'पहले लें तलाक, फिर मांगें लिव-इन में रहने के लिए सुरक्षा', शादीशुदा महिला की याचिका पर इलाहाबाद HC कोर्ट की सख्त टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि शादीशुदा महिला बिना तलाक लिए दूसरे पुरुष से लिव-इन में रहने के लिए सुरक्षा नहीं मांग सकती. कोर्ट ने ऐसी याचिका को कानून के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया. कोर्ट ने ये भी बताया इस तरह की याचिका का कोई मतलब नहीं होता.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 16 Nov 2025 10:24 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक शादीशुदा महिला की याचिका पर सुनवाई के बाद सख्त टिप्पणी की है. हाईकोर्ट के जज ने कहा कि जब तक विवाह कानूनी रूप से वैध है, पत्नी किसी दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए राज्य से सुरक्षा की मांग नहीं कर सकती. अदालत ने ऐसी सुरक्षा याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि कानून अवैध संबंधों को संरक्षित नहीं कर सकता.

क्या है पूरा मामला?

याचिकाकर्ता शादीशुदा महिला ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह अपने पति से अलग रह रही है और दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन में रहना चाहती है. उसने दावा किया कि उसे और उसके साथी को परिवार और समाज से खतरा है, इसलिए पुलिस सुरक्षा दी जाए. हालांकि, याचिकाकर्ता ने अभी तक पति से कानूनी तौर पर तलाक नहीं लिया है.

कोर्ट ने क्यों की याचिका खारिज?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि 'विवाह' अभी भी कानूनी रूप से वैध है. इसलिए, महिला किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन में रहना चाहती है तो वह वैवाहिक कानून का उल्लंघन है, ऐसे संबंधों को सुरक्षा देना कानून और सामाजिक व्यवस्था, दोनों के विपरीत है. अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सुरक्षा सिर्फ उन्हीं संबंधों को मिल सकती है जो कानूनी रूप से वैध हों?.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मसले पर कहा, “कानून अवैध संबंधों की रक्षा नहीं कर सकता. जब तक विवाह अस्तित्व में है, पत्नी दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन संबंध के लिए सुरक्षा नहीं मांग सकती.” अदालत ने इसे नैतिक और कानूनी दोनों रूप से गलत करार दिया.

लिव इन सुरक्षा को लेकर कानून क्या है?

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति-पत्नी का रिश्ता तब तक वैध रहता है जब तक तलाक न हो जाए. सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन संबंधों को कुछ हद तक मान्यता दी है, लेकिन वैध परिस्थितियों में, न कि ऐसे मामलों में जहां विवाह अभी समाप्त ही नहीं हुआ. इसलिए, शादी के रहते दूसरा संबंध बनाना वैध नहीं माना जा सकता.

अदालत ने दिया संकेत?

हाई कोर्ट ने कहा कि यदि महिला का पति से विवाद है, तो पहले तलाक, न्यायिक अलगाव (Judicial Separation), या अन्य कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी. इसके बाद ही वह किसी नए संबंध में सुरक्षा मांग सकती है.

अधिकारों की स्वतंत्रता की भी सीमा तय है

जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने कहा कि अधिकारों की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं होती, और जहां एक व्यक्ति के अधिकार शुरू होते हैं. दूसरे के अधिकारों की सीमा तय हो जाती है. कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा होने के नाते पति-पत्नी दोनों का एक-दूसरे के साथ रहने का वैधानिक अधिकार है. इस अधिकार को किसी तीसरे व्यक्ति के कारण समाप्त नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पति या पत्नी का अपने जीवनसाथी के साथ रहने का अधिकार कानून द्वारा संरक्षित है. किसी एक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दूसरे के वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती. अदालत ऐसे अवैध संबंधों को संरक्षण देने का काम नहीं कर सकती.

7 नवंबर को जारी आदेश में यह भी कहा गया कि लिव-इन संबंध के लिए सुरक्षा देना अवैध संबंधों को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकृति देने जैसा होगा, जो कि कानून की मंशा के खिलाफ है. अदालत ने यह भी जोड़ा कि मैंडमस किसी वैधानिक या दंडात्मक प्रावधान को निष्प्रभावी करने के लिए जारी नहीं किया जा सकता.

कानून और सामाजिक असर

अदालत ने यह फैसला उन मामलों में मिसाल बनेगा, जहां शादीशुदा लोग बिना तलाक लिए लिव-इन के लिए सुरक्षा मांगते हैं. कोर्ट ने साफ कर दिया कि लिव-इन का अधिकार है, पर वैधता के साथ, कानून अवैध संबंधों को संरक्षण नहीं देगा. विवाह संस्था की कानूनी गरिमा बनाए रखी जाएगी.

मुख्य बातें

  • शादीशुदा महिला बिना तलाक लिए लिव-इन के लिए सुरक्षा नहीं मांग सकती.
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को कानून के खिलाफ बताते हुए खारिज किया.
  • कोर्ट ने कहा - विवाह वैध रहते दूसरा पुरुष संबंध अवैध.
  • कानून अवैध संबंधों को सुरक्षा नहीं दे सकता.
  • तलाक या न्यायिक अलगाव के बाद ही ऐसी सुरक्षा याचिका मान्य होगी.
  • फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए मिसाल बनेगा.

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