गांधी का नाम जपने वाली कांग्रेस को आजादी के बाद अब क्यों आई सदाकत आश्रम की याद? जानें इसका इतिहास
गांधी का नाम जपने वाली कांग्रेस को आजादी के 78 साल बाद बाद पटना के सदाकत आश्रम की याद क्यों आई? कभी स्वतंत्रता संग्राम का अहम केंद्र रहा यह आश्रम आज फिर सियासत के बीच चर्चा में है. बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी की बैठक सदाकत आश्रम में हुई इस बैठक को लेकर लोग कह रहे हैं, इस बार पार्टी के लिए कुछ कर गुजरने का सबसे अच्छा मौका है.;
बिहार की राजनीति का गढ़ माने जाने वाले पटना का सदाकत आश्रम स्वतंत्रता संग्राम और कांग्रेस की गतिविधियों का गवाह रहा है. महात्मा गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मौजूदगी ने इसे ऐतिहासिक पहचान दी, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस धीरे-धीरे इससे दूर होती गई. अब चुनावी सियासत के मद्देनजर कांग्रेस ने फिर से इस आश्रम की ओर रुख किया है. सवाल है कि गांधी के नाम पर राजनीति करने वाली कांग्रेस को आखिर अब क्यों याद आया यह आश्रम?
सदाकत आश्रम का इतिहास
बहुत कम लोग जानते हैं कि बिहार कांग्रेस की स्थापना 1921 में हुई थी. यानी कांग्रेस की स्थापना 36 साल बाद. बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के दफ्तर के रूप में इसकी शुरुआत हुई, जिसे बाद में सदाकत आश्रम के रूप में इसकी पहचान बनी. आज भी बिहार कांग्रेस के मुख्यालय को लोग इसी नाम से जानते हैं. यह पटना के गंगा किनारे पर स्थित है.
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स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है इसका नाम
महात्मा गांधी ने बिहार प्रवास के दौरान कई बार यहां डेरा डाला. आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी लंबे समय तक यहीं रहकर काम किया. यह आश्रम स्वतंत्रता संग्राम और किसानों के आंदोलनों की रणनीति बनाने का प्रमुख ठिकाना रहा.
राजेंद्र प्रसाद ने यही ली थी अंतिम सांस
देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पद छोड़ने के बाद यही आकर रहे थे. उन्होंने यहीं अपने अंतिम दिन बिताए. आजादी के बाद कांग्रेस धीरे-धीरे इस आश्रम से दूर होती चली गई.कांग्रेस की बैठकों और आंदोलनों का यह केंद्र उपेक्षा का शिकार होता गया. बिहार के नेताओं और लोगों की सदाकत आश्रम में रही, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में इसकी अहमियत घट गई.
क्यों याद आया सदाकत आश्रम?
बिहार चुनाव और महागठबंधन की मजबूती के लिए कांग्रेस ने फिर से इस ऐतिहासिक स्थल का सहारा लिया. गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की विरासत के जरिए जनता से जुड़ाव दिखाने की कोशिश की. कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देना चाहती है कि वह अब भी गांधी की राह पर चलने का दावा करती है.
कांग्रेस CWC की बैठक का बिहार चुनाव पर असर कई तरह से देखा जा सकता है:
- CWC की बैठक किसी राज्य में होना अपने-आप में एक राजनीतिक संदेश है. बिहार में बैठक का मतलब है कि कांग्रेस यहां गंभीरता से चुनावी तैयारी कर रही है और अपने संगठन को एक्टिव मोड में लाना चाहती है. इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा और पार्टी की मौजूदगी का एहसास होगा.
- हागठबंधन में कांग्रेस की भूमिका पर कई बार सवाल उठते हैं. ऐसे में बैठक यह संकेत देती है कि कांग्रेस सीट बंटवारे और रणनीति में अपनी अहमियत दिखाना चाहती है. इससे आरजेडी जैसे सहयोगियों पर दबाव बढ़ सकता है.
- CWC मीटिंग में राहुल गांधी और अन्य नेता चुनावी मुद्दों को फोकस में ला सकते हैं. बेरोजगारी, महंगाई, सामाजिक न्याय और केंद्र की नीतियों पर चर्चा कर नैरेटिव बनाने की कोशिश होगी. यही आगे चलकर प्रचार की दिशा तय करेगा.
- ठक से पहले और बाद में पार्टी कार्यकर्ताओं में सक्रियता बढ़ती है. इससे बूथ स्तर पर मजबूती मिल सकती है जो किसी भी चुनाव में बेहद अहम होती है.
- बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति की बुधवार को बैठक पटना में हुई. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सदाकत आश्रम में झंडा फहराकर, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की विस्तारित बैठक का शुभारंभ किया. इससे जनता के बीच यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार है. साथ ही विपक्षी पार्टियां भी कांग्रेस को अब हल्के में नहीं ले पाएंगी.