'कांग्रेस को क्या मिला, वो तो गई तेल लेने'; महागठबंधन में मुकेश सहनी जैसे कितने और किरदार? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट
बिहार असेंबली इलेक्शन 2025 में महागठबंधन के सियासी खेल में मुकेश सहनी अभी तक के सियासी खेल में सबसे बड़े खिलाड़ी साबित हुए हैं. उनकी तुलना में कांग्रेस बात करूं तो राहुल गांधी की सफल वोटर अधिकार यात्रा के बावजूद प्रदेश कांग्रेस के हिस्से में कुछ नहीं आया. यहां तक की कांग्रेस इस बार पिछले साल की तुलना में 10 कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि महागठबंधन में मुकेश सहनी जैसे कितने किरदार हैं, जो डिप्टी सीएम के दावेदार हो सकते हैं.;
बिहार महागठबंधन में अब तक सीएम और डिप्टी सीएम फेसेस के अलावा कई ‘पावर प्ले’ हो चुके हैं. मुकेश सहनी की डिप्टी सीएम बनना सिर्फ एक उदाहरण है कि गठबंधन में छोटे या क्षेत्रीय नेताओं की ताकत कितनी मायने रखती है, जिसे अब कांग्रेस समझने लगी है और पटना में आज महागठबंधन की राजनीति में जो कुछ हुआ है, उससे साफ हो गया है कि कांग्रेस जाए तेल लेने, उसे तो हमारी शर्तों को माननी होगी. सवाल यह है कि कांग्रेस को इस गठबंधन में वाकई कितना फायदा हुआ या पार्टी बस ‘तेल लेने’ की भूमिका में रह गई? अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो क्या कांग्रेस को कोई नेता दूसरा सीएम होगा? अगर नहीं तो कांग्रेस बिहार में भविष्य क्या है, राहुल गांधी का पार्टी के विस्तार को लेकर किया गया सियासी मंथन ऐसे ही बेकार जाता रहेगा क्या?
बिहार की राजनीति में ये सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है कि गुरुवार को राजस्थान के पूर्व सीएम और कांग्रेस के कद्दावर नेता अशोक गहलोत ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में एलान किया कि महागठबंधन की ओर से सीएम फेस तेजस्वी यादव और डिप्टी सीएम फेस मुकेश सहनी होंगे.
मुकेश सहनी का रोल
दरअसल, बिहार महागठबंधन में डिप्टी सीएम का चेहरा बने मुकेश सहनी ने पार्टी की सीटों और वोट बैंक में संतुलन बनाकर गठबंधन को मजबूती दी है. यही वजह है कि उन्हें डिप्टी सीएम फेस घोषित करने के लिए गठबंधन में शामिल कांग्रेस सहित अन्य दलों को करना पड़ा है. सहनी जैसे नेता 8 से 20 प्रतिशत वोट पर अपना प्रभाव रखते हैं. सीटों लिहाज से देखें तो यह 243 में से 55 से 67 सीटों पर उनका असर हो सकता है, जो महागठबंधन की चुनावी जीत के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.
कांग्रेस को क्या मिला?
महागठबंधन के अंदर जारी पॉलिटिक्स की बात करें तो सीट बंटवारे को लेकर तैयार बेल आउट पैकेज से कांग्रेस को गठबंधन में औपचारिक तौर पर सम्मान मिला, लेकिन सियासी तौर पर पार्टी को बड़े निर्णयों में बहुत कम जगह मिली. सीटों का बंटवारा और उम्मीदवारों का चयन ज्यादातर आरजेडी, वीआईपी और सीपीआईएमएल के पक्ष में हुआ.
गठबंधन में डिप्टी सीएम के कितने किरदार?
मुकेश सहनी की तरह कई स्थानीय और क्षेत्रीय नेता हैं जो गठबंधन में ताकत का संतुलन बनाए रखते हैं. ये नेता अपनी क्षेत्रीय पकड़ और जातीय समीकरण के चलते महागठबंधन के लिए ‘की-प्लेयर’ चुनाव में साबित हो सकते हैं.
कांग्रेस ने फिलहाल उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी नेता का नाम नहीं घोषित किया है. हालांकि, पार्टी के भीतर कुछ नेताओं के नाम चर्चा में हैं. बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार का नाम आता है. राजेश वर्तमान में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं और कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. राजेश कुमार के अलावा मोहम्मद अफाक आलम के नाम की चर्चा में है. आलम कासबा विधानसभा क्षेत्र से विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं.
हालांकि, कांग्रेस ने अभी तक उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी नेता का नाम नहीं घोषित किया है. पार्टी ने यह संकेत दिया है कि चुनाव परिणामों के बाद गठबंधन के अन्य नेताओं को भी उपमुख्यमंत्री पद पर विचार किया जा सकता है.
कांग्रेस की रणनीति क्या है?
बिहार में इस बार कांग्रेस ने गठबंधन के लिए पीछे हटने और संतुलन बनाए रखने की नीति अपनाई है. हालांकि, वोट शेयर और सीटों की दृष्टि से कांग्रेस को अपेक्षित फायदा नहीं मिला. क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका
इंडिया अलाएंस: सियासी समीकरण
महागठबंधन में छोटे पार्टियों के नेताओं की बढ़ती भूमिका कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकती है. इस बार चुनावी रणनीति में कांग्रेस की सीमा केवल गठबंधन का समर्थन करने तक सीमित नजर आती है. जबकि कांग्रेस ने इस बार अपने गतिविधियों की वजह से अल्पसंख्यक और परंपरागत वोट बैंक में अपनी पहुंच को बढ़ाई है. इसके बावजूद कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी है.
सीट बंटवारे में भी उलझन
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इंडिया अलायंस (INDIA Alliance) के भीतर सियासी समीकरण काफी जटिल हैं. गठबंधन विभिन्न दलों का मिश्रण है. इनमें प्रमुख रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी (VIP), वाम दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं.
इंडिया अलायंस में सीटों के वितरण को लेकर स्पष्टता की कमी है. कांग्रेस ने 60 से 80 सीटों की मांग की है, जबकि VIP ने 50 सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग की थी. वहीं, वाम दलों ने भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की इच्छा जताई थी, जिसे गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ गया.
'दोस्ती में दुश्मनी' का माहौल
कांग्रेस और RJD के बीच टिकट बंटवारे को लेकर तनाव इतना बढ़ गया कि कांग्रेस ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. उनमें से RJD, वीआईपी, सीपीआईएमएल ने भी कुछ सीटों पर दावेदारी की है. इससे गठबंधन के भीतर 'दोस्ती में दुश्मनी' का माहौल बन गया है, जिससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है.
'फ्रेंडली फाइट्स'
कई सीटों पर गठबंधन के दलों के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है, जिसे 'फ्रेंडली फाइट' कहा जा रहा है. अशोक गहलोत ने भी माना है कि कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट सियासी मजबूरी है. उदाहरण के लिए, लालगंज और वारिसलीगंज जैसी सीटों पर RJD और कांग्रेस के उम्मीदवार आमने-सामने हैं, जिससे वोटों का बंटवारा हो सकता है.
गठबंधन की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह
इन आंतरिक मतभेदों और सीट बंटवारे की उलझनों के कारण गठबंधन की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. यदि ये मुद्दे अब भी हल नहीं होते, तो गठबंधन की एकजुटता और चुनावी सफलता पर असर पड़ सकता था.
कांग्रेस ने सही वक्त पर लिया सार्थक फैसला
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन तिवारी ने बिहार की चुनावी राजनीति और कांग्रेस पार्टी के गेम प्लान पर कहा, "देश की सबसे पुरानी पार्टी ने जो किया है, उसके पास इससे बेहतर विकल्प कुछ नहीं था. उसने पार्टी के हित में अच्छा रोल प्ले किया है."
यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस को इससे क्या मिलेगा, के जवाब में उन्होंने कहा, "बिहार में कांग्रेस संगठनात्मक रूप से कमजोर है. कांग्रेस, बिहार में 1947 से 1990 तक सवर्णों, अल्पसंख्यकों और अति पिछड़ों की पार्टी मानी जाती थी. सवर्ण वोट पर बीजेपी, अल्पपसंख्यक मतदाताओं पर आरजेडी, अति पिछड़ों पर वीआईपी के मुकेश सहनी या एनडीए के नीतीश कुमार का कब्जा है. जेडीयू की राजनीति का आधार ही ईबीसी और महिला मतदाता हैं. ऐसे में कांग्रेस का यह फैसला पार्टी के लिए लाभकारी साबित होगा."
ऐसा क्यों, के जवाब में उन्होंने कहा, "अब आरजेडी, वीआईपी, वामपंथी पार्टियों के नेता प्रदेश कांग्रेस को सम्मान के नजरिए से देखेंगे. जिन सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, वहां आरजेडी और वीआईपी के वेट बैंक से वह कई सीटों पर चुनाव जीतने में मददगार साबित होंगे. फिर सहयोगी दलों के समर्थक कांग्रेस को वोट करेंगे."