अरेस्ट होने के बाद भी मोकामा के चुनावी मैदान में बने रहेंगे बाहुबली अनंत सिंह, क्या कहता है RPA Act 1951?

Bihar Election 2025 में मोकामा के बाहुबली नेता अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने सियासी हलचल बढ़ा दी है. दुलारचंद यादव हत्याकांड में हिरासत के बाद बड़ा सवाल उठा है—क्या जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ा जा सकता है? जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA 1951) क्या कहता है, कौन चुनाव लड़ सकता है, कौन नहीं, और इस गिरफ्तारी का चुनावी समीकरण पर क्या असर पड़ेगा. पूरी कानूनी और राजनीतिक पड़ताल यहां पढ़ें.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 2 Nov 2025 11:08 AM IST

बिहार की राजनीति में हर चुनाव से पहले एक नाटकीय मोड़ जरूर आता है. और 2025 के चुनाव में यह मोड़ बना है मोकामा के बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी. जिस सीट पर वह लगातार पांच बार जीत चुके हैं, उसी सीट पर अब सवाल उठ रहा है कि क्या वह जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ पाएंगे? यह सिर्फ एक गिरफ्तारी नहीं, बल्कि बिहार की सियासत का वो मोड़ है जहां कानून, अपराध, राजनीति और चुनावी गणित एक-दूसरे से टकरा रहे हैं.

दुलारचंद यादव हत्याकांड ने चुनावी माहौल को पूरी तरह झकझोर दिया है. घटनास्थल पर मौजूद होने के शक के आधार पर पुलिस ने देर रात अनंत सिंह को हिरासत में लिया. लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि गिरफ्तारी क्यों हुई? असली सवाल यह है क्या गिरफ्तार नेता चुनाव लड़ सकता है? कानून क्या कहता है? और इसका असर मोकामा ही नहीं, पूरे बिहार के चुनावी समीकरण पर कैसा पड़ेगा?

बिहार की सियासत का पुराना पैटर्न दोहराया?

बिहार में चुनावी सीजन आते ही किसी न किसी बड़े चेहरे पर कानूनी कार्रवाई होना कोई नई बात नहीं है. लालू प्रसाद यादव, मोहम्मद शहाबुद्दीन, मुकेश सहनी, और अब अनंत सिंह.जेल और राजनीति का रिश्ता बिहार में हमेशा सक्रिय रहा है. लेकिन इस बार फर्क ये है कि गिरफ्तारी वोटिंग की तारीख से ठीक पहले हुई, जब माहौल अपने चरम पर था. इसे सिर्फ “कानूनी कार्रवाई” कहना कठिन है क्योंकि बिहार में हर गिरफ्तारी सियासी गणित भी बदल देती है.

पुलिस की ‘टाइमबाउंड’ कार्रवाई

29 अक्टूबर की रात दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या होती है. मामला हाई-इम्पेक्ट था, क्योंकि वह भी मोकामा क्षेत्र से जुड़े थे. जांच के दौरान मोबाइल लोकेशन, गवाहों के बयान और घटनास्थल पर मौजूदगी के संदेह ने अनंत सिंह को सीधे दायरे में ला दिया. इसके बाद 11:10 PM से 2:00 AM तक चलने वाली कार्रवाई में उन्हें हिरासत में लेकर पटना लाया गया और प्रेस कॉन्फ्रेंस में गिरफ्तारी की पुष्टि हुई. यानी, केस अभी मुकदमे की स्थिति में नहीं पहुंचा है. यही आगे की कानूनी लड़ाई का सबसे बड़ा आधार बनेगा.

क्या जेल से चुनाव लड़ना संभव है?

भारत में चुनाव जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) के तहत होते हैं. अगर कोई उम्मीदवार सिर्फ गिरफ्तार है, लेकिन दोषी करार नहीं हुआ है, तो वह चुनाव लड़ सकता है. यानी जेल में बंद रहने के बावजूद नामांकन, प्रचार और जीत सब संभव है, क्योंकि कानूनी रूप से वह “अयोग्य” नहीं कहलाता. इसीलिए लालू यादव ने जेल में रहते हुए पार्टी चलाई, मोहम्मद शहाबुद्दीन ने भी जेल से चुनाव लड़ा, और यहां तक कि यूपी में राजा भैया भी ऐसा कर चुके हैं. अनंत सिंह भी यही मॉडल फॉलो कर सकते हैं.

कौन चुनाव नहीं लड़ सकता?

RPA की धारा 8(3) के अनुसार, अगर किसी नेता को किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराकर 2 साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है, तो वह तुरंत चुनाव लड़ने से अयोग्य हो जाता है. यहां फर्क पर ध्यान दें- “अदालत से सजा” और “सिर्फ गिरफ्तारी” दो अलग चीज़ें हैं. अनंत सिंह गिरफ्तार हुए हैं लेकिन उन पर सजा नहीं हुई है. इसलिए वह अभी कानूनी रूप से पात्र उम्मीदवार माने जाएंगे. वहीं, चुनाव आयोग बैलेट पेपर नहीं रोक सकता, लेकिन अभियान रोक सकता है.

इस समय अनंत सिंह सिर्फ गिरफ्तार हुए हैं, सजा नहीं सुनाई गई है. यानी, कानूनी तौर पर वे इस चुनाव में उम्मीदवार बन सकते हैं. लेकिन मामला हाई-प्रोफाइल है, इसलिए विरोधी दल इस मुद्दे को “नैतिक योग्यता” बनाम “कानूनी हक” के रूप में उभार रहे हैं.

EC के पास अधिकार है कि अगर कोई उम्मीदवार जेल में है, तो वह

  • नामांकन कर सकता है
  • चुनाव चिन्ह रख सकता है
  • वोट गिनती के बाद विजेता घोषित हो सकता है

लेकिन

  • वह चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर नहीं निकल सकता
  • वह रैलियाँ, रोड शो, मीडिया इंटरव्यू नहीं कर सकता (अगर कोर्ट उसे इजाजत न दे)

यानी लड़ाई “राजनीतिक नहीं, प्रॉक्सी चुनावी मॉडल” की होगी. जहां प्रचार पत्नी, भाई, समर्थक और मीडिया के ज़रिए चलेगा.

मोकामा सीट का इतिहास

मोकामा सीट सिर्फ विधानसभा सीट नहीं, कनफ्रंटेशन की सीट रही है. अनंत सिंह ने यहाँ 2005 से 2020 तक लगातार जीत दर्ज की. उनके सामने कभी पार्टी नहीं, छवि और प्रभाव लड़ा. अब जेल की स्थिति में चुनाव लड़ना उनकी “ब्रांड राजनीति” को और मजबूत भी कर सकता है क्योंकि बिहार में “विरोध की गिरफ्तारी” को अक्सर जन सहानुभूति मिलती है.

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