Bihar Elections 2025: रोजगार और पलायन समेत 5 मुद्दों पर सियासी जंग, NDA या महागठबंधन, किसका पलड़ा भारी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दूसरे चरण का भी प्रचार एक दिन पहले समाप्त हो गया. अब सभी दलों के नेता अपना-अपना सियासी गणित का अनुमान लगाने में व्यस्त हो गए हैं. खास बात यह है कि इस बार मुकाबला सिर्फ गठबंधन या चेहरे का नहीं, बल्कि उन मुद्दों का है जो हर घर को प्रभावित करते हैं. खासकर महिला, युवा और प्रवासियों का मत सबसे ज्यादा अहम हो गया है.;
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुद्दों की जंग इस बार अहम है. रोजगार, पलायन, घुसपैठ, महिलाओं की सुरक्षा और कानून व्यवस्था जैसे विषयों पर इस बार सबसे ज्यादा हॉट टॉपिक रहे. एनडीए जहां विकास और स्थिर शासन का दावा कर रही है, वहीं महागठबंधन बेरोजगारी, पलायन और सुरक्षा को लेकर नीतीश-मोदी सरकार को घेर रही है. ऐसे में सवाल यह है कि बिहार की जनता किस पर करे भरोसा? आइए जानते हैं कि ये पांच बड़े मुद्दे चुनावी नतीजों की दिशा कैसे तय कर सकते हैं.
1. रोजगार (Employment)
बिहार विधानसभा में 12 फरवरी 2025 को पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 बताता है कि राज्य में बेरोजगारी की स्थिति देश के औसत से अधिक है. इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में बेरोजगारी दर 4.3% है जो राष्ट्रीय औसत 3.4% से 0.9% से अधिक है. हालांकि केरल (8.4%), हरियाणा(6.4%) और पंजाब (6.7%) जैसे राज्यों के मुकाबले बिहार की स्थिति काफी बेहतर है.
यही वजह है कि बिहार चुनाव 2025 में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी बना गया. राज्य में युवाओं की एक बड़ी आबादी अब भी सरकारी नौकरियों और निजी अवसरों की कमी से जूझ रही है. तेजस्वी यादव से लेकर नीतीश कुमार और बीजेपी तक, सभी दल युवाओं को रोजगार देने के वादे कर रहे हैं. राजद जहां 10 लाख नौकरियों की बात दोहरा रही है. आरजेडी ने सरकार बनते ही हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का भी वादा किया है. वहीं, एनडीए सरकार ने एक करोड़ नौकरी या काम के अवसर पैदा करने का वादा किया है. एनडीए ने कौशल विकास और उद्योग निवेश से युवाओं के लिए अवसर बनाए हैं. मतदाता अब सिर्फ वादों से नहीं, बल्कि ठोस योजनाओं की तलाश में हैं.
2. पलायन (Migration)
जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) द्वारा हाल ही में जारी एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के आधे से अधिक परिवार देश के भीतर या बाहर अधिक विकसित स्थानों पर पलायन के लिए मजबूर हैं. इसकी मुख्य वजह है काम के अवसर और रोजगार की कमी.
वैसे, बिहार वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं है. बिहार की सबसे पुरानी और गहरी सामाजिक-आर्थिक समस्या है. हर चुनाव में यह मुद्दा गूंजता है, लेकिन 2025 में यह और ज्यादा संवेदनशील बन गया है क्योंकि बड़ी संख्या में युवा अब भी रोजगार के लिए दिल्ली, पंजाब, गुजरात या मुंबई और अन्य शहरों में पलायन करने के लिए मजबूर हैं. विपक्ष इसे सरकार की असफलता बता रहा है. जबकि एनडीए का कहना है कि ग्रामीण उद्योग और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से पलायन कम होगा. जनता चाहती है - 'बेटे को अब घर पर काम मिले. एनडीए नेताओं के मुताबिक बिहार में उद्योग लगने शुरू हो गए हैं. अगले पांच साल बिहार औद्योगिक दृष्टि से प्रमुख राज्यों में शामिल हो जाएगा.'
3. घुसपैठिए (Infiltration)
सीमांचल और आसपास के इलाकों में घुसपैठ का मुद्दा इस बार प्रमुख चुनावी बहस का हिस्सा बना हुआ है. एसआईएस प्रक्रिया के दौरान यह मसला चरम पर पहुंच गया. इसका असर चुनाव प्रचार के दोनों चरण में देखने को मिला. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार और पीएम मोदी पर एसआईआर के बहाने वोट चोरी का आरोप लगाया है. अमित इसे 'राष्ट्रीय सुरक्षा' से जोड़कर वोटरों के बीच उठा रहे हैं. जबकि महागठबंधन इसे 'ध्रुवीकरण की राजनीति पर' बता रहा है. सीमावर्ती जिलों में यह मुद्दा सीधे मतदाताओं की सोच को प्रभावित कर रहा है. खासकर कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, मधुबनी, सीतामढ़ी और सहरसा और अन्य जिलों की सीटों पर इसका असर ज्यादा है.
4. महिलाएं (Women Voters & Issues)
बिहार कुल आबादी 13.70 करोड़ में करीब 48 फीसदी हैे. बिहार चुनाव 2025 में महिलाएं निर्णायक वोट के रूप में उभर रही हैं. पिछले तीन चुनावों में भी महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. इस बार महिलाओं ने नीतीश सरकार की दस हजारी स्कीम की वजह से बढ़ चढ़कर मतदान किया है. इसके जवाब में तेजस्वी यादव ने मकर संक्रांति के मौके पर 30 हजार रुपये बैंक अकाउंट में डालने का वादा किया है. नीतीश सरकार की शराबबंदी, महिला सुरक्षा, पोषण योजनाएं और आत्मनिर्भरता जैसे प्रयास इसी बात को ध्यान में रखकर उठाए गए है. नीतीश कुमार के पास दो तरह के वोट बैंक है. पहला ईबीसी और दूसरा महिला मतदाता.
5. कानून व्यवस्था (Law & Order)
कानून व्यवस्था हमेशा से बिहार की राजनीति का केंद्रीय मुद्दा रहा है. दो दशक से लालू यादव की पार्टी सत्ता में नहीं है. बावजूद इसके एनडीए के नेता उनके 15 साल के पहले के शासनकाल को जंगलराज साबित करने से बाज नहीं आते. यह मुद्दा आरजेडी के चुनाव प्रचार में कट्टे वाले गाने की वजह से इस बार भी गरमा गया है. पीएम मोदी से लेकर एनडीए के लोकल नेताओं तक ने इसे जमकर भुनाया है. 2025 के चुनाव में भी यह बहस का केंद्र बना गया.
बीजेपी और जदयू के नेता आरजेडी के कट्टे वाले गाने को कुशासन का प्रमाण बोलकर जनता के सामने रख रहे हैं. वहीं, विपक्ष का आरोप है कि राज्य में अपराध, लूट और हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे अपराध के वीडियो ने इस बहस को और तेज कर दिया है. जनता अब यह तय करने के मूड में है कि 'कानून व्यवस्था' वाकई सुधरी है या सिर्फ भाषणों तक सीमित है.