छपरा जीत के दिखाएंगे... ठीक है! खेसारी लाल यादव के लिए क्या हैं चुनौतियां? समझिए पूरा सियासी गुणा गणित

बिहार की छपरा विधानसभा में भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव की एंट्री ने राजनीतिक माहौल बदल दिया है, लेकिन स्टार पावर होते हुए भी जीत आसान नहीं है. इसके लिए खेसारी लाल को जाति समीकरण की सीमाओं को पार करना होगा. साथ ही लोकल इश्यूज से खुद को कनेक्ट करना होगा.;

( Image Source:  Khesari Lal Insta )
By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 28 Oct 2025 3:10 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव चिन्ह पर भोजपुरी स्टार पावर खेसारी लाल यादव चुनाव लड़ रहे हैं. उनका एक गाना है - 'बेबी..., सबके डर से हुए हैं फररिया, छपरा पर अटकन जाएंगे, नून रोटी खाएंगे, जिंनगी संगहि बिताएंगे.... ठीक है..' यह गाना काफी पापुलर हुआ था. इस गाने ने भोजपुरी फिल्मों में उन्हें एक नई पहचान दी थी. लेकिन क्या, खेसारी लाल छपरा के लोगों में वही भरोसा कायम कर पाएंगे, जो उन्होंने अपने गाने 'नून रोटी खाएंगे, जिनगी संगहि बिताएंगे' में अपनी प्रेमिका से किया था. हां, कहना बहुत आसान है, लेकिन वोटर्स का चुनाव में दिल जीतना आसान नहीं होता, फिर उस समय, जब छपरा सीट से वो खुद ही आरजेडी टिकट पर मैदान हों.

आरजेडी प्रत्याशी खेसारी लाल यादव चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है. उन्हें भीड़ और मीडिया कवरेज बड़े पैमाने पर मिल रहा है, लेकिन छपरा की परंपरागत जातीय सेटअप, पिछले चुनावों का पैटर्न और स्थानीय मुद्दे चुनावी नतीजे तय करेंगे. RJD की रणनीति है कि उनकी पॉपुलैरिटी से पारंपरिक वोट-बैंकों को पार्टी के पक्ष में मोड़ा जा सके, पर यह काम उतना आसान नहीं है, जितना वो सोच रहे थे. ऐसा इसलिए कि इस सीट से बीजेपी की ओर से स्वीटी कुमारी मैदान में हैं. फिर, इस सीट पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान बीजेपी का प्रभाव बढ़ा है.

 जातीय समीकरण क्या है?

छपरा (Chapra) की सीट में जातीय समीकरण और ऐतिहासिक रुझान निर्णायक रहे हैं. साल 2008 में परिसीमन के बावजूद यहां पर यादव, राजपूत और वैश्य समुदाय के लोग निर्णायक भूमिका निभाते हैं. वैश्य समुदाय के वोट का भी यहां खास प्रभाव होता है. पिछली बार 2020 के हालिया उप चुनाव पैटर्न से पता चलता है कि NDA-BJP यहां मजबूत हुआ है. RJD-परंपरागत सीट है. ऐसे में वोट स्विंग वोट इस बार मायने रखेंगे.

स्टार पावर होना खेसारी के पक्ष में

हालांकि, छपरा सीट से खेसारी लाल का भोजपुरी स्टार पावर होना उनके पक्ष में जाता है. उनके लिए भीड़ को जुटाना और मीडिया कवरेज और सोशल मीडिया तक पहुंच स्वीटी कुमारी से ज्यादा आसान है. फिर भोजपुरी भाषा-संस्कृति के कारण वे स्थानीय जनता से इमोशनल कनेक्शन आसान से बना ले पा रहे हैं. उनके साथ RJD की ओर से ‘स्टार-कैंडिडेट’ घोषित होने से संसाधन और गठबंधन में शामिल दलों का समर्थन भी उन्हें हासिल है.

आरजेडी की चुनौतियां

छपरा का वोटिंग पैटर्न जातिगत रूप से बंटा है. सिर्फ स्टार-पावर से पारंपरिक वोट-बैंकों (विशेषकर वैश्य और राजपूत) का समर्थन हासिल करना ईजी टास्क नहीं है. RJD को Yadav के अलावा अन्य नेटिव वोटों के साथ मिड-कास्ट और ओबीसी वोटर्स का समर्थन जीत के लिए हासिल करना होगा.

स्थानीय मुद्दे भी कम नहीं

चुनाव में स्थानीय मुद्दों (बुनियादी सुविधाएं, बाढ़,सड़क और रोजगार) पर उम्मीदवार की इमेज मायने रखती है. फिल्मी स्टारों को बार-बार यह साबित करना पड़ता है कि वे शासन-प्रशासन को लेकर बार-बार यह साबित करना होता है कि वह जीते तो क्षेत्र में काम करा सकते हैं. विरोधी इस कमजोरी का इस्तेमाल खेसारी के खिलाफ कर सकता है.

बीजेपी का चेहरा मजबूत

बीजेपी ने मजबूत स्थानीय चेहरा (जैसे Chhoti Kumari का प्रचार) रखा है. छोटी कुमारी की क्षेत्र में पकड़ मजबूत है. अगर बीजेपी का कैडर वोट एकजुट रहता है तो स्टार-फैक्टर कमजोर पड़ सकता है. स्थानीय प्रत्याशियों के पास पार्टी-मशीनरी और फोर्स-नेटवर्क होता है.

विवादों से भी रहा है नाता

खेसारी लाल यादव की कुछ भोजपुरी गीतों और सार्वजनिक छवियों को लेकर विपक्ष ने नैतिक हमले किए हैं. ये हमले खासकर पुरानी पीढ़ी या महिला-वोटरों में असर डाल सकते हैं. खेसारी ने कुछ गीतों को 'गलत' माना है, पर इसके राजनीतिक नुकसान को मैनेज करना होगा.

इन सबके बावजूद खेसारी की लोकप्रियता का माइलेज उन्हें मिल रहा है. RJD के लिए छपरा में यह सियासी संतुलन बनाने का अच्छा मौका है. इसके बावजूद आरजेडी प्रत्याशी को जातिगत मतदाताओं, स्थानीय मुद्दे और बूथ-ऑर्गनाइजेशन को प्रभावी बनाना होगा. यदि पार्टी और कैंडिडेट प्रोफेशनल तरीके से लोकल मुद्दों, बूथ-वर्क और गठबंधन-मैनेजमेंट पर काम करते हैं, तो जीत सम्भव है. वरना स्टार-पावर अकेला काफी नहीं होगा.

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