुई थी. ऐसे छोटे सरकार के खौफ की कथा अनंत है. जब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री थे तो बिहार की राजनीतिक की इस बदनाम शख्सियत अनंत सिंह ने, उन्हें खुलेआम डंके की चोट पर धमका डाला था. अनंत सिंह का एके-47 राइफल को लहराते हुए आमजन में खौफ पैदा करने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो ही चुका है. नीतीश सरकार में मंत्री रहीं परवीन अमानुल्लाह को धमकाने की शर्मनाक घटना जमाने को पता है.
एके-47 से लेकर साकेत कोर्ट तक: ‘छोटे सरकार’ की वापसी पर नीतीश की ओछी राजनीति का खेल
खबरों की मानें तो 16 अगस्त 2019 को जब पुलिस ने उनके अड्डे पर छापा मारा तो वहां से 1 एके 47 राइफल, दो हथगोले, कई मैगजीन और कुछ जिंदा कारतूस बरामद हुए थे. उस मामले में जब यूएपीए के तहत अनंत सिंह के ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ तो बिहार के दबंग मोकामा के मास्टरमाइंड, अपनों के चहेते माननीय विधायक को दिल्ली की साकेत कोर्ट में सरेंडर तक करना पड़ा था. सोचिए अब ऐसे धाकड़ और बदनाम अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार को बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर से, मोकामा का ‘महान विधायक’ बनाने पर अड़े हुए हैं. अपनी पार्टी से विधायकी का चुनाव लड़वाने का टिकट देकर. मतलब साफ है कि मुद्दा जब घटिया और मतलबपरस्त ओछी राजनीति में सत्ता के सिंहासन पर बैठने की घिनौनी ललक पूरी करने का हो तब फिर उसूल, कायदा और कानून, इज्जत-आबरू बदनामी के बटवृक्ष के ऊपर टंग कर सिवाए सिसकने के और कुछ नहीं कर सकते हैं. क्योंकि यह राजनीति है, जिसमें सब जायज है.