मतदाता सूची में महिला शक्ति कमजोर! बिहार में 15 साल में पहली बार गिरा अनुपात, चंपारण सबसे पिछड़ा

बिहार की मतदाता सूची में महिला शक्ति कमजोर होती दिख रही है. चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के बाद अंतिम मतदाता सूची के अनुसार, बिहार में महिला-पुरुष मतदाताओं का अनुपात 15 साल में पहली बार गिरकर 892 हो गया है, जो 2020 में 899 था.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 16 Oct 2025 12:09 PM IST

बिहार में राजनीति हो या समाज, महिलाओं की भूमिका हमेशा चर्चा में रही है. शराबबंदी से लेकर पंचायती आरक्षण तक, लंबे समय तक यह धारणा बनी रही कि बिहार में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी लगातार बढ़ रही है. लेकिन हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा किए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बाद जारी अंतिम मतदाता सूची ने इस धारणा को चुनौती दे दी है.

नई मतदाता सूची के अनुसार, राज्य में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले घट गई है और जेंडर रेशियो में 15 साल बाद पहली बार गिरावट दर्ज की गई है. लिस्ट में चंपारण सबसे पिछड़ा क्षेत्र है. चलिए जानते हैं आखिर इस अनुपात का कारण क्या है. 

घटी महिला मतदाओं की संख्या

SIR के बाद जारी फाइनल रोल में बिहार में कुल 7.43 करोड़ मतदाता हैं. इनमें:

  • पुरुष मतदाता – 3.92 करोड़
  • महिला मतदाता – 3.50 करोड़
  • थर्ड जेंडर मतदाता – 1,725

आंकड़ों को देखें तो महिलाओं की हिस्सेदारी अब सिर्फ 47.05% रह गई है. हर 1000 पुरुष मतदाता पर सिर्फ 892 महिला मतदाता हैं. तुलना करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 899:1000 था. यानी पिछले पांच साल में महिलाओं की भागीदारी कम हुई है.

किन जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान?

स्पेशल रिवीजन के बाद जारी आंकड़ों वाले 38 में से 32 जिला रिपोर्ट दिखाती है कि 15 जिलों में महिला मतदाता अनुपात घटा है.  बिहार के कई जिलों में साल 2020 की तुलना में 2025 में मतदाता जेंडर रेशियो में गिरावट दर्ज की गई है.

  • गोपालगंज में 2020 में महिलाओं का अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 952 था, जो 2025 में घटकर 886 रह गया. गया जिले में यह आंकड़ा 933 से घटकर 900 पर आ गया.
  • इसी तरह सीवान में जेंडर रेशियो 914 से घटकर 884 और अरवल में 922 से कम होकर 894 दर्ज किया गया.
  • पश्चिमी चंपारण में हर 1,000 पुरुष मतदाताओं पर सिर्फ 872 महिला मतदाता दर्ज की गई हैं.
  • जहानाबाद में भी महिलाओं के अनुपात में कमी आई है, जहां 2020 में जेंडर रेशियो 913 था, जो 2025 में घटकर 888 हो गया. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि इन जिलों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की तुलना में कम होती जा रही है, जो चुनावी संतुलन और सामाजिक संकेतकों के लिए चिंता का विषय है.

कहां बढ़ीं महिला मतदाता?

दिलचस्प यह है कि 17 जिलों में जेंडर रेशियो बेहतर हुआ है. बिहार के कई जिलों में साल 2020 से 2025 के बीच मतदाता जेंडर रेशियो में सुधार देखा गया है.

  • भागलपुर में 2020 में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 890 थी, जो 2025 में बढ़कर 939 हो गई.
  • वैशाली में यह अनुपात 860 से बढ़कर 897 हो गया. भोजपुर में भी जेंडर रेशियो 852 से बढ़कर 880 पर पहुंचा, जबकि मुंगेर में यह आंकड़ा 848 से बढ़कर 875 दर्ज किया गया.
  • सारण जिले में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है, जहां 2020 में जेंडर रेशियो 871 था, जो 2025 में बढ़कर 894 हो गया.
  • भागलपुर की कहानी खास है. यहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक दर्ज की गई. 939 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष वाले रेशियो के साथ यह राज्य का नं.1 जिला बनकर उभरा. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि इन जिलों में महिला मतदाताओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो सामाजिक जागरूकता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में सकारात्मक संकेत है.

यह गिरावट क्यों आई?

  • चुनाव आयोग ने अगस्त में जारी ड्राफ्ट लिस्ट में बताया था कि महिलाओं के नाम हटाए जाने की संख्या पुरुषों से ज्यादा थी. जहां 36.3 लाख महिलाओं के नाम हटे. वहीं, 29.12 लाख पुरुष नाम हटाए गए.  साल 2015 से 2020 के बीच जहां कुल 74.05 लाख नए मतदाता जुड़े थे.
  • वहीं 2020 से 2025 के दौरान यह संख्या घटकर सिर्फ 7.08 लाख रह गई. खास चिंता की बात यह है कि नई महिला मतदाताओं की संख्या में भारी कमी आई है.
  • 2015–2020 के बीच 39.62 लाख नई महिलाएं वोटर बनी थीं, जो कुल नए मतदाताओं का 53.51 प्रतिशत थीं. लेकिन 2020–2025 में नई महिला मतदाताओं की संख्या घटकर मात्र 1.27 लाख रह गई, जो कुल बढ़ोतरी का सिर्फ 17.93 प्रतिशत है. यह आंकड़ा बताता है कि महिलाओं की नई मतदाता के रूप में भागीदारी में भारी गिरावट आई है, जो चिंता का विषय है.

क्या ढह रहा है नीतीश कुमार का "महिला वोट बैंक"?

2005 से सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने महिलाओं को लेकर कई बड़े फैसले लिए हैं. पंचायतों में 50% आरक्षण, पौलिटी के खिलाफ शराबबंदी, कुर्सी पर 35% महिला आरक्षण, छात्राओं को साइकिल योजना, जीविका दीदी योजना आदि. इसी वजह से कहा जाता था कि महिलाएं चुनाव में नीतीश की रीढ़ हैं. लेकिन 2020 के बाद से घटती महिला भागीदारी यह संकेत देती है कि वह समीकरण अब बदल रहा है. 

महिला अनुपात गिरने का क्या होगा असर?

बिहार के चुनावी इतिहास में महिलाओं की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है. 2010 के चुनावों में पहली बार महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक हुआ था. लेकिन अब तस्वीर उलटती दिख रही है. जेंडर रेशियो में गिरावट सिर्फ आंकड़ा नहीं. यह समाज, राजनीति और नीतियों का संकेत है. यह चेतावनी है कि अगर महिलाओं को एक बार फिर से पीछे धकेला गया तो इसका लंबा सामाजिक और राजनीतिक असर पड़ेगा.

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