Bihar Election 2025 First Phase: पहले चरण में बेरोजगारी से बवाल या जाति के ताल पर पड़ेगा वोट? जानें आज का माहौल
Bihar Election 2025 First Phase Voting: बिहार चुनाव 2025 के पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान सुबह से जारी है. इन सीटों पर बेरोजगारी, महंगाई और विकास जैसे मुद्दों के साथ जातीय समीकरण भी पूरी तरह प्रभावी है. सवाल यही है कि क्या इस बार लोग मुद्दों पर वोट देंगे या जाति का पारंपरिक तरीका ही इस बार भी हावी रहेगा.;
Bihar Election 2025 First Phase Voting: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण राज्य की सियासी दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है. 121 सीटों पर हो रहे मुकाबले में एक ओर बेरोजगारी, पलायन और रोजगार का संकट बड़ा मुद्दा बना हुआ है, तो दूसरी ओर जातीय समीकरण, बाहुबली उम्मीदवार और परंपरागत निष्ठा भी वोटरों के मन में गहराई तक असर डाल रही है. ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि क्या इस बार जनता 'बेरोजगारी' को वोट देगी या फिर 'जाति' की रेखा पर ही फैसला होगा? जानें माहौल क्या है?
दरअसल, बीते पांच सालों में राज्य में उद्योग और निवेश न होने से प्रदेश के लोगों में असंतोष है. एनडीए जहां ‘विकास और स्थिरता’ के मुद्दे पर वोट मांग रही है, वहीं महागठबंधन ‘नौकरी और अवसर’ के सवाल को चुनाव का केंद्र बना रहा है. तेजस्वी यादव लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में 10 लाख नौकरियों का वादा ही असली एजेंडा है. जबकि एनडीए इसे विरोधियों का सपना बता रही है.
इस बार भी जाति का असर कम नहीं
दूसरी तरफ जातीय समीकरण भी पहले चरण की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं - यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, भूमिहार और मुसलमान वोट बैंक पर दोनों गठबंधनों की पैनी नजर है. पटना, गया, जहानाबाद, नवादा, औरंगाबाद, कैमूर और रोहतास जैसे जिलों में उम्मीदवार जातीय समीकरण के हिसाब से ही चुनने की परंपरा है.
शहरी क्षेत्र में विकास पर वोट
ग्रामीण इलाकों में अब भी जातीय पहचान वोट के पैटर्न को गहराई से प्रभावित करती है. वहीं, शहरी और युवा मतदाता बेरोजगारी, शिक्षा और पलायन को लेकर ज्यादा मुखर नजर आ रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “बेरोजगारी बनाम जाति” की यह लड़ाई ही इस चरण का असली नैरेटिव तय करेगी. कई सीटों पर बाहुबली उम्मीदवारों और स्थानीय प्रभावशाली परिवारों का असर भी दिख रहा है. इन इलाकों में मतदाता सामाजिक दबाव और स्थानीय संतुलन के बीच निर्णय लेते हैं.
'कास्ट' सबके दिल की बात - राजीव रंजन
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन तिवारी कहते हैं कि इस बार बिहार में जाति, बेरोजगारी दोनों मुद्दा हैं, लेकिन इस बात को भूलने की जरूरत नहीं है कि, जिस प्रदेश में वोट डाले जा रहे हैं, वो 'बिहार' है. वहां आज भी अधिकांश लोग जाति के नाम पर ही वोट डालेंगे. उनके में विकास भी होता है, लेकिन बटन दबाते वक्त वो दिल की बात सुनते हैं दिमाग की नहीं. यही वजह है कि जात पर वोटिंग की संभावना ज्यादा है.
राजीव रंजन का कहना है कि पहले चरण में सारण, छपरा, बेतिया, मोतिहारी जैसे जिलों में मतदान हो रहा है. यह क्षेत्र आरजेडी प्रभाव वाला है. इसी क्षेत्र में शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शाहाब भी चुनाव लड़ रहे हैं. ओसामा खुद एक ही सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन वो सारण प्रमंडल के 10 से 12 सीटों को भी प्रभावित करेंगे. इसके बावजूद किसी पक्ष में क्लिन स्विप टाइप जैसा माहौल नहीं है, लेकिन जब आप किसी एक की बात करेंगे तो मेरा मानना है कि महागठबंधन का पलड़ा भारी है.
एनडीए अगर अपने समर्थक मतदाताओं को घर से बाहर निकल पाई तो हो सकता है कि शाम तक एक दो परसेंट लीट कर जाए. फिर एनडीए समर्थकों में एक तबका ऐसा है जो मतदान में ज्यारा रुचि नहीं लेता है.
वोटर के मन की चाह यही है
पटना में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि जमीन पर माहौल यही संकेत दे रहा है कि बिहार के पहले चरण का मतदान मुद्दों और जातीय राजनीति के बीच उलझा हुआ है. जहां वोटर के मन में विकास की चाह है, लेकिन समाज की बुनावट अब भी जातीय समीकरणों में जकड़ी हुई है, इसलिए जाति ही प्रभावी रहेगा. यहां शिक्षित से लेकर कम योग्य मतदाता तक जाति की चाह को छोड़ नहीं पाते हैं. जहां तक माहौल की बात है, तो यह आप मानकर चलिए कि 2020 की तुलना में ज्यादा वोटिंग होने पर बदलाव होगा. एक बात और है, लोग विकास तो चाहते हैं, लेकिन वोट अपने बिरादरी के लोगों को ही देना चाहते हैं.