बिहार में चुनावी एजेंडे की लड़ाई, RJD 'गुंडाराज' को बनाएगी 'जंगलराज' की ढाल! नीतीश के पास क्या है एंटी इनकंबेंसी का जवाब?
बिहार चुनाव 2025 का जंग जीतने के लिए विपक्ष इंडिया ब्लॉक सामाजिक न्याय और बिहारी गौरव अभियान चला रहा है. इसके अलावा, जंगलराज को काउंटर करने के लिए सुशासन बाबू की छवि को 'गुंडाराज' बनाने की तैयारी है. इसके अलावा, महागठबंधन चुनाव सुधार, एंटी इनकम्बेंसी, पलायन और बेरोजगारी जैसे मसलों को लेकर अपने पक्ष में नैरेटिव गढ़ने में जुटा है.;
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार पहले की तरह जातीय राजनीति के साथ विकास और शासन-संबंधी मुद्दे भी प्रमुख रूप से उभरकर आ रहे हैं. खासकर विपक्ष युवा-आधारित मांगें, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून‑व्यवस्था, आरक्षण और नागरिकता-संबंधी विवाद चुनाव की मुख्य रूपरेखा तय करने में जुटा है. बिहार की युवा आबादी की बात करें तो सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और रोजगार है. सामाजिक समस्या की शक्ल ले चुका पलायन भी अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी यानी एनडीए में शामिल दल विकास, सुशासन, जन हितैषी योजनाओं और लालू के जंगलराज के मुद्दा बनाने जुटे हैं. ताकि एनडीए की सत्ता में फिर से वापसी संभव हो सके.
बिहार की कुल आबादी में 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की हिस्सेदारी आधे से अधिक है. 2023 के जातिगत सर्वे के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है. इसमें से करीब 58 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र के युवाओं की है. युवा आबादी के लिहाज से देखें तो देश के सबसे अधिक युवा आबादी वाले राज्य में चुनाव से पहले नबर है. यानी नई सरकार का भविष्य बिहार के बेरोजगार युवा तय करेंगे. यही वजह है कि इस बड़े वर्ग को साधने और अपने पाले में लाने की कवायद में पक्ष और विपक्ष दोनों जुटा दिख रहा है. वैसे भी युवाओं को लेकर हिंदी पट्टी का एक बहुत चर्चित नारा रहा है- 'जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है. अब देखना होगा कि इस बार बिहार में क्या गुल खिलाएंगे.
हर जिले में बनवाएंगे इकोनॉमिक जोन - समीर महासेठ
आरजेडी विधायक समीर महासेठ बिहार के मुताबिक आरजेडी का जोर बेरोजगारी, पलायन रोकना, कानून व्यवस्था, हर जिले में 200 एकड़ जमीन लेकर स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनवाने और हर पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य की सुविधा बहाल देगा. चुनावी जीत के बाद पार्टी उसी पर अमल करेगी.
बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट - रंजन सिंह
लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रवक्ता रंजन सिंह का कहना है कि बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट, पलायन को रिवर्स पलायन में बदलना, सुखा और बाढ़ से लोगों को निजात दिलाना, हर जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं पर जोर देने की है. इसके अलावा, शिक्षा, कानून व्यवस्था और प्रदेश के विकास पर हमारी पार्टी जोर देगी.
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यह चुनाव पारंपरिक जातीय राजनीति से हटकर “रिज़ल्ट‑आधारित” चुनाव की तरफ बढ़ रहा है. सिर्फ वादों से नहीं, बल्कि रोजगार, स्वास्थ्य‑शिक्षा, कानून‑व्यवस्था और नागरिकता जैसे ठोस मुद्दों पर जनता अब निर्णय करेगी. कौन जीतकर किस एजेंडे को आगे बढ़ाता है, यह बिहार की राजनीति को नई दिशा देगा.
बिहार विधानसभा चुनाव के 5 प्रमुख मुद्दे
1. कानून‑व्यवस्था
बिहार में एनडीए में शामिल जेडीयू, बीजेपी, एलजेपीआर, हम और आरएलपी जैसे दलों के नेता लालू यादव के जंगलराज को लेकर लोगों को आरजेडी के खौफ दिखाते आए हैं. इस बाद आपराधिक घटनाओं में हाल के दिनों में बढ़ोतरी के बाद
कांग्रेस और RJD का आरोप है कि बिहार “क्राइम कैपिटल” बनता जा रहा है. नीतीश कुमार अब सुशासन बाबू नहीं गुंडाराज के संरक्षक हो गए है. पिछले 15 दिनों में 24 हत्या की घटनाएं हुई हैं. राज्य में हत्या की बढ़ती घटनाएं सामने आई हैं. इसलिए दोनों पक्ष इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं.
2. मतदाता सूची सुधार (SIR)
चुनाव आयोग के "Special Intensive Revision" (SIR) कार्यक्रम के तहत 35 लाख से अधिक मतदाताओं को सूची हटाने की तैयारी है. विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया का मकसद चुनावी वोटरों को खासकर मुस्लिम, बंगाली मूल और आदिवासी समुदायों को प्रभावित करना है. यह मुद्धा "लोकतंत्र पर खतरा" और "निर्वाचन में हेराफेरी" की तर्ज पर फरमाया है. आरजेडी और कांग्रेस इस मसले पर समझौता करने के मूड में नहीं है.
3. बेरोजगारी और पलायन
बिहार की युवा आबादी की बात करें तो सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और रोजगार है. सामाजिक समस्या की शक्ल ले चुका पलायन भी अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. पलायन करने वाली आबादी में बड़ी भागीदारी अच्छी शिक्षा, बेहतर रोजगार की चाह रखने वाले युवाओं की है. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (केंद्रीय) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार के करीब तीन करोड़ लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में रह रहे हैं. हर साल करीब 50 लाख लोग शिक्षा और रोजगार के लिए बिहार से पलायन करते हैं.
इस बार बिहार में उच्च बेरोजगारी और युवा पलायन बड़े सामाजिक-आर्थिक मुद्दे हैं. विपक्षी पार्टियां जैसे कि JDU 2030 तक 1 करोड़ युवाओं को नौकरी देने और कौशल प्रशिक्षण यूनिवर्सिटी सहित योजनाओं का वादा कर रही हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि अब महागठबंधन के एजेंडे में भी रोजगार प्राथमिकता में है.
4. जाति एवं आदिवासी समीकरण
बिहार की राजनीति में जाति अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. EBC, OBC, SC और ST वोट बैंक पर पूरा चुनाव इस बार भी केंद्रित रहेगी. आदिवासी (लगभग 25 लाख मतदाता) अब मुख्य मानवाधिकार, भूमि विवाद, और रोजगार जैसे मुद्दों पर जोर दे रहे हैं, जिससे पार्टियां भी इनकी ओर रुख कर रही हैं.
5. एंटी इनकंबेंसी फैक्टर
जनता के बीच सबसे बड़ी नाराजगी नीतीश कुमार के लगातार बदलते राजनीतिक रुख को लेकर है. एक बार बीजेपी के साथ, फिर महागठबंधन, फिर वापस बीजेपी के साथ-जनता को लगने लगा है कि विकास से ज्यादा सत्ता का गणित हावी है. लाखों युवाओं का पलायन, सीमित नौकरियां और प्राइवेट सेक्टर में ठहराव ने नीतीश सरकार की ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि को नुकसान पहुंचाता है. सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति में कोई बड़ा सुधार न होना, एंटी-इनकंबेंसी को हवा देता है. हर साल बाढ़ प्रभावित जिलों में राहत कार्यों की सुस्ती और भ्रष्टाचार के आरोप भी नाराजगी भी बड़ा कारण है. आरजेडी की तरफ से 'अति पिछड़ा' कार्ड खेला जा रहा है, लेकिन एनडीए की तरफ से इस वर्ग को साधने की कोशिशों के बावजूद जमीनी स्तर पर नाराजगी दिखाई देती है.