नीतीश का जादू: साइकिल वाली दीदी बनेंगी गेमचेंजर! तेजस्वी-राहुल और PK का बिगड़ेगा गणित?
नीतीश कुमार ने 2006 में सत्ता संभालने के बाद महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की थी. इनमें से सबसे चर्चित थी ‘साइकिल योजना’, जिसके तहत लाखों लड़कियों को शिक्षा और स्कूल तक पहुंच बढ़ाने के लिए साइकिल वितरित की गई. अब 2025 के बिहार चुनाव में सवाल यह है कि क्या वो वही लड़कियां, जो अब मतदान योग्य हैं, नीतीश के पक्ष में वोट करेंगी?;
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए उनकी उनकी पुरानी और सबसे लोकप्रिय योजना 'साइकिल योजना' सबसे बड़ा दांव साबित हो सकती है. यह वही योजना है जिसने 2005 के बाद बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को 'सुशासन बाबू' की पहचान दिलाई थी और लाखों परिवारों के जीवन में बड़ा बदलाव लाया था. इस योजना से स्कूलों में लड़कियों को नामांकन प्रतिशत बढ़ा था. उसके बाद से लड़कियां स्कूली शिक्षा का अहम चेहरा साबित हुई हैं. यानी नवंबर में प्रस्तावित चुनाव में इस सियासी निवेश का लाभ नीतीश कुमार को मिल सकता है. ऐसा इसलिए कि अब वही लड़कियां 20 से 30 उम्र के बीच में हैं और जागरूक मतदाता भी हैं. ऐसी लड़कियों के लिए साइकिल योजना दिल और इमोशन से जुड़ा मसला है.
योजना 2005 की, 2025 का वोट बैंक
नीतीश कुमार सरकार की 'साइकिल योजना' का मुख्य उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा बढ़ाना और स्कूल आने-जाने में सुविधा देना था. इसका प्रभाव ग्रामीण और पिछड़े वर्ग की लड़कियों पर सबसे ज्यादा हुआ, जिन्हें पहले स्कूल तक पहुंचने में कठिनाई होती थी. यह कदम नीतीश की छवि को ‘महिला मित्र’ और विकासोन्मुख नेता के रूप में मजबूती देने वाला साबित हुआ.
महिला मतदाता बनेगी NDA की सबसे बड़ी ताकत
बिहार सरकार शिक्षा विभाग की साइकिल योजना 2006 के तहत स्कूल जाने आने में सुविधा के लिए जिन लड़कियों को साइकिल मिला, वो अब 20-30 साल के बीच हो गई है. यानी अब वो देश की नागरिक ही नहीं मतदाता भी हैं. वही, महिलाएं अब अब बिहार में नीतीश सरकार के लिए निर्णायक मतदाता हैं. उनके पास चुनावी फैसले पर प्रभाव डालने की शक्ति है. चूंकि, नीतीश ने शिक्षा, रोजगार और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर निरंतर काम किया है, इसलिए उनका वोट बैंक इस बार भी मजबूत रह सकता है. अगर ऐसा हुआ तो एनडीए को मिलेगा इसका लाभ.
बदलते राजनीतिक और सामाजिक माहौल
पिछले 20 साल में राजनीतिक जागरूकता, सोशल मीडिया और नई पार्टियों का प्रभाव बढ़ा है. इस लिहाज से महिलाएं अब सिर्फ पिछली भेंट या योजनाओं पर नहीं, बल्कि विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी वोट करेंगी. तेजस्वी यादव और अन्य पार्टियों की रणनीतियां भी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के मामले में सक्रिय हैं.
जाति, धर्म और क्षेत्र का असर
बिहार में चुनाव अभी भी जाति और धर्म आधारित वोट बैंक पर निर्भर करता है. साइकिल योजना से लाभान्वित हुई लड़कियां अब भी समूह और सामाजिक प्रभाव के तहत वोट कर सकती हैं. अगर उनका वर्ग या क्षेत्रीय गठबंधन किसी अन्य उम्मीदवार के पक्ष में अधिक प्रभावी हुआ, तो यह नीतीश के लिए चुनौती भी साबित हो सकता है.
साइकिल वाली दीदी को वोट में बदल पाएंगे नीतीश!
नीतीश की 2005 की साइकिल योजना उनकी महिला मित्र छवि को मजबूत करती है, लेकिन 2025 के मतदान में वही लड़कियां अब स्वतंत्र सोच वाली मतदाता बन चुकी हैं. उनका वोट इस बात पर निर्भर करेगा कि नीतीश ने पिछले 20 साल में विकास, रोजगार और महिला सशक्तिकरण में कितनी निरंतरता दिखाई. यानी, योजना का स्मृति प्रभाव अभी भी है, लेकिन इसे वर्तमान राजनीति और विकास से जोड़ना होगा, तभी यह वोट बैंक में बदलेगा.
साइकिल योजना का मकसद
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य लड़कियों को स्कूल जाने में सुविधा प्रदान करना और उनकी शिक्षा दर बढ़ाना था. इस योजना के तहत, कक्षा 9वीं में पढ़ाई कर रही लड़कियों को साइकिल प्रदान की गई, जिससे वे स्कूल आसानी से पहुंच सकें.
योजना से लाभ पाने वाली लड़कियों की संख्या
एक मिलियन से अधिक लड़कियां इस योजना से लाभान्वित हुई हैं, जैसा कि महिला और बाल विकास विभाग के नवीनतम आंकड़ों में बताया गया है. 2005 में मैट्रिक परीक्षा में बैठने वाली लड़कियों की संख्या 1.87 लाख थी, जो 2020 में बढ़कर 8.37 लाख हो गई. 2005 में स्कूल छोड़ने की दर 10.5% थी, जो 2024 में घटकर 1% रह गई. स्कूल छोड़ने की दर 2005 में 10.5% थी जो 2024 तक घटकर 1% रह गई. इस योजना ने लड़कियों की शिक्षा में महत्वपूर्ण वृद्धि और स्वतंत्र स्कूल जाने की क्षमता दी.
योजना का असर
इस योजना ने लड़कियों की शिक्षा में महत्वपूर्ण वृद्धि की है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में. लड़कियां अब स्वतंत्र रूप से स्कूल जा सकती हैं, जिससे उनकी शिक्षा में निरंतरता बनी रहती है. यह योजना लड़कियों के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई हैत्र
क्यों कहा जा रहा है गेम चेंजर?
बिहार में महिला मतदाता पुरुषों से लगातार अधिक मतदान कर रही हैं. पिछले दो चुनावों में महिला वोटिंग प्रतिशत 60% से अधिक रहा है. नीतीश कुमार की योजनाओं जैसे साइकिल योजना, पोशाक योजना, कुशल युवा कार्यक्रम और आरक्षण नीतियों ने महिलाओं के बीच गहरी पैठ बनाई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह वर्ग एकजुट हुआ, तो यह न सिर्फ महागठबंधन (तेजस्वी-राहुल गठबंधन) के समीकरण को चुनौती देगा बल्कि पीके (प्रशांत किशोर) की जनसुराज मुहिम के असर को भी सीमित कर देगा. तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर ने युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत की है, लेकिन महिलाओं, ग्रामीण परिवारों और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के बीच नीतीश कुमार की पकड़ अभी भी मजबूत है.