अंदर की बात: बिहार NDA में सीट नहीं, ‘बड़े भाई’ और दमदार दलित नेता की दावेदारी पर संग्राम

बिहार चुनाव में भाजपा, जेडीयू, एलजेपीआर, हम और आरएलएम के बीच 'बड़र भाई कौन' और सबसे बड़े दलित चेहरे को लेकर खींचतान चरम पर है. आगामी चुनाव से पहले यह टकराव गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रहा है. जबकि पार्टी नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारे को लेकर खींचतान स्वाभाविक प्रक्रिया है.;

महागठबंधन के बाद अब बिहार एनडीए (NDA) में सीट बंटवारे को लेकर घमासान तेज हो गया है. यह मसला प्रदेश की राजनीति में हमेशा तनाव और सौदेबाजी का कारण रहा है. इस बार एनडीए के भीतर न सिर्फ सीटों की संख्या बल्कि नेतृत्व की हैसियत और दलित वोट बैंक का ठेका किसके पास रहेगा, इस पर भी विवाद गहरा है. भाजपा खुद को बड़े भाई के रूप में पेश करना चाहती है, वहीं जेडीयू अपनी पारंपरिक पकड़ और दलित नेताओं की लोकप्रियता को हथियार बना रही है. फिलहाल, एनडीए में शामिल दलों नेताओं में एक राय यह है कि सभी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे और 225 सीट जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे.

NDA में सीट पर फंसा पेच

भाजपा और जेडीयू दोनों 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं. भाजपा का दावा है कि 2019 और 2020 के प्रदर्शन के आधार पर बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही है. जेडीयू का तर्क है कि राज्य की राजनीति में उसकी जमीनी पकड़ और संगठनात्मक शक्ति भाजपा से ज्यादा है. वहीं जेडीयू लोकसभा चुनाव पर स्ट्राइक को आधार बनाते हुए बड़े भाई की भूमिका को छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं है.

वैसे, एनडीए में 'बड़े भाई' की राजनीति नया नहीं है. 2010 में जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में थी, लेकिन 2020 के बाद भाजपा ने बढ़त हासिल कर ली. अब 2025 के चुनाव से पहले यह प्रश्न फिर खड़ा हो गया है कि निर्णायक चेहरा कौन होगा? पार्टी सूत्रों के मुताबिक जेडीयू 102 सीटों पर और बीजेपी 101 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.

दलित वोट बैंक पर किसका दावा, कितना सही

एनडीए में तीन छोटे सियासी दल हैं. इन दलों के बीच भी बड़ा सियासी दल कौन, को लेकर रेस है. बिहार में दलित मतदाता करीब 17% हैं, जो सत्ता की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जिन दलों के नेताओं में इसको लेकर रेस है, उनमें चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा का नाम शामिल है. भाजपा रामविलास पासवान की विरासत को लोजपा (रामविलास) को तवज्जो देने के पक्ष में है. जेडीयू, जीतन राम मांझी और अपने दलित चेहरों को आगे कर भाजपा को टक्कर दे रही है. यह सवाल इसलिए अहम है कि उसी के आधार पर यह तय होगा कि बिहार में सबसे बड़ा दलित नेता किसे माना जाए. फिर, उसी के आधार पर तय हो कि किसे कितनी सीट मिले.

चिराग पासवान लोकसभा चुनाव परिणाम के आधार पर 40 सीटों की मांग पर अड़े तो जीतन राम मांझी का कहना है कि उन्हें 15 से 20 सीट चाहिए. उपेंद्र कुशवाहा ने अप्रत्यक्ष रूप से 10 से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक एलजेपीआर को 20, हम और आरएलएम को 10-10 सीटें एनडीए कोटे के तहत मिलने की संभावना है.

क्या चाहती है BJP?

भाजपा चाहती है कि उसे शहरी और अति पिछड़ा वर्ग बहुल सीटें ज्यादा मिलें. जेडीयू ग्रामीण और दलित-पिछड़ा इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत मानती है, लेकिन लोजपा (रामविलास) और HAM (जीतन राम मांझी) की पार्टी सीटों का समीकरण बिगाड़ सकती है. अगर यह खींचतान ज्यादा बढ़ती है तो विपक्षी महागठबंधन इसका फायदा उठा सकता है. खासकर, दलित वोट बैंक में दरार पड़ना एनडीए के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है.

30 सितंबर से पहले होगा सीट शेयरिंग पर फैसला : नंद किशोर 

बिहार भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नंद किशोर यादव ने एनडीए में सीट शेयरिंग के मसले पर कहा कि इसका जवाब दिल्ली में बैठे लोग दे सकते हैं. इतना कह सकता हूं कि इसकी प्रक्रिया अंतिम चरण में है. इस माह के समाप्त होने से पहले इस फैसला हो जाएगा.

छोटे भाई का सवाल ही नहीं - परिमल कुमार  

जनता दल यूनाइटेड बिहार के प्रवक्ता परिमल कुमार का कहना है कि हमारी पार्टी का छोटे भाई की भूमिका में होने का सवाल ही नहीं होता है. जहां तक सीटों की बात है तो विधानसभा में जेडीयू—बीजेपी का जो ट्रेंड रहा है, वही इस बार भी आपको देखने को मिलेगा. ऐसा इसलिए कि जेडीयू में सीएम नीतीश कुमार जो फैसला ले लेते हैं, वहीं अंतिम होता है. फिर पीएम मोदी और अमित शाह भी जानते हैं कि बिहार का कायापलट किसकी वजह से हुआ है. इस बात को भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मानता भी है. एनडीए में शामिल सभी दल के नेताओं का जोर सीटों की संख्या पर नहीं, बिहार में एनडीए को 225 सीट जिताने की है. ऐसे में किसे, क्या मिलेगा, यह विषय सेकेंडरी हो जाता है.

सभी मिलकर एनडीए को दिलाएंगे जीत - सुनंदा केसरी

बीजेपी बिहार की नेता डॉ. सुनंदा का कहना है कि सीट बंटवारे का काम अंतिम चरण है. किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी, वो दिल्ली में ही तय तय होगा. सभी चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा सीट मिले, लेकिन इस बात पर सभी की सहमति है कि चुनाव मिलकर लड़ेंगे, और एनडीए को जिताएंगे.

जिम्मेदारी वाली सीटों पर जीत की गारंटी हैं चिराग - विभय झा

एलजेपीआर बिहार के प्रवक्ता डॉ. विभय झा का कहना है कि लोकसभा चुनाव में हमारी पार्टी की स्ट्राइक रेट 100 फीसदी है. इस लिहाज से 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान हर हाल में 40 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन सीटों की संख्या इस पर बात निर्भर करेगा कि गठबंधन कोटे के तहत एलजेपीआर के कोटे में कितनी सीटें आती हैं. चिराग पासवान को जितनी भी सीटें मिलेंगी, उस पर एनडीए को जिताने की गारंटी उन्होंने खुले तौर ली है. वो पीएम मोदी के हनुमान हैं. उन्हें जो जिम्मेदारी मिलेगी उसे पूरा कर दिखाएंगे.

एलजेपीआर के बिना एनडीए को बहुमत मुश्किल - रंजन सिंह

बिहार लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान के प्रवक्ता रंजन सिंह का कहना है कि एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत चल रही है. अभी सीटों की संख्या फाइनल होने का काम बाकी है. इस बार इतना तय है कि एलजेपीआर एनडीए के साथ हल चुनाव लड़ने जा रही है. पिछले बार की तरह अलग से चुनाव लड़ने की पार्टी की कोई मंशा नहीं है. जहां तक सीटों की गठबंधन के नेताओं को पता है कि चिराग पासवान के बिना एनडीए की नैया पार नहीं लगेगी. बड़े भाई कौन के मसले पर उन्होंने कहा कि एलजेपीआर तीसरे नंबर की पार्टी. नंबर एक और दो के बीच एक सीट का अंतर रहेगा.

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