Javed Miandad: जिसने लिली को बैट से धमकाया, मोरे के सामने लगाया मंकी जंप, तो गेंदबाज़ से पूछता रहा ‘तेला लुम नंबर क्या है’

पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान जावेद मियांदाद का नाम 1986 में भारत के खिलाफ आखिरी गेंद पर छक्के से मिली जीत के लिए अमर हो गया. 124 टेस्ट में 8832 रन, 23 शतक और छह दोहरे शतक बनाने वाले मियांदाद ने छह वर्ल्ड कप खेले. भारत के खिलाफ 2228 रन बनाए. विवादों में भी रहे, डेनिस लिली से भिड़ंत और 'मंकी जंप' आज भी याद किए जाते हैं. 1992 वर्ल्ड कप में घायल पीठ के बावजूद छह फिफ्टी मारी. वह ICC Hall of Fame में भी शामिल हैं.;

By :  अभिजीत श्रीवास्तव
Updated On : 12 Jun 2025 1:44 PM IST

पाकिस्तान क्रिकेट के पूर्व कप्तान और पिच पर अपने बल्ले से कई दमदार रिकॉर्ड बनाने वाले जावेद मियांदाद का नाम जब भी जुबां पर आता है तो 1986 में शारजाह में खेले गए ऑस्ट्रलेशिया कप के फ़ाइनल में आख़िरी गेंद पर छक्का जमाकर पाकिस्तान को जीत दिलाने वाला वो मैच ख़ुद-ब-ख़ुद याद आ जाता है. भला भारत-पाकिस्तान क्रिकेट से जुड़ी कहानियों को जानने वाला कौन शख़्स उस छक्के को नहीं जानता होगा?

कराची में 12 जून 1957 को जन्में जावेद मियांदाद आज 68 साल के हो गए हैं. पाकिस्तान के लिए 1976-1993 तक 124 टेस्ट मैचों में जावेद मियांदाद ने 23 शतकों की मदद से 8832 रन बनाए. उनके रिटायरमेंट तक टेस्ट में पाकिस्तान की ओर से सबसे अधिक रन और सबसे अधिक शतक जैसे रिकॉर्ड जावेद मियांदाद के नाम पर ही दर्ज थे. तो 1980 से 1993 के बीच पाकिस्तान के क्रिकेट टीम की कप्तानी करने वाले मियांदाद ने रिकॉर्ड छह वर्ल्ड कप खेले.

1992 में पाकिस्‍तान को बनाया वर्ल्‍ड चैंपियन!

1992 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को चैंपियन बनाने में मियांदाद का अहम योगदान रहा. पीठ में तकलीफ़ के बाद भी वो उस वर्ल्ड कप में छह हॉफ़ सेंचुरी जमाए. आज भी लगातार नौ वनडे में अर्धशतक जमाने का रिकॉर्ड जावेद मिंयादाद के नाम पर ही दर्ज है. टेस्ट मैच में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ शतक के साथ डेब्यू करने वाले मियांदाद का बल्लेबाज़ी औसत कभी 51.75 से नीचे नहीं गया. ऐसा करने वाले वो हर्बर्ट शटक्लिफ़ (60.73 से नीचे नहीं गया) के बाद केवल दूसरे क्रिकेटर हैं.

भारत के खिलाफ बनाए करियर के एक चौथाई रन

भारत के ख़िलाफ़ तो मियांदाद अपनी बेहतरीन बल्लेबाज़ी करने के लिए खूब मशहूर थे. भारत के ख़िलाफ़ जब भी पाकिस्तान मुश्किल हालात में दिखा, वो पिच पर जम ही जाते थे. चाहे शारजाह में जमाया 1986 का वो शतक हो या उनके टेस्ट करियर की सबसे बड़ी 280 रनों की नाबाद पारी, अपने करियर के क़रीब एक चौथाई रन (किसी देश के ख़िलाफ़ सबसे अधिक 2228 रन) मियांदाद ने भारत के ख़िलाफ़ ही बनाए और वो भी 67.52 की औसत से.

पिछले 49 साल से जावेद मियांदाद के नाम पर टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम उम्र में दोहरा शतक (206 रन) जमाने का रिकॉर्ड बदस्तूर कायम है जो उन्होंने 1976 में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ अपने केवल तीसरे टेस्ट मैच में 19 साल 140 दिन की उम्र में बनाए थे. मियांदाद ने कई बड़ी पारियां खेलीं, इसकी गवाही उनके छह दोहरे शतक दे रहे हैं.

 

टेस्‍ट क्रिकेट में डेब्‍यू के बाद पिता को खोया

मियांदाद अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी द कटिंग एज़ में लिखते हैं, "क्लब क्रिकेट में अगर मैं 30 या 40 रन बनाकर आउट होता तो वो कहते थे कि जल्दी आउट होना तो समझ में आता है लेकिन विकेट पर टिकने के बाद आउट होना समझ से परे है. शतक बनाता तो भी कहते थे कि दोहरा शतक क्यों नहीं बनाए." मियांदाद ने लिखा कि इन बातों का मेरे करियर पर सबसे अधिक असर पड़ा. उन्होंने कोई कोचिंग नहीं ली लेकिन बैटिंग में लगातार सुधार लाते गए. उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी अपने पिता को समर्पित की है जो उनके टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने के कुछ ही दिनों बाद गुज़र गए थे.

'...नहीं देखा जावेद मियांदाद जैसा प्‍लेयर'

मियांदाद अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी में लिखते हैं कि वो अपने क्रिकेट करियर के दौरान पिता की कमी महसूस करते रहे लेकिन उनकी याद में मैदान में एक के बाद एक कर कई धमाकेदार पारियां खेलते गए. वेस्टइंडीज़ के दिग्गज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स ने अपनी ऑटो बायोग्राफ़ी में लिखा, "मैं दुनिया भर के क्रिकेटरों को देख चुका हूं और पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि इमरान ख़ान (पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान और प्रधानमंत्री) और जावेद मियांदाद जैसे अपने देश के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा रखने वाले क्रिकेटरों को मैंने नहीं देखा." क्रिकेट की असीम प्रतिभा के धनी जावेद मियांदाद उन 8 पाकिस्तानी क्रिकेटरों में शामिल हैं जिन्हें आईसीसी हॉल ऑफ़ फ़ेम में स्थान देकर सम्मानित किया गया है.

जब डेनिस लिली को बैट लहरा कर धमकी दी

क्रिकेट से अधिक विवादों के कारण चर्चा में रहे मियांदाद. मैदान पर उनके कई कारनामों ने विवादों को जन्म दिया. सबसे चर्चित विवादों में से एक 1983 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर पर्थ में डेनिस लिली को दिखा कर धमकी भरे अंदाज में अपना बल्ला लहराना था, तो 1992 में सिडनी में खेले जा रहे वर्ल्ड कप मैच के दौरान भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे के रन आउट की अपील की नकल करते हुए पिच पर कई बार उनका जंप करना लोग आज भी नहीं भूले हैं.

 

 

अस्सी के दशक में डेनिस लिली और जावेद मियांदाद क्रिकेट के हाई प्रोफ़ाइल खिलाड़ियों में से थे. दोनों मैदान में जिस तरह अपने दमदार प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध थे तो वहीं विवादों से सुर्खियां बटोरने की प्रवृति भी दोनों में शुमार थी.

अक्टूबर 1981 में मियांदाद की कप्तानी में पाकिस्तान की टीम तीन टेस्ट मैचों की सिरीज़ के लिए ऑस्ट्रेलिया गई. कप्तान के तौर पर यह मियांदाद का पहला विदेशी दौरा था और वे ऐसी टीम की अगुआई कर रहे थे जिसमें अंदरुणी मतभेद थे क्योंकि कई सीनियर क्रिकेटर मियांदाद को कप्तान नियुक्त किए जाने से नाख़ुश थे. मियांदाद अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी द कटिंग एज़ में लिखते हैं, "ध्यान बंटाने वाली यह वो चीज़ थी जिसे मैं कप्तान के तौर पर अपने डेब्यू टूर में तो कतई नहीं चाहता था. मामला और भी ख़राब हो गया जब हमारे आयोजक ने पहला टेस्ट पर्थ में रख दिया. यह दुनिया में मौजूद सबसे तेज़ और बाउंस करने वाली ट्रैक है."

"पर्थ में टेस्ट खेलने से पहले ही मैं और लिली एक दूसरे पर हमलावर थे. ब्रिसबेन में खेले गए चार दिवसीय मैच में मैं शतक जमा चुका था और डेनिस मुझे आउट नहीं कर पाने पर अपनी झुंझलाहट दिखा चुके थे."

मियांदाद लिखते हैं, "डेनिस (लिली) स्वाभाविक रूप से उग्र तेज़ गेंदबाज़ थे, निश्चित रूप से सबसे बेहतरीन जिनके ख़िलाफ़ मैं खेल चुका हूं. मैं उनके कौशल की क़द्र करता हूं लेकिन मैं पीछे नहीं हटने वाला था." इसके बाद उन्होंने पर्थ टेस्ट के बारे में बताया, "पर्थ टेस्ट में हमने इमरान और सरफराज़ की बदौलत बहुत बढ़िया शुरुआत की. 180 रन पर ऑस्ट्रेलिया को आउट कर दिया. पर हम जवाबी कार्रवाई में असफल रहे. एक समय हमारा स्कोर 26/8 था लेकिन हम किसी तरह पहली पारी में 62 रन बना लिए. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने 428/8 का स्कोर खड़ा किया और हमें 543 रनों का लक्ष्य दे दिया. अभी टेस्ट में दो दिन बाकी थे. उसी दौरान वो प्रकरण हुआ. तब मैं बल्लेबाज़ी कर रहा था और लिली गेंदबाज़ी कर रहे थे. वो जब भी दौड़कर गेंद डालने आते तो भीड़ से 'किल, किल, लिली' 'KILL, KILL, LILL-EE' की आवाज़ आती. मैं जब विकेट पर आया तब स्कोर दो विकेट पर 27 रन था और मैं तब मंसूर अख़्तर के साथ साझेदारी निभाने पर ध्यान देना चाहता था."

 

मियांदाद इसके बाद लिखते हैं, "जब स्कोर 78/2 पर था, तब मैं डेनिस (लिली) की एक गेंद स्कवायर लेग अंपायर की तरफ खेल कर एक रन ले रहा था. अभी पिच पर तीन चौथाई ही दौड़ा था कि मैं उनसे टकरा गया क्योंकि वो मुझे रोकने के लिए पीछे की ओर हटे थे. चूंकि मुझे नॉनस्ट्राइकर एंड पर सुरक्षित पहुंचना था तो मैंने अपने रास्ते से हटाने के लिए उन्हें पुश किया. फिर जब डेनिस (लिली) अगली गेंद डालने अपने रनअप की ओर जाने लगे तो उन्होंने अपना पैर मेरे पैड पर मारा और अपशब्द (गाली) बोले. लगभग उसी प्रतिक्रिया में मैं भी पीछे मुड़ा और मैंने उन्हें अपनी बैट लहरा कर उन्हें धमकी दी."

गावस्कर सुनाते हैं मियांदाद से जुड़ा बेंगलुरु टेस्ट का एक प्रकरण

क्रिकेट के मैदान पर जावेद मियांदाद की बल्लेबाज़ी के साथ-साथ उनके मज़ाक़ करने के अंदाज की सुनील गावस्कर भी तारीफ़ करते हैं. ऐसे ही एक वाकये का भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने 'द कपिल शर्मा शो' में चुटीले अंदाज़ में ज़िक्र किया. यह बात बेंगलुरु में खेले जा रहे एक टेस्ट मैच के दौरान की है. तब टीम इंडिया में एक स्पिनर वापसी कर रहा था और जावेद को पता था कि वो उस विकेट पर ख़तरनाक साबित हो सकते थे क्योंकि वहां गेंद बहुत तेज़ी से घूम रही थी. गावस्कर कहते हैं, "जावेद मियांदाद मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत मज़बूत थे और गेंदबाज़ को हमेशा नर्वस करने की फ़िराक में रहते थे. जब वो गेंदबाज़ के गेंद को आगे बढ़ कर रोकते और गेंद बैट से लगने के बाद गेंदबाज़ के पास वापस चली जाती तो वो अपनी क्रीज़ से निकलकर आधी पिच पर आते और उस गेंदबाज़ से पूछते थे कि तेरा लुम नंबर क्या है, लुम नंबर..." (मियांदाद तोतली आवाज़ में बोलते हैं). "विकेट के पीछे सैयद किरमानी थे. वो सुन रहे थे कि क्या हो रहा है. मैं स्लिप में खड़ा था. वो अपने ग्लव्स से मुंह ढककर मुझसे पूछे कि 'ये क्या हो रहा है'?" मैंने कहा, "किरी जावेद ने शुरू किया है, जावेद ही ख़त्म करेगा. हम थोड़ा इंतज़ार करेंगे."

बोल न, बोल न, तेला लुम नंबर क्या है?

उस गेंदबाज़ के हर ओवर में जब गेंद जावेद के बैट से लग कर बॉलर के पास जाती तो जावेद उनसे पूछते, बोल न, बोल न, तेला लुम नंबर क्या है? आखिर वो बॉलर तंग आ गया, अपनी गेंदों पर ध्यान नहीं दे पा रहा था तो वो झल्ला कर पूछा, "क्यूं, क्यूं रूम नंबर क्यूं चाहिए. इस पर जावेद मियांदाद ने कहा, "क्योंकि तेले लुम में मेले को सिक्स मालने का है."

गावस्कर कहते हैं कि हमारा होटल कहीं और था और हम खेल कहीं और रहे थे लेकिन जावेद को उस बॉलर के रूम में सिक्स मारने का था. तभी उस बॉलर ने राउंड द विकेट से ओवर द विकेट आकर गेंद डालनी शुरू की. जावेद ने बहुत कोशिश की स्वीप मारने की, ड्राइव करने की पर उस गेंदबाज़ की गेंदों पर वो रन नहीं बना पा रहे थे, तो उन्होंने आगे बढ़ कर उनकी गेंदों को पैड करना शुरू किया. अब दो गेंद बाद जब जावेद गेंद को पैड करते तो अपने मुंह से 'भौं...भौं' की आवाज़ निकालते. तब किरमानी फिर मुझसे पूछते हैं, "अब ये क्या हो रहा है?" तो मैंने कहा, "जावेद ने वो किस्सा ख़त्म कर दिया है तो ये भी कर देगा." लेकिन ये किस्सा बहुत जल्दी ख़त्म हो गया क्योंकि अंपायर जावेद के इस व्यवहार से बहुत परेशान थे. उन्होंने जावेद से पूछा, "ये भौं...भौं... की आवाज़ क्यों निकाल रहे हो." तो जावेद ने कहा, "अरे भौं... भौं... न करूं तो क्या करूं. कुत्ते के जैसी मेरी टांग पकड़े हुए है. (ऑफ़ स्टंप की ओर इशारा करते हुए) उसे इधर बोल न गेंदबाज़ी करने के लिए."

 

1992 वर्ल्ड कप में मंकी जंप

भारत और पाकिस्तान क्रिकेट के मैदान में चिर-प्रतिद्वंद्वी टीमें हैं. जब भी इन दोनों मुल्कों के बीच मैच होता है तब दोनों ही मुल्कों की जनता सब कुछ छोड़ उस क्रिकेट मैच को देखने में मशरूफ़ हो जाती है. ऐसा ही एक मुक़ाबला 1992 वर्ल्ड कप के दौरान सिडनी में हुआ था. उस मुक़ाबले को भारत ने 43 रन से जीता था, भारत की जीत के हीरो तब के उभरते हुए क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर थे. सचिन ने अर्धशतक जमाने के साथ ही पाकिस्तान की बैटिंग के दौरान ख़तरनाक हो रहे आमिर सोहेल का विकेट भी चटकाया था. लेकिन उस मैच के दौरान एक ऐसा भी वाकया हुआ था जिसे लेकर उसकी चर्चा की जाती रही है. वह वाकया जावेद मिंयादाद से जुड़ा है.

जब जावेद मियांदाद बैटिंग कर रहे थे तो विकेट के पीछे से किरण मोरे लगातार अपने गेंदबाज़ों की हौसला अफ़जाई कर रहे थे. मियांदाद उससे बुरी तरह चिढ़ गए थे, उसी दौरान सचिन की एक गेंद को उन्होंने मिड ऑफ़ पर खेला और सिंगल लेना चाहते थे लेकिन उन्हें वापस क्रीज़ में आना पड़ा. लेकिन इसके बाद उन्होंने जो किया उसे आज भी याद किया जाता है. जावेद मियांदाद विकेटकीपर किरण मोरे के पास गए और तीन बार जंप लगाए. इसे कहीं मेंढक की कूद को कहीं मंकी जंप के तौर पर आज भी याद किया जाता है.

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