बिहार चुनाव में मुसलमानों की कितनी है भूमिका? वारिश पठान और चिराग ने नीयत पर उठाए सवाल, गिरिराज के बयान ने सबको चौंकाया

बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन प्रतिनिधित्व के मामले में वे पीछे हैं. बीजेपी की बात छोड़िए, जो पार्टियां उनका डर दिखाकर मुसलमानों के ठेकेदार बने हुए है, वो भ गिने चुने सीटों पर ही मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देते हैं. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं के सामने अहम सवाल यह है कि वो करें तो क्या करें?;

( Image Source:  X/ichiragpaswan & giriraj singh )

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुसलमानों की भूमिका ने इस बार वहां की राजनीति को बेहद पेचीदा बना दिया है. लगभग 17.7% आबादी वाले इस समुदाय इस बार सबसे बड़ा वोट बैंक होने की वजह से चर्चा के केंद्र में है. उत्तर बिहार के सीमांचल में उनका प्रभाव निर्णायक है, पर टिकट बंटवारे में उनकी संख्या बहुत कम है. इस बीच, NDA-पक्ष के चिराग पासवान ने अल्पसंख्यकों की ‘नीयत’ तथा विपक्षी गठबंधनों की रणनीति पर सवाल उठाकर एक नया विमर्श शुरू कर दिया जबकि गिरिराज सिंह ने साफ शब्दों में कह दिया है कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए. जानें, वास्तव में मुसलमानों का वोट क्यों महत्वपूर्ण है?

1. इसलिए मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका अहम

बिहार में जातीय जनगणना के मुताबिक मुस्लिम आबादी लगभग 17.0-18.0% है. जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार 16.9% है. साल 2022-23 के राज्य जाति सर्वेक्षण के अनुसार यह लगभग 17.7% है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुल मतदाता 7.42 करोड़ है. यदि मुस्लिम आबादी 17.70 प्रतिशत है. यानी मुस्लिम मतदाता करीब 1.29 करोड़ हैं. मतदान हिस्सेदारी (turnout) की बात करें तो 2020 में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 58 से 60% रही थी.  

2. इन सीटों पर  निर्णायक

बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या 243 है. इसके अतिरिक्त लगभग 47 सीटों में मुस्लिम आबादी 15 से 20% के बीच है. विशेष रूप से उत्तर-बिहार के सीमांचल क्षेत्र के जैसे किशनगंज में 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43%, पूर्णिया में 38% है. इन जिलों की 24 सीटों पर मुस्लिम ही प्रत्याशियों का भाग्य तय करते हैं.

3. मुस्लिम बहुल इलाकों में RJD का असर ज्यादा

परंपरागत रूप से मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय जनता दल और उसके गठबंधनों को जाता रहा है. उदाहरण के लिए 2015 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट का 80% हिस्सा JDU-RJD गठबंधन को गया था. दूसरी ओर जनता दल यूनाइटेड यानी एनडीए को मुस्लिम वोट में बहुत कम हिस्सेदारी मिलती है. उदाहरण स्वरूप 2020 में JDU को मुस्लिम वोटों का मात्र 5% मिला था. इस बार थोड़ा माहौल बदला-बदला सा है. अब सिर्फ पहचान-आधारित नहीं बल्कि विकास, रोजगार-जैसे विषयों पर भी मुस्लिम मतदाता वोट डालने का संकेत दे रहे हैं.'

4. सियासी अहमियत

मुस्लिम समुदाय अपनी आबादी के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व-स्थिति में कमतर रहा है. विधानसभा में मुस्लिम विधायकों का प्रतिशत लगभग 8% रहा है. जबकि आबादी लगभग 17.7% है. इस कारण मुस्लिम वोटर एक संपर्क बिंदु बन गए हैं. जहां उनकी बात बनेगी, वहां चुनावी समीकरण बदल सकते हैं. रणनीति नजरिए से देखें तो एनडीए इस बार मुस्लिम और यादव वोट बैंक से कुछ दूरी बना रहा है और अपने पारंपरिक वोटर्स पर जोर दे रहा है.

5. चिराग ने मुसलमानों की दुखती रग पर डाला हाथ

लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान के मुताबिक, “…वे (RJD) वाले सिर्फ मुसलमानों को अपना वोट बैंक मानते हैं. मेरे पिता ने 2005 में कहा था कि उन्हें मुसलमान मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था, उन्होंने क्यों नहीं किया?”

6. हमें नहीं चाहिए उनका वेट

केंद्रीय मंत्री और हिंदूवादी नेता गिरिराज Giriraj Singh ने एक चुनाव जनसभा में कहा, “मुसलमान केंद्र की योजनाओं का लाभ तो लेते हैं, लेकिन हमारे लिए वोट नहीं देते.ऐसे लोगों को हम ‘नमक हराम’ कहते हैं. हम उनको वोट नहीं चाहिए.”

7.  2% वाले बनेंगे डिप्टी CM, 18 फीसदी वालों का क्या?

एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान ने हाल ही में कहा था, 'बिहार विधानसभा चुनाव-2025 को लेकर कहा था कि 2% वाली पार्टी से उपमुख्यमंत्री बन सकता है और 19% वाले मुसलमानों को नजरअंदाज किया गया है.” उन्होंने आगे कहा: “मुसलमान केवल वोट देने के लिए हैं या उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा, यह सवाल गंभीर है.”

वारिस पठान ने यह टिप्पणी उस समय की जब महागठबंधन ने मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया था और मुस्लिम आबादी लगभग 18% के आसपास होने के बावजूद किसी मुस्लिम को उपमुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया.

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