'वोट दे पाएगी या नहीं' को लेकर उलझन में बिहार की मुखिया, नेपाल बॉर्डर पर अलग ही टेंशन, EC के SIR का असर

Bihar Chunav 2025: बिहार के मधुबनी जिले की पूर्व मुखिया कहती हैं कि उनके दादा मूल रूप से भारत के थे, लेकिन नेपाल के महोत्तरी जिले में जाकर बस गए. उनके माता-पिता दोनों का जन्म और पालन-पोषण वहीं हुआ. फिर 2008 में मेरी शादी मधुबनी के एक किसान से हुई, जो स्वयं पूर्व में मुखिया रह चुके हैं, और यहीं बस गए.;

( Image Source:  Election Commission of India/@ECISVEEP )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 9 July 2025 1:43 PM IST

बिहार में चुनाव आयोग की ओर से जारी विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान को लेकर प्रदेश के लोगों अ​निश्चय की स्थिति बरकरार है. चार साल पहले 34 वर्षीया यह महिला मधुबनी जिले में अपने गांव की मुखिया चुनी गई थीं. अब, बिहार में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की वजह से वे उलझन में हैं. टेंशन में इसलिए कि अब उन्हें इस बात की जानकारी तक नहीं है कि वो मुखिया होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में वोट डाल पाएंगे या नहीं. यह स्थिति उनके अस्तित्व के लिए बड़ा सवाल हो गया है.

दरअसल, बिहार में नेपाल से लगते सभी सीमावर्ती जिलों में मूल रूप से नेपाल से आए अन्य लोगों को भी लग रहा है, उनका मतदाता होने का अधिकार खतरे में है. पीढ़ियों से सीमा पार के आठ सीमावर्ती जिलो के लोगों के साथ नेपाल वालों के वैवाहिक संबंध रहे हैं.

बीएलओ ने खंड विकास अधिकारी से किया संपर्क

एक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और 34 वर्षीया महिला के एक रिश्तेदार अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते. उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा, "यहां मामला फंस रहा है. हर परिवार में कम से कम एक बहू नेपाल से है. हमारे यहां हर बूथ पर ऐसे कम से कम 50-100 मामले आते हैं." बीएलओ ने अब आगे क्या करना है, इस बारे में निर्देश लेने के लिए खंड विकास अधिकारी से संपर्क किया है.

8 जिलों के लोगों के बीच है रोटी-बेटी का रिश्ता

मधुबनी, सीतामढ़ी, किशनगंज और सुपौल जैसे जिले नेपाल के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को "रोटी-बेटी का रिश्ता" कहते हैं. लेकिन, चूंकि चुनाव आयोग ने वर्षों से मतदाता सूची में "विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने" को एसआईआर के कारणों में से एक बताया है, इसलिए नेपाल के वे पति-पत्नी, जिनकी शादी भारतीय परिवारों में हुई है, जो कानूनी रूप से देश में रह रहे हैं और जिनके पास आधार, पैन और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज़ हैं, उन्हें आशंका है कि उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

नेपाल का स्टेटस म्यांमार और बांग्लादेश से अलग

आधिकारिक तौर पर नेपाल की राजनयिक स्थिति म्यांमार और बांग्लादेश से अलग है, जहां से सबसे ज्यादा अवैध प्रवास होने का संदेह है. भारत और नेपाल सरकारों के बीच 31 जुलाई, 1950 को हस्ताक्षरित शांति और मैत्री संधि के अनुच्छेद 7 के अनुसार दोनों देश "पारस्परिक आधार पर, एक देश के नागरिकों को दूसरे देश के क्षेत्रों में निवास, संपत्ति के स्वामित्व, व्यापार और वाणिज्य में भागीदारी, आवागमन और समान प्रकृति के अन्य विशेषाधिकारों के मामले में समान विशेषाधिकार प्रदान करने" पर सहमत हुए थे.

भारतीय और नेपाली नागरिक बिना किसी वीजा आवश्यकता के सीमा पार रहते, काम करते और विवाह करते रहे हैं. लेकिन, मतदान के मामले में कानून स्पष्ट है कि संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार केवल वयस्क भारतीय नागरिक ही मतदाता के रूप में पंजीकृत हो सकते हैं.

मेरे पास नहीं है कोई दस्तावेज - पूर्व मुखिया

पूर्व मुखिया कहती हैं कि उनके दादा मूल रूप से भारत के थे, लेकिन नेपाल के महोत्तरी जिले में चले गए, जहाँ उनके माता-पिता दोनों का जन्म और पालन-पोषण हुआ. फिर 2008 में, उनकी शादी भारत की ओर मधुबनी के एक किसान से हुई, जो स्वयं पूर्व में मुखिया रह चुके हैं, और यहीं बस गए.

17 साल बाद वह कहती हैं, "मेरे पास नेपाल से कोई भी दस्तावेज नहीं बचा है. मेरे माता-पिता कई साल पहले गुज़र गए थे।" भारत में, उन्होंने "अपने पति के दस्तावेज़ों के आधार पर" एक मतदाता पहचान पत्र, उसके बाद एक आधार और एक पैन कार्ड हासिल किया. जहाँ तक नागरिकता की बात है, यह देखते हुए कि वह जब चाहें नेपाल वापस जा सकती हैं, उनके मन में इसके लिए या भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन करने का विचार कभी नहीं आया. "मुझे कभी इसकी ज़रूरत महसूस नहीं हुई."

चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार जिन लोगों का नाम बिहार की 2003 की मतदाता सूची (जब चुनाव आयोग कहता है कि उसने अपनी आखिरी एसआईआर जारी की थी) में नहीं है, उन्हें जन्म तिथि या स्थान साबित करने के लिए 11 दस्तावेज़ों में से कोई भी जमा करना होगा, और 1 जुलाई 1987 के बाद पैदा हुए लोगों को अपने माता-पिता का भी – जो नागरिकता प्रमाण के समान है – जमा करना होगा. दस्तावेज़ों की सूची में न तो आधार, न ही पैन, और न ही पुराना मतदाता पहचान पत्र शामिल है.

अब तक, मतदाता के रूप में पंजीकरण के लिए चुनाव आयोग के फॉर्म में किसी नागरिकता प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी, केवल संबंधित व्यक्ति द्वारा स्व-घोषणा की आवश्यकता थी. झूठी घोषणा पर कार्रवाई हो सकती है.

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