Bihar Exit Polls: नीतीश-तेजस्वी की सियासत के बीच प्रशांत किशोर की 'नई राजनीति' को क्यों नहीं मिला जनादेश?

एग्जिट पोल्स में NDA को स्पष्ट बढ़त और जन सुराज पार्टी को 0–5 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है. प्रशांत किशोर की लोकप्रियता और लंबी पदयात्रा के बावजूद, वोट शेयर में बड़ी बढ़त नहीं दिखी. बिहार की परंपरागत राजनीति में बदलाव की कोशिश अभी अधूरी लगती है, मगर उनकी ‘नई राजनीति’ ने एक नई बहस जरूर शुरू कर दी है.;

Bihar Exit Polls: बिहार की सियासत में इस बार जो सबसे बड़ा सवाल था - क्या प्रशांत किशोर अपनी नई राजनीतिक सोच को जनादेश में बदल पाएंगे? उसका जवाब एग्जिट पोल्स ने लगभग साफ़ कर दिया है. आंकड़े बता रहे हैं कि जन सुराज पार्टी (JSP) की ‘नई राजनीति’ की गूंज तो बहुत हुई, लेकिन ज़मीन पर असर नहीं दिखा. सभी प्रमुख एग्जिट पोल्स में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है, जबकि किशोर की पार्टी 0 से 5 सीटों के बीच सिमटती दिख रही है.

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की ज़रूरत होती है. प्रमुख सर्वे एजेंसियों - जैसे Chanakya Strategies, Dainik Bhaskar, DV Research, JVC, P-Marq, Matrize, People's Insight और People’s Pulse - सभी का रुझान एक समान है: NDA आराम से यह आंकड़ा पार कर लेगा. वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन (MGB) को 70 से 108 सीटों के बीच बताया जा रहा है.

‘जन सुराज’ का सफर और ज़मीनी हकीकत

प्रशांत किशोर के लिए 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ़ राजनीतिक एंट्री नहीं, बल्कि एक प्रयोग था - ‘नई राजनीति’ का. तीन साल की पदयात्रा, हज़ारों किलोमीटर के सफर, और ‘साफ-सुथरी राजनीति’ के वादे के बाद उन्होंने जिस जन सुराज मॉडल की नींव रखी, उसमें जातिवाद से परे विकास और शिक्षा की बातें थीं. उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ी, भाषण वायरल हुए, और पीले झंडे बिहार के हर कोने में दिखाई दिए. लेकिन एग्जिट पोल के अनुमान बताते हैं कि लोकप्रियता वोटों में नहीं बदल पाई.

रणनीतिकार से नेता बनने का कठिन सफर

किशोर का राजनीतिक सफर अनोखा रहा है. एक वक्त उन्होंने नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के चुनावी अभियानों को डिज़ाइन किया था. वही प्रशांत किशोर इस बार मैदान में खुद उम्मीदवारों के साथ खड़े थे. लेकिन बिहार की राजनीति में, जहां जाति समीकरण और वफादारी अब भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहां ‘इश्यू-बेस्ड’ राजनीति की जड़ें जमाना आसान नहीं था.

क्या उम्मीद बाकी है?

हालांकि, एग्जिट पोल्स हमेशा अंतिम सच्चाई नहीं होते. कई बार नतीजे पलटते भी हैं. लेकिन अगर 14 नवंबर को आने वाले वास्तविक परिणाम इन रुझानों से मेल खाते हैं, तो यह साफ होगा कि जनता ने फिलहाल बदलाव के बजाय स्थिरता को चुना है. फिर भी, प्रशांत किशोर का यह प्रयास बिहार की राजनीति में एक नया विमर्श जरूर पैदा कर गया है - कि क्या आने वाले समय में ‘जन सुराज’ विचार धीरे-धीरे जनादेश में बदल सकता है? क्योंकि यह सच है कि किशोर ने दिलचस्पी जगाई है, बस अभी तक वोट नहीं जुटा पाए हैं.

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