क्‍यों बदली गई सम्राट चौधरी की सीट, क्‍या बिहार BJP के सबसे कद्दावर नेता के हार जाने का था डर, शकुनी-पार्वती के गढ़ में बदलेगा समीकरण!

बिहार की तारापुर विधानसभा सीट पर शकुनी चौधरी और उनके परिवार का दशकों से दबदबा रहा है. अब BJP ने इसी सीट पर नया समीकरण बनाने की तैयारी की है. वर्तमान में एमएलसी और बीजेपी के कद्दावर नेता सम्राट चौधरी को इस सीट से उतारकर बड़ा दांव खेल दिया है. सम्राट वर्तमान सरकार में डिप्टी सीएम हैं.;

( Image Source:  Samrat Chaudhary Facebook )
Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 15 Oct 2025 2:09 PM IST

बिहार की सियासत में तारापुर विधानसभा सीट को ‘शकुनी चौधरी की कर्मभूमि’ कहा जाता है. सात बार इस सीट से जीत दर्ज कर चुके शकुनी चौधरी और सम्राट चौधरी मां भी इस सीट से विधायक रह चुकी हैं. इस बार बीजेपी ने सम्राट चौधरी के नेतृत्व में इस सीट पर नया दांव खेला है. सवाल यह है कि क्या अब तारापुर का समीकरण बदल जाएगा? सम्राट अपने पापा और मम्मी की लाज रख पाएंगे. ऐसा इसलिए कि सम्राट को न केवल अपनी सीट से जीत हासिल करने की जिम्मेदारी हैे, बल्कि प्रदेश भर में उन्हें पार्टी प्रत्याशी की पक्ष में चुनाव प्रचार करने की भी जिम्मेदारी है.

बीजेपी ने सम्राट चौधरी को उनकी पारिवारिक सीट जमुई संसदीय क्षेत्र की तारापुर सीट से उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से उनके पिता शकुनी चौधरी और मां पार्वती देवी कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर विधायक चुने जा चुके हैं. साल 2020 के उपचुनाव में जेडीयू दयू के राजीव कुमार सिंह ने तारापुर से जीत दर्ज की थी. इस बार यह सीट गठबंधन कोटे के तहत बीजेपी के पास जाने की वजह से राजीव  सिंह का टिकट कट गया है.

सम्राट चौधरी पहली बार तारापुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. इससे पहले वो खगड़िया जिले के परबत्ता सीट से 2010 और 2015 में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे. इसके बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया. इस समय वो बिहार विधानसभा के उच्च सदन विधान परिषद के सदस्य हैं. वे 16 अक्टूबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे.

पीके ने 'सम्राट' को बनाया मुद्दा

जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर ने इस बार के चुनाव में सम्राट चौधरी को ही मुद्दा बना दिया है. प्रशांत उनके हाई स्कूल की डिग्री पर ही सवाल उठा रहे हैं. इसके अलावा प्रशांत 1995 में हुए तारापुर नरसंहार को लेकर भी आरोप लगा रहे हैं. इसका कोई समुचित जवाब सम्राट आज तक नहीं दे पाए हैं. अब जब बीजेपी ने तारापुर से सम्राट चौधरी की उम्मीदवारी फाइनल कर दी है तो प्रशांत एक बार फिर तारापुर नरसंहार का मामला एक फिर उठा सकते हैं. यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है.

क्या है तारापुर का सियासी समीकरण

तारापुर विधानसभा सीट कुशवाहा बहुल सीट है. इस सीट पर हमेशा से उम्मीदवारों की योग्यता से उसकी जाति से आंकी जाती है. इस सीट पर फिलहाल जेडीयू का कब्जा है. जेडीयू विधायक राजीव कुमार सिंह ने मेवालाल चौधरी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इस सीट पर कब्जा कर लिया था. जमुई संसदीय क्षेत्र में आने वाले तारापुर की आबादी 4,56,549 है. इलाके की कुल आबादी में से 87.63 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है और 12.37 फीसदी आबादी शहरी इलाकों में है.

तारापुर में एससी-एसटी का औसत अनुपात कुल जनसंख्या के 15.01 से 1.97 है. 1951 में अस्तित्व में आई सीट पर शुरुआत में कांग्रेस का कब्जा रहा था. उसके बाद 60 के दशक के शुरुआती दिनों में पार्टी को इस सीट पर हार मिली. 1972 में कहते हैं कि एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन अगले चुनाव में आपातकाल की वजह से हार का सामना करना पड़ा. साल 2000 में राजद सुप्रीमों लालू यादव की पार्टी की एंट्री इस सीट पर रही और शकुनी चौधरी को जीत मिली. उसके बाद भी शकुनी चौधरी लगातार चुनाव जीतते रहे हैं.

जेडीयू का सीट पर कब्जा

तारापुर विधानसभा सीट पर बदलाव 2010 के विधानसभा चुनाव में आया. जब शकुनी चौधरी को जेडीयू नेत्री नीता चौधरी ने हरा दिया. जेडीयू ने 2010 में इस सीट पर अपना खाता खोला. उसके बाद 2015 के चुनाव में भी जेडीयू को जीत मिली. मेवा लाल चौधरी को तारापुर विधानसभा चुनाव का ताज मिला. तब से लेकर अभी तक तारापुर जेडीयू की मजबूत सीट है. अब राजद और जेडीयू महागठबंधन में एक साथ हैं. सीट किसी के भी हिस्से में जाए. महागठबंधन की दावेदारी इस सीट पर मजबूत दिखती है.

मेवालाल चौधरी के निधन के बाद तारापुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें जेडीयू के उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह ने जीत हासिल की. उपचुनाव में राजीव कुमार सिंह को 78 हजार 966 वोट मिले थे. राजद के प्रत्याशी को 75,145 वोट मिले थे. राजीव कुमार सिंह को सभी जातियों का सपोर्ट मिला. हालांकि राजद ने जेडीयू को इस सीट पर कड़ी टक्कर दी थी. कांग्रेस और राजद ने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए थे. जेडीयू एनडीए का हिस्सा रही. परिणाम परिणाम जेडीयू के पक्ष में आया.

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