बिहार चुनाव: पहले चरण में बंपर वोटिंग देख चुनाव आयोग खुश, फिर राजनीति के चाणक्यों के दिल की धड़कनें तेज क्यों हो गईं?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 64.66% की रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग ने चुनाव आयोग को खुश कर दिया, लेकिन सत्ता और विपक्ष दोनों खेमों की धड़कनें बढ़ा दी हैं. पिछले चुनावों के मुकाबले यह मतदान 8% अधिक रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इतना ऊंचा मतदान बिहार के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा है. राजनीतिक गलियारों में अब चर्चा इस बात की है कि क्या यह बढ़ी हुई वोटिंग नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी का संकेत है या विदाई का संदेश.;
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में जिस कदर अव्वल दर्जे के मतदान का आंकड़ा गुरुवार शाम को निकल कर सामने आया, उसने क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष. राजनीति के हर महारथी या कहिए चाणक्य को हैरत में डाल दिया है. चुनाव आयोग इस दर्जे तक ऊंचे मतदान को शांतिपूर्ण तरीके से करा पाने में सफल रहा. इसका श्रेय तो उसे देना ही है. पहले चरण के मतदान के आंकड़ों ने मगर हर किसी को चौंका जरूर दिया है. वह भी एकदम शांतिपूर्ण तरीके या ढंग से. वरना अंदेशा इसी बात का लगाया जा रहा था कि कुछ दिन पहले मोकामा में हुई दुलारचंद यादव की हत्या के छींटे, कम या ज्यादा ही सही मतदान के पहले चरण पर भी पड़ सकते हैं.
इसका परिणाम मतदान के पहले चरण में अशांति फैलाने के लिए कहीं न कहीं मारपीट, गोलीकांड की प्रबल आशंकाएं या कयास लगाए जा रहे थे. गुरुवार शाम के वक्त सर्वाधिक मतदान प्रतिशत देखने के साथ-साथ कहीं भी बिना किसी अशांति के, मतदान का इतना ऊंचा प्रतिशत प्राप्त करने लेने से चुनाव आयोग भी संतुष्ट दिखाई दे रहा था. शांतिपूर्ण और इस कदर के ऐतिहासिक वोटिंग परसेंटेज वाले मतदान आंकड़े देखकर जहां चुनाव आयोग व अन्य संबंधित सुरक्षा एजेंसियां खुश थीं, वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के महारथियों के दिलों की धड़कनें बढ़ी हुई थीं.
मतदान का आंकड़ा देख पक्ष-विपक्ष कंफ्यूजन में
पहले चरण के मतदान में गुरुवार को 121 विधानसभा सीटों पर हुए सफलतम मतदान का प्रतिशत 64.66 पहुंचा देखकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही ऊहापोह की हालत में थे. गुरुवार को हुए मतदान का प्रतिशत बीते चुनाव यानी साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव की तुलना में 8 प्रतिशत ज्यादा रहा. राजनीतिक विशेषरज्ञों-विश्लेषकों की मानें तो बिहार के इतिहास का यह वोट प्रतिशत सर्वाधिक रहा है. पांच साल पहले हुए चुनाव में यही प्रतिशत 56.1 रहा था. जबकि साल 2015 मैं यह 2020 से भी कम 55.9 फीसदी था.
2.42 करोड़ लोगों ने डाले वोट
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जहां 2.06 करोड़ लोगों ने मताधिकार का सदुपयोग किया वहीं गुरुवार को यह 2.42 करोड़ पहुंच गया. गुरुवार को प्रथम चरण की 64.66 प्रतिशत वोटिंग परसेंटेज की नजर से देखें तो इस 2.42 करोड़ मतदाताओं ने मतदान किया है. ऐसे में बिहार के इतिहास में अब तक का सबसे ज्यादा मतदान प्रतिशत होने का रिकार्ड भला कौन बनने से रोक सकता है. इस रिकार्ड तोड़ मतदान का राजनीतिक-आका अपने अपने हिसाब से गुणा-गणित बैठाने में लगे हैं.
नीतीश कुमार की वापसी या विदाई तय?
बढ़े हुए मतदान प्रतिशत को कुछ लोग अगर नीतीश कुमार हुकूमत की राज्य में फिर से वापसी का मौन संकेत या इशारा मान रहे हैं, तो वहीं विरोधी पक्ष इस बढ़ी हुई मतदान संख्या को सीधे तौर पर बिना कोई शोर-शराबा मचाए हुए नीतीश के मुख्यमंत्रित्व काल के ताबूत में अंतिम कील मान रहे हैं. आजाद भारत के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यही दिखाई देगा कि जब जब और जहां भी जिस चुनाव में मतदान का प्रतिशत ऊंचा गया तो, या तब तब वह वर्तमान सत्ता को सरकार यानी बदलकर, नई सरकार के हवाले सत्ता का सिंहासन किया जाता रहा है.
बंपर मतदान एंटी इंकम्बेंसी की गारंटी नहीं
वहीं दूसरी ओर एंटी इंकम्बेंसी पर विश्वास न रखने वाला नीतीश कुमार खेमा दावा कर रहा है कि मतदान का प्रतिशत इस कदर का रिकॉर्ड तोड़ ऊंचा जाना (प्रो इंकम्बेंसी) यानी जनता का सत्तासीन नेताओं के ऊपर आंख मूंदकर फिर से भरोसा जताने का प्रबल संदेश है. नीतीश खेमे के ही कुछ उच्च पदस्थ नेताओं में कई हालांकि उस बढ़े हुए मतदान प्रतिशत पर खामोशी भी साधे हुए हैं. यह सोचकर कि इस गुणा गणित पर खुशी या जश्न मनाना कहीं चुनाव के संपूर्ण परिणाम आने वाले दिन जग-हंसाई की वजह न बन जाए. क्योंकि मतदाता के मत का रुझान पक्के तौर पर तभी हार जीत तय करेगा जब चुनाव के हर चरण का कुल मतदान संख्या सामने आ जाए. बंपर मतदान यानी एंटी इंकम्बेंसी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हमेशा इससे सत्ता परिवर्तन ही होगा या सत्ता परिवर्तन नही होगा. सब कुछ किसी भी चुनाव के अंतिम घोषित परिणाम पर निर्भर करता है.
इन राज्यों के पिछले नतीजे बता रहे हैं अलग कहानी
साल 2011 में तमिलनाडु में जब मतदान की प्रतिशत ऊंचा गया तब भी वहां सत्तासीन डीएमके को हराकर एआईएडीएमके ने परिवर्तन करके, राज्य सरकार का सिंहासन हथिया लिया था. इसी तरह साल 2023 में राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही हुआ. वहां पिछले चुनाव से मतदान का प्रतिशत ज्यादा होने के बाद भी सत्तासीन कांग्रेस को कुर्सी छोड़नी पड़ गई. हालांकि वहीं दूसरी ओर जब साल 2012 में गुजरात में मतदान का प्रतिशत ऊंचा गया तब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (तब) सरकार ने वापसी की थी. जबकि साल 2012 के यूपी चुनाव में 13 फीसदी से ज्यादा मतदान होने के बावजूद सत्ताधारी बहुजन समाज पार्टी यानी मुख्यमंत्री मायावती की सरकार नहीं बच सकी. बसपा को तब रिप्लेस करके समाजवादी पार्टी यूपी की सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई.
(पटना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार-राजनीतिक विश्लेषक मुकेश बालयोगी से नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर संजीव चौहान से हुई खास बातचीत पर आधारित)