Bihar Election Results 2025: सीमांचल में ओवैसी को रोकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन!
बिहार चुनाव में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का सिक्का इस बार फिर सीमांचल में चल गया. 2020 में पांच सीटों पर एआईएमआईएम ने जीत दर्ज की थी. इनमें से चार विधायकों ने धोखा देकर उनके साथ दगा किया था. सीमांचल की जनता ने इस बार भी ओवैसी को निराश नहीं किया. इस बार भी मतदाताओं ने उनका साथ दिया है. उसी का नतीजा है कि इस बार भी सीमांचल में पांच के बदले छह सीटों पर उनके उम्मीदवार जीत के करीब पहुंच गए हैं.;
बिहार चुनाव परिणाम 2025 में सीमांचल एक बार फिर एआईएमआईएम के लिए राजनीतिक प्रयोगशाला साबित हुआ. जहां तमाम दावों के बावजूद महागठबंधन और एनडीए दोनों का जनाधार कई जगह दरकता दिखा, वहीं असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने साबित कर दिया कि सीमांचल में उनकी पकड़ को कमजोर करना सिर्फ मुश्किल नहीं, बल्कि लगभग नामुमकिन है. मुस्लिम बहुल इलाकों में एआईएमआईएम का वोट शेयर पिछले चुनावों से भले घटा हो, लेकिन उनकी मौजूदगी ने यहां की पूरी राजनीति कहानी बदल दी. कई सीटों पर वोट-कटाव, कई पर मुकाबला त्रिकोणीय और कई पर पारंपरिक दलों का गणित पूरी तरह ध्वस्त कर दिया.
हालांकि, आधिकारिक रूप से चुनाव आयोग द्वारा चुनावी कार्यक्रमों का एलान करने से पहले असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव लालू यादव और राहुल गांधी के सामने रखा था, लेकिन उसके प्रस्ताव को आरजेडी ने खारिज कर दिया है. इसे ओवैसी ने खुद और पार्टी का अपमान भी माना. उस समय तो वह चुप रह गए थे. बस, इतना ही कहा था कि यह प्रस्ताव विपक्षी एकता को ध्यान में रखते हुए महागठबंधन के नेताओं के सामने रखा था. उन लोगों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर साफ कर दिया कि वो मोदी और नीतीश की जोड़ी को हराना नहीं चाहते.
प्रस्ताव रिजेक्ट होने पर लिया था ये फैसला
इसके बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में खुद के दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया. उन्होंने सीमांचल की सभी 24 सीट सहित कई अन्य सीटों पर भी प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा. वह पिछले दो महीने से बिहार में ही जमे हैं. उन्होंने पार्टी के समर्थकों का मनोबल बढ़ाया. हैदराबाद से सीमांचल पहुंचकर न्याय यात्रा निकाली. पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए मैदान में डटे रहे.
चुनाव प्रचार के दौरान प्रमुख रूप से एनडीए और महागठबंधन को निशाना बनाया है. मुस्लिम मतदाताओं से कहा कि दो परसेंट वाला नेता अगर डिप्टी सीएम बन सकता है कि 18 प्रतिशत वाला क्यों नहीं? अब 18 प्रतिशत वाला ही बिहार का डिप्टी सीएम नहीं, बल्कि सीएम बनेगा. उन्होंने दो हिंदू उम्मीदवारों को भी टिकट दिया. साथ ही मुसलमानों से अपील कि उन्हें खुद की चिंता करने की जरूरत है. मुस्लिम नेता बनाने पर ही उनका भला होगा.
ओवैसी की यह अपील एक बार फिर सीमांचल प्रभावी हुई. पिछले बार जिन चार विधायकों ने धोखा देकर उनके साथ दगा किया, उसका जवाब देते हुए बिहार के मतदाताओं ने इस बार भी साथ दिया. उसी का नतीजा है कि इस बार भी सीमांचल में पांच सीटों पर उनके उम्मीदवार छह के करीब पहुंच गए है.
इन 6 सीटों पर ओवैसी के प्रत्याशी आगे
अंतर केवल इतना है कि पिछले बार की पांच सीटों में से एक सीट बदल गया है. इस बार वह बहादुरगंज से हार रहे हैं, लेकिन उनका प्रत्याशी ठाकुरगंज से चुनाव जीतने के करीब हे. यानी अपनों से दगाबाजी का शिकार होने के बाद भी उनकी संख्या बल में कमी की उम्मीद कम है. और यही उनकी सफलता है. ऐसा इसलिए कि चार विधायकों का पाला बदलने के बाद से महागठबंधन के नेता कहने लगे कि ओवैसी तो अब गए. अब उन्हें कोई वोट नहीं देगा, लेकिन हुआ इसका उलटा.
इस बार एआईएमआईएम जोकीहाट से मोहम्मद मुर्शिद आलम, ठाकुरगंज से गुलाम हसन, कोचाधामन मोहम्मद सरवर आलम, अमौर से अख्तरुल इमान, बहादुरगंज से मोहम्मद तौसीफ आलम और बायसी गुलाम सरवर आगे चल रहे हैं.
2020 में इन सीटों पर जीते थे ओवैसी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एआईएमआईएम (AIMIM) ने कुल 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पांच साल पहले जिन सीटों पर एआईएमआईएम के उम्मीदवार जीते थे, उनमें अमौर – अख्तरुल इमाम, कोचाधामन - मोहम्मद इसरारुल हक, बहादुरगंज - अनीशुर रहमान, जोकीहाट - शहनवाज और बायसी – सैयद रुकनुद्दीन अहमद का नाम था. 2020 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव जीतने में सफलता मिली थी. पांच विधायकों में से चार का आरजेडी का दामन थाम लेने से ओवैसी को बड़ा झटका लगा था.
सिर्फ अमौर सीट से एआईएमआईएम के प्रदेश प्रमुख अख्तरुल इमान पार्टी से जुड़े रहे और काम करते रहे. इस बार भी इसका नतीजा क्या हुआ, यह सबके सामने है.