बिहार में ‘लेडी रिवोल्यूशन’! टिकट न मिलने पर BJP, RJD और स्टार पावर की पत्नी समेत 6 ने खोला मोर्चा
बिहार चुनाव 2025 में इस बार महिलाओं का गुस्सा सियासत के मंच पर खुलकर फूटा है. टिकट कटने से नाराज बीजेपी, आरजेडी और अन्य दलों की महिला नेत्रियों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है. इनमें स्टार पावर की पत्नी से लेकर पूर्व मुखिया और जिला स्तर की मजबूत नेता तक शामिल हैं. आइए, जानते हैं इस बगावती महिलाओं के बारे में सब कुछ.;
बिहार की राजनीति में इस बार महिलाएं बेबाक और बगावती मूड में हैं. ऐसी महिलाएं एक नहीं बल्कि कई हैं. टिकट वितरण में उपेक्षा और अंदरूनी राजनीति, बिहार में विकास न होने पर लंदन में मोटी कमाई की नौकरी छोड़, आतंक के खिलाफ मोर्चा और पति के साथ पारिवारिक विवाद से आहत महिलाओं ने इस बार बिहार में खुल्लमखुल्ला चुनाव अखाड़े में उतरी हैं. इन महिलाओं में महनार से किरण यादव निर्दलीय, आरजेडी के खिलाफ उसी पार्टी की रितु जायसवाल, मोहनिया से पर्चा रद्द होने पर श्वेता सुमन, दरभंगा सिटी से पुष्पम प्रिया, काराकाट से ज्योति सिंह और नरकटियागंज से रश्मि वर्मा शामिल हैं. अधिकांश महिलाओं ने पार्टी लाइन से हटकर निर्दलीय मैदान में उतर ‘लेडी रिवोल्यूशन’ का राग छेड़ दिया है. वहीं, पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह समेत कई नाम सियासी हलचल का केंद्र भी बन चुके हैं.
लंदन की मोटी कमाई छोड़ सियासी मैदान में उतरी : पुष्पम प्रिया
पुष्पम प्रिया सिंह बिहार की दमदार और युवा महिला नेता हैं. पुष्पम प्रिया की शिक्षा और राजनीति में सक्रियता उन्हें युवाओं के बीच एक प्रेरणास्त्रोत बनाती है. उन्होंने बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं. वह बिहार की पहली महिला हैं, जिन्होंने लंदन में मोटी कमाई वाली नौकरी छोड़कर बिहार वापस लौटी और खुद की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में कूद पड़ी. उन्होंने साल 2020 में 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारे. हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली, पर 14 करोड़ लोगों के बीच छा गई.
पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी का नाम 'द प्लूरल्स पार्टी' (The Plurals Party) है, जिसे TPP कहा जाता है. उन्होंने 8 मार्च 2020 को टीटीपी का गठन किया था. पार्टी का मुख्यालय पटना में है. इसका चुनाव चिन्ह 'सीटी' है, जिसे विकास का प्रतीक माना जाता है.
पुष्पम प्रिया का मकसद बिहार की राजनीति में जातिवाद और सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर समावेशी और प्रगतिशील राजनीति को बढ़ावा देना है. पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, सभी उम्मीदवारों की हार हुई थी. अब 2025 के विधानसभा चुनाव में भी यह पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. वह खुद इस बार दरभंगा सिटी चुनाव लड़ रहीं हैं.
गुलनाज हत्याकांड को उछाल सुर्खियों में आई थीं किरण यादव
किरण यादव समस्तीपुर के महनार विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ रहीं हैं. किरण उस समय सुर्खियों में आई थी, जब वर्षों पहले चांदपुरा थाना क्षेत्र अंतर्गत गुलनाज हत्याकांड को अपने दम पर सोशल मीडिया पर उछाल चर्चा में आईं. गुलनाज की मौत सबसे पहले उन्होंने ने ही आवाज दी थी. यह मामला महज एक छोटे से गांव रसूलपुर हबीब (चांदपुरा) से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया. राहुल गांधी ने भी इस पर ट्वीट किया था. इस मुद्दे को उठाने और लगातार आवाज बुलंद करने की वजह से उन्हें काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी. उन्हें जेल तक जाना पड़ा, तरह-तरह की यातनाओं और मुकदमों का सामना करना पड़ा. तमाम मुश्किलों के बीच भी उन्होंने हार नहीं मानी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक किरण यादव बेहद साधारण परिवार से आने वाली, जुझारू और निडर महिला हैं. वह हमेशा विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं.
श्वेता सुमन: पर्चा रद्द होने के फैसले को अदालत में दी चुनौती
श्वेता सुमन बिहार की एक उभरती हुई महिला नेता हैं, जो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है. सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम करती हैं. श्वेता सुमन ने महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए कई अभियानों में भाग लिया और उनकी आवाज को विधानसभा में उठाने का प्रयास किया. बिहार की मोहनिया विधानसभा सीट पर RJD प्रत्याशी श्वेता सुमन का नामांकन रद्द होने के बाद बक्सर से सांसद सुधाकर सिंह ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया. राजद ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. श्वेता सुमन ने 22 अक्टूबर को पर्चा रद्द होने के बाद फूट फूटकर रोने लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत न हारते हुए अदालत में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने का फैसला लिया.
RJD के खिलाफ परिहार से रितु के बगावती तेवर
रितु जायसवाल बिहार की एक प्रमुख महिला नेता हैं, जिन्होंने परिहार से बतोर निर्दलीय प्रत्याशी पर्चा भरा है. वह आरजेडी से दो बार चुनाव लड़ चुकी है. इस बार RJD से टिकट न मिलने पर उन्होंने तेजस्वी यादव के बगावत कर परिहार सीट से मैदान में उतरी हैं. उन्होंने दावा किया है कि इस सीट से आरजेडी प्रत्याशी की हार तय है. उन्होंने राजनीति में अपनी पहचान बनाई है और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम करती हैं. इससे पहले रितु जायसवाल ने बतौर मुखिया गांव का विकास करने में अहम रोल अदा थी. उसी के बाद से अपने इलाके में वह चर्चा में आईं.
नरकटियागंज में रश्मि वर्मा ने संभाला BJP के खिलाफ मोर्चा
रश्मि वर्मा बिहार की एक प्रमुख महिला नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़ी हुई हैं. वर्तमान में वह नरकटियागंज से बीजेपी विधायक हैं. बच्चों के अधिकारों के लिए वह कई अभियानों चला चुकी हैं. उन्होंने 2014 में बाई-इलेक्शन में पहली बार विधायक के रूप में जीत दर्ज की थी. 2015 में भी वह चुनाव जीती थीं. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी इस सीट से भाजपा टिकट पर जीत हासिल की थी. राजनीतिक सफर में उन्होंने 2022 में परिवार संबंधी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था. इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काट संजय कुमार पांडेय को मैदान में उतारा है.
इससे नाराज रश्मि वर्मा ने नरकटियागंज विधानसभा सीट से बगावत का ऐलान कर दिया है. रश्मि वर्मा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं. उनके इस फैसले से नरकटियागंज में सियासी समीकरण बदल गए हैं और मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना बढ़ गई है.
पति से नाराज ज्योति ने Karakat से ठोका ताल
भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह ने पति से विवाद होने के बार काराकाट विधानसभा सीट से ताल ठोककर मैदान में उतरी हैं. इससे पहले उन्होंने पवन सिंह को चुनाव न लड़ने की चेतावनी दी थी. पत्नी से विवाद सोशल मीडिया में सुर्खियों में आने के बाद पवन ने खुद को चुनावी राजनीति से बाहर होने का एलान कर दिया था. लेकिन उनकी नाराज पत्नी ने काराकाट से चुनाव लड़ रही हैं. कई स्थानीय नेताओं ने उन्हें महागठबंधन और बीजेपी दोनों के लिए 'कटिंग फैक्टर' फैक्टर करार दिया है.
ज्योति का राजनीति में उतरना एक तरह से पवन सिंह की लोकप्रियता का विस्तार माना जा रहा है. काराकाट सीट पर पहले से ही आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी के प्रत्याशियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. ऐसे में ज्योति सिंह के उतरने से इस सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भोजपुरी कलाकारों की लोकप्रियता वोटों में तब्दील होती है या नहीं, यह हर चुनाव में चर्चा का विषय रहता है, लेकिन पवन सिंह फैक्टर इस बार निर्णायक साबित हो सकता है.