बिहार के मंत्री अशोक चौधरी बने असिस्टेंट प्रोफेसर, लेकिन नीतीश सरकार ने ही रोक दी नियुक्ति; जानें क्या है पूरा माजरा
बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी की असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति उनकी ही सरकार ने नाम में गड़बड़ी के चलते रोक दी है. शैक्षणिक दस्तावेजों और चुनावी हलफनामे में अलग-अलग नाम होने से मामला अटक गया है, जिससे पहले से विवादों में घिरी विश्वविद्यालय भर्ती प्रक्रिया पर नए सवाल खड़े हो गए हैं. चौधरी को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया था.;
Ashok Choudhary Bihar Assistant Professor Appointment controversy: बिहार से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री अशोक चौधरी की असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति उनकी ही सरकार ने रोक दी है. वजह है- नाम को लेकर पैदा हुआ विवाद... इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 57 वर्षीय अशोक चौधरी उन 274 उम्मीदवारों में शामिल थे, जिन्होंने जून 2025 में राजनीति विज्ञान (Political Science) के असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए इंटरव्यू क्लियर किया था. यह प्रक्रिया तब पूरी हुई, जब बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) ने करीब पांच साल पहले, सितंबर 2020 में इन पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था.
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सूत्रों के मुताबिक, अशोक चौधरी को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया था, जहां कुल 18 उम्मीदवारों को नियुक्ति मिलनी थी. बाकी सभी उम्मीदवारों को जहां पिछले महीने नियुक्ति पत्र मिल गए, वहीं चौधरी की नियुक्ति अंतिम समय पर रोक दी गई.
अशोक चौधरी की नियुक्ति क्यों रोकी गई?
समस्या नाम में अंतर (Name Discrepancy) को लेकर सामने आई है. अशोक चौधरी के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में नाम ‘अशोक कुमार’ दर्ज है, जबकि उनके चुनावी हलफनामे और राजनीतिक दस्तावेजों में नाम ‘अशोक चौधरी’ है. विश्वविद्यालय सेवा आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया, “प्रारंभिक जांच में हमने शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर प्रक्रिया पूरी की थी, लेकिन अंतिम सत्यापन में दो अलग-अलग नाम सामने आए, जिसके चलते नियुक्ति रोकी गई.” उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने भी पुष्टि करते हुए कहा, “नाम से जुड़ी अस्पष्टता समेत कुछ स्पष्टीकरणों के अभाव में मामला फिलहाल विभाग के पास लंबित है।”
सियासी और प्रशासनिक असहजता
हालांकि अशोक चौधरी ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने निजी तौर पर माना कि यह मामला पार्टी और सरकार दोनों के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है. उनका कहना था, “पहले ही एक सत्तारूढ़ दल के मंत्री का चयन होने पर विपक्ष ने हितों के टकराव का आरोप लगाया था. अब नाम विवाद ने स्थिति को और शर्मनाक बना दिया है।”
पहले से विवादों में घिरी नियुक्ति प्रक्रिया
यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब बिहार में विश्वविद्यालय नियुक्तियां पहले से ही सवालों के घेरे में हैं. 15 दिसंबर को BSUSC ने राजनीति विज्ञान के उम्मीदवारों के कॉलेज आवंटन जारी किए थे, वह भी इंटरव्यू के छह महीने बाद... कई उम्मीदवारों ने राज्यपाल और कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खान को ज्ञापन सौंपकर आरोप लगाया था कि पांच साल से ज्यादा लंबी प्रक्रिया ने उन्हें मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानी और अनिश्चितता में डाल दिया. इन नियुक्तियों पर पहले भी फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र, रिसर्च पेपर और मुकदमों को लेकर विवाद हो चुके हैं, जिसके चलते पूरी चयन प्रक्रिया करीब पांच साल तक खिंचती चली गई. अब अशोक चौधरी की रुकी हुई नियुक्ति ने इस पूरी प्रक्रिया पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं.